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मैं हिंदू मैं मुस्लिम मैं सिख मैं ईसाई ?
ये बेसुरी आवाजे भारतवर्ष की दीवारों से टकराकर सामाजिक सद्भाव के लिए दिनों दिन खतरा बनती जा रही हैं.
देश के किसी कोने से "मैं भारतीय"या"मैं भारत"का स्वर सुनाई नहीं देता. जबकि 'भारतीय' संबोधन में सागर जैसी गरिमा है, जिसमें देश की विभिन्न दिशाओं से अपनी मिट्टी की खुशबू लिए अनेक नदियां समाहित हो रही है.
देश के संविधान में नागरिकों को अपने धर्म के अनुसार पूजा उपासना या प्रचार का बराबर अधिकार है. विभिन्न पंथ जाति समुदायों के मध्य परस्पर समभाव और सौहार्द का अनूठा समन्वय हमारे संविधान का मूल स्वर है.
अनेकता में एकता विविधता का सौंदर्य ही भारतवर्ष की महिमा है,शक्ति है और विश्व के लिए प्रेरक भी है.
अपने धर्म-मजहब को श्रेष्ठ बताने वाले क्यों भूल जाते हैं कि ये मार्ग हैं, जो उस एक अनंत परमेश्वर तक पहुंचते हैं, जिसे राम कहो खुदा परमेश्वर कहो, क्या फर्क पड़ता है. धर्म मजहब के सिद्धांत आचरण में परिलक्षित होना चाहिए. राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्म को साधन बनाकर हम धर्म को विवादित और कलंकित ही कर रहे है
देश के नाम 'भारतवर्ष'में एक गरिमा है इसे स्कूल की किताबों से निकालकर गांव गली शहर की दीवारों पर लिख दीजिए - मैं भारत हूं,महान भारतीय !.
इस गणतंत्र दिवस, क्विंट हिंदी अपना कैंपेन 'लेटर टू इंडिया' वापस लेकर आया है. इस गणतंत्र दिवस, 'हिंदुस्तान' के नाम अपने एहसासों को शब्दों के सहारे बताइए.
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे...
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