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मैं एक नागरिक होने के नाते अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ.
मैं देश के हर मुद्दे पर अपनी निष्पक्षता पूर्ण राय भी रखता हूँ.
पर मेरी इसी निष्पक्षता को बहुसंख्यक वर्ग नहीं समझ पाता है,
और मेरा राजनीतिक शोषण होता है,
और यही कहानी लगभग हर आलोचक की आज देश भर में है.
आज जब हम गणतंत्र दिवस की 71 वी वर्षगाँठ मना रहे हैं, देश का बड़ा वर्ग इस पर्व की अहमियत से ही अनभिज्ञ है.
आज हम इस पर्व को राष्ट्रवाद के उन्माद में अस्तित्वहीन करते चले जा रहे हैं और आपस में ही अपने वैचारिक मतभेदों के चलते दूरी बना ली है, उम्मीद है कि ये काला साया हमारे देश के लोकतंत्र से जल्द से जल्द छंटेगा.
-विकास ठाकरे “सत्यंवेशी” सिवनी, मध्यप्रदेश
इस गणतंत्र दिवस, क्विंट हिंदी अपना कैंपेन 'लेटर टू इंडिया' वापस लेकर आया है. इस गणतंत्र दिवस, 'हिंदुस्तान' के नाम अपने एहसासों को शब्दों के सहारे बताइए.
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे...
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