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भारत-पाकिस्तान के रिश्ते और जादू की झप्पी का फॉर्मूला

अगर पाकिस्तान, भारत को अच्छे सहयोगी और अच्छे पड़ोसी के रूप में देखना चाहता है तो उसे बहुत प्रयास करने पड़ेंगे

गौरव पांडेय
My रिपोर्ट
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जादू की झप्पी का फॉर्मूला
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जादू की झप्पी का फॉर्मूला
(फोटो: द क्विंट)

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जब मुन्नाभाई एमबीबीएस सिनेमाघरों में लगी थी, तब मैं बाल्यकाल से किशोरावस्था की ओर बढ़ चुका था. जादू की झप्पी के विभिन्न प्रयोग करके देखने का वो सुनहरा अवसर था. झप्पियों के मिलने से यकीनन मेरे जीवन में खुशहाली पहले की तुलना में अधिक हो गई थी. आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए "गांधीगिरी और जादू की झप्पी" सचमुच रामबाण है.

इस निबंध के शीर्षक वाला प्रश्न तब भी मेरे और अन्य सहपाठियों के बीच चर्चा का केंद्र रहा करता था. मैं बहस में पिछड़ जाता था और इसके पीछे फिल्म रिलीज से चंद रोज पहले भारतीय संसद पर हुए हमले का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है.

सही मायनों में देखा जाए तो दोनों देशों के पास एक दूसरे से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर करने के कई अवसर आए. फरवरी 1999 में अटल जी पाकिस्तान के दौरे पर थे, तब वे और उनके समकक्ष नवाज शरीफ बड़ी आत्मीयता से गले मिले थे. इसी दौरे पर ‘लाहौर घोषणा’ भी की गई थी. पर चंद महीने ही बीते थे कि ‘कारगिल युद्ध’ ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की गहरी खाई खोद दी.

समय बीता और पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ. पड़ोसी देश में लोकतंत्र धराशायी हो गया. जनरल मुशर्रफ 'साहब' ने सत्ता हथिया ली. इस बुरे दौर में भी दोनों देश फिर करीब आए थे. सेना शासित पाकिस्तान के जनरल मुशर्रफ और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री अटल जी के बीच वर्ष 2001 में, प्रेम की प्रतीक नगरी 'आगरा' में मुलाकात आयोजित की गई थी. एक बार फिर से लगने लग गया था कि ‘अमन की आशा’ वापस आ गई है.

लेकिन महज दो साल बाद ही 13 दिसंबर 2003 को भारतीय सम्प्रुभता और अखंडता की प्रतीक संसद पर हमला हो जाता है. इससे भी वीभत्स कर देने वाली घटना 26/11 को घट जाती है. पुनः देश की सम्प्रुभता को ललकारा जाता है.

इन घटनाओं को देखकर, इनके बारे में पढ़कर मेरा दिल भी दहल जाता है, लेकिन महाविनाश के मुहाने तक ले जाने वाली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ या ऐसे किसी भी बल प्रयोग से ये घटनाएं रुक जाएंगी, ऐसा प्रतीत होता भी नजर नहीं आता. अगर दोनों देश के लोग धार्मिक अलगाव भुलाकर एक दूसरे को ‘झप्पियां’ देना शुरू कर दें तो इतनी बड़ी समस्या चुटकियों में सुलझ जाएगी. लोगों के आपस में घुलने मिलने से सरकारें भी एक दूसरे के करीब आएंगी.

अगर पाकिस्तान, भारत को अच्छे सहयोगी और अच्छे पड़ोसी के रूप में देखना चाहता है, तो उसे बहुत प्रयास करने पड़ेंगे. भारत और इसके नागरिकों का विश्वास इतनी बार टूट चुका है कि सिर्फ झप्पियों से कुछ नहीं होगा. पाकिस्तान को अपने यहां बने आतंकवाद से जुड़े सभी ट्रेनिंग कैंप्स बंद करने पड़ेंगे, चरमपंथियों पर सख्त कार्यवाही करनी पड़ेगी और फिर भारत से बात करने की कोशिश करनी होगी.

पाकिस्तान के इतने प्रयासों के बाद भारत सरकार के पास उसे अपनाने के अतिरिक्त कोई अन्य रास्ता न बचेगा. अंत में, मैं पुनः दोहराना चाहता हूं कि ‘महाविनाश’ और ‘जादू की झप्पी’ के बीच मैं ‘जादू की झप्पी’ को ही प्राथमिकता दूंगा.

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