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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई
हम नेताजी सुभाष मार्ग पर दरियागंज के संडे बुक मार्केट में अक्सर आया करते थे. किताब बाजार के नाम से मशहूर ये जगह किताब के शौकीनों के लिए एक ठिकाना हुआ करती थी. सभी तरह की किताबें सस्ते दामों में मिल जाती थी. एक नियमित बाजार से ज्यादा अहमियत थी इस किताब बाजार की.
लेकिन अब स्थिति बदल गई है.
करीब एक महीने बाद एक दोस्त के साथ दरियागंज बुक मार्केट जाने पर जो देखा वो हमें पसंद नहीं आया.
फुटपाथ पर कोई किताब नहीं दिखी. हमारी मुलाकात दो छात्रों से हुई जिन्होंने हमें बताया कि “कई सालों से संडे मार्केट में हमें किफायती दामों पर किताब मिल जाती थी, लेकिन अब बंद होने के बाद ये सुविधा खत्म हो गई है.”
इस बारे में बात करने के लिए हम दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चंद अग्रवाल से मिले. अपना किताबों का स्टोरेज दिखाते हुए वो कहते हैं -
दरियागंज पटरी संडे बुक बाजार वेलफेयर एसोसिएशन के फाउंडर केआर नंदा कहते हैं कि उन लोगों की तो नौकरी ही छीन गई.
हॉकर अपने इस ऐतिहासिक किताब बाजार को बंद नहीं होने देना चाहते. सुभाष चंद अग्रवाल कहते हैं कि “ये मार्केट हमारी मां की तरह है. इसको हम छोड़ कर नहीं जाना चाहते हैं.
ऐतिहासिक बाजार है. यहां अमीर-गरीब बच्चे आराम से आ सकते हैं. हर तरह की हमें सुविधा है. इसलिए हम इस बाजार को नहीं छोड़ना चाहते हैं”
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