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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019My report  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019भारतीय स्टूडेंट का दर्द- यूक्रेन से जान बचाकर भागी थी, फिर यूक्रेन जाने को मजबूर

भारतीय स्टूडेंट का दर्द- यूक्रेन से जान बचाकर भागी थी, फिर यूक्रेन जाने को मजबूर

"हमें उम्मीद थी कि भारत सरकार हमारे लिए कुछ करेगी. लेकिन हमारी समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है."

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<div class="paragraphs"><p>भारतीय स्टूडेंट का दर्द- यूक्रेन से जान बचाकर भागी थी, फिर यूक्रेन जाने को मजबूर</p></div>
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भारतीय स्टूडेंट का दर्द- यूक्रेन से जान बचाकर भागी थी, फिर यूक्रेन जाने को मजबूर

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रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के शुरुआती दौर को याद करते हुए दिशा दुबे बताती हैं कि, 24 फरवरी 2022, यह तारीख जब तक मैं जिंदा हूं, हमेशा याद रखूंगी. सुबह के करीब 4 बजे थे जब मैंने धमाकों की आवाजें सुनीं और मेरे कमरे के दरवाजे और खिड़कियां हिलने लगीं.

मैं अपने फ्लैट से निकल गई. हजारों लोग सड़कों पर जमा हो गए थे, और जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है. मैं पूर्वी यूक्रेन के खार्किव शहर में रह रही थी और वीएन कारजिन नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई कर रही थी.

जिस समय युद्ध शुरू हुआ उस समय सभी लोग डरे हुए थे. तब किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि पहली बार हमने सायरन और लोगों की इतनी बड़ी भीड़ देखी थी.

'युद्ध ने मेरे करियर को प्रभावित किया'

मैं जनवरी 2022 में भारत से आई थी. एक महीने बाद ही हमला हो गया. 2020 में, मैंने अपने पिता को भारत में खो दिया. साल 2021 व्यक्तिगत संघर्ष का साल रहा. मैं आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थी. मैं एजुकेशन लोन पर पढ़ाई कर रही एक छात्र हूं.

"किसी को कॉलेज की ट्यूशन फीस पर लोन मिलता है, और बाकी के दूसरे खर्च, जैसे रहने का खर्च, एयरलाइन टिकट आदि. इसे खुद मैनेज करना पड़ता था. इससे उबरना एक बड़ा संघर्ष था. मैंने किसी तरह बचत के माध्यम से और रिश्तेदारों की मदद से इन पैसों की व्यवस्था की थी. यह मेरे लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति थी."
दिनशा दुबे, यूक्रेन में भारतीय चिकित्सा छात्र

मैं बहुत संघर्षों के बाद यूक्रेन आई थी, मैं अपनी पढ़ाई शुरू कर रही था और यह मेरे दिनचर्या में शामिल हो रहा था. अचानक, मैं समझ नहीं पा रही थी कि हमला होने पर क्या किया जाए. यह एक ऐसी स्थिति थी जहां मुझे यह भी पता नहीं था कि मुझे समय पर डिग्री मिल सकती है या नहीं. अगर मुझे डिग्री मिलती है, तो क्या यह भारत सहित सभी देशों के लिए मान्य होगी? यह अब भी सभी के लिए सबसे बड़ा सवाल है.

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'यूक्रेन से पलायन'

हमने धीरे-धीरे सीखा कि यहां के लोग जानते हैं कि युद्ध के समय क्या करना चाहिए. हम अपनी बिल्डिंग के बंकरों में छिपे थे. बहुत घुटन हो गई थी, इसलिए हम सबवे में शिफ्ट हो गए. मेट्रो में हमें थोड़ी बहुत बिजली मिलती थी और खाना बांटा जाता था. तब भारत सरकार ने गंगा मिशन की शुरुआत की.

'मैं खार्किव में रह रही थी. मुझे अपने घर से रेलवे स्टेशन जाना था, जो लगभग 25 किमी था. हम 25 किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचे क्योंकि उस समय टैक्सी उपलब्ध नहीं थीं, और जो थीं वो बहुत महंगी थीं. वो लगभग $200 से $300 चार्ज कर रहे थे.'
दिनशा दुबे, यूक्रेन में भारतीय चिकित्सा छात्र

जब हम रेलवे स्टेशन पहुंचे तो प्राथमिकता के मुताबिक ट्रेन में चढ़ने को लेकर मारपीट होने लगी. उन्होंने आदेश निर्धारित किया था- पहले यूक्रेनी महिलाएं और बच्चे, फिर अन्य यूक्रेनी नागरिक और उसके बाद भारतीय महिलाएं और अंत में भारतीय पुरुष ट्रेन में सवार होंगे

ट्रेन को लविवि पहुंचने में 27 घंटे लगे. वहां से हमने हंगरी बॉर्डर के लिए एक वैन बुक की, जहां हमारे रेस्क्यू के लिए भारतीय अधिकारी मौजूद थे.

'एक साल बाद, बिना किसी विकल्प के, मैं यूक्रेन से वापिस आ गई हूं'

हम इंतजार कर रहे थे कि भारत सरकार हमें निजी कॉलेजों या सरकारी कॉलेजों में समाहित कर लेगी या वे हमारे लिए एक नया संस्थान शुरू करेंगे. हमें उम्मीद थी कि भारत सरकार हमारे लिए कुछ करेगी. अब तक, हमारी समस्या का समाधान होना बाकी है.

"मेरे परिवार में अभी कोई कमाने वाला सदस्य नहीं है. इसलिए, मैं एडमिशन के लिए और अपनी पूरी यात्रा फिर से शुरू करने के लिए दूसरे देश में जाने का जोखिम नहीं उठा सकती. यह सभी के लिए संभव नहीं है. इसलिए हर कोई यूक्रेन से वापस आ रहा है. मेरे विश्वविद्यालय ने हमें इवानो में ट्रांसफर कर दिया है. मेरे दोस्त वापस आ गए हैं, और मेरी ऑफलाइन कक्षाएं चल रही हैं. हम यहां पढ़ रहे हैं ताकि हम डिग्री प्राप्त कर सकें."
दिनशा दुबे, यूक्रेन में भारतीय चिकित्सा छात्र

अगर युद्ध की स्थिति बढ़ती है, जैसा कि सभी कह रहे हैं कि होगा, तो मुझे नहीं पता कि मुझे समय पर डिग्री मिलेगी या नहीं या मुझे फिर से भारत लौटना होगा. अभी के लिए, मुझे लगता है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो मुझे समय पर मेरी डिग्री मिल जाएगी, और फिर मैं भारत वापस जाउंगी और एफएमजीई (विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा) पास करके अपना करियर शुरू करूंगी. मुझे उसकी उम्मीद है.

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