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नियमित ट्रैफिक जाम की स्थिति से जूझ रहे पटना शहर के विकास की गाड़ी बुरी तरह से लड़खड़ाती नजर आ रही है. हालात ऐसे हैं कि आम लोग अपने मौलिक अधिकारों को भी पाने में लाचार दिख रहे हैं. सड़कों पर जहां एक ओर लोगों की मनमानी जारी है, वहीं दूसरी ओर लाचार प्रशासनिक व्यवस्था भी इस भीड़ में पंगु हो गई दिखती है. शहर की ट्रैफिक व्यवस्था में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है और शहर के कई इलाकों में रोजाना जाम देखने को मिल रहा है. स्थिति की भयावहता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट भी संबंधित अधिकारियों को कई बार फटकार लगा चुकी है. हालांकि, प्रशासन नए प्रयोगों के साथ ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार का दावा अक्सर करता रहा है.
जहां एक ओर सिटी-बस और ऑटो-रिक्शा वाले अपने नियत स्टॉप पर अपनी गाड़ी खड़ी नाकर पूरे रास्ते सवारियों को चढ़ाने-उतारने का काम करते है. वहीं गाड़ियों की रोजाना बढ़ती तादाद के चलते भी शहर की ट्रैफिक व्यवस्था एक तरह से चरमरा गई है. बात चाहे छोटे वाहनों की हो या फिर बड़े वाहनों की, सभी रोजाना ट्रैफिक जाम में दम तोड़ते नजर आते हैं. आप शहर के किसी भी इलाके में चले जाएं, आपको रोजाना भारी ट्रैफिक जाम से दो चार होना पड़ेगा. पीक ऑवर की तो बात ही छोड़िए,आम समय में भी ट्रैफिक का हाल बेहाल है.
शहर में जाम से निजात पाने की अनेकों योजनाओं पर काम हुआ. जगह-जगह लाखों रुपये खर्च कर लाइट लगाए गए. जाम बस्टर की तैनाती की गई. सड़कों पर बेतरतीब तरीके से खड़ी गाड़ियों के चालान काटे गए. ट्रैफिक पुलिस की मदद से लोगों को जागरुक करने की पहल भी हुई, लेकिन शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को देख ऐसा कतई नहीं लगता कि भविष्य में स्मार्ट सिटी बनने वाले इस पटना शहर को इस जाम से निजात मिलेगी.
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