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कैमरापर्सन: रिभु चटर्जी
वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
"माद*****, बहन**** ये गालियां हमारे लिए नई नहीं है. हम लोगों को रोज ऐसी गालियां दी जाती हैं पर हम क्या कर सकते हैं? ये हमारा काम है." दिल्ली के रोहिणी इलाके की एक सोसाइटी में सिक्योरिटी गार्ड का काम करने वाली नेहा (बदला हुआ नाम) ने बताया.
नेहा बताती हैं कि कई लोग बदतमीजी पर उतर जाते हैं. लोग बोलते हैं कि तुम क्या हो? तुम्हें नौकरी से हटवा देंगे. सिक्योरिटी गार्ड पर कई बार लोग हाथ भी उठा देते हैं.
उन्हें हर दिन अपने काम की जगह पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है लेकिन अपनी नौकरी खोने के डर से कैमरे पर जाकर नेहा इसके बारे में बोलने की हिम्मत करने से डर रही थीं. 'द क्विंट' से बातचीत में उन्होंने कहा ''यह मेरे और मेरे परिवार के लिए चीजें मुश्किल कर देगा.''
एक सिंगल मदर के रूप में नेहा अपनी चार साल की बच्ची को अकेले पाल रही हैं. उनकी बेटी के जन्म के दो महीने बाद ही उनका तलाक हो गया था क्योंकि उनके पति को बेटी के बजाय एक लड़का चाहिए था.
रोहिणी की एक दूसरी सोसायटी में काम करनेवाले श्री कृष्ण कहते हैं "आदमी लोग सिक्योरिटी गार्ड को पैर का जूता समझते हैं. वो समझते हैं कि हम इंसान नहीं है. जानवरों से बदतर जिंदगी जी रहे हैं हम."
उनके परिवार भूखे न रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए नेहा और श्रीकृष्ण दोनों अपनी गरिमा को ताक पर रखकर सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते हैं. दोनों प्रति महीने 9,000 रुपये कमाते हैं, जो दिल्ली सरकार द्वारा अनिवार्य न्यूनतम मजदूरी से काफी कम है.
लेकिन क्या वास्तव में वे लड़ सकते हैं?
चूंकि, नेहा अपने नौकरी वाली जगह पर हमसे बात करने में सहज नहीं थी, इसलिए उन्होंने हमें जहांगीरपुरी बुलाया, जहां वो एक झुग्गी में रहती हैं. उनकी झुग्गी लगभग 10x10 फीट की थी, जिसके बगल में एक किचन और उससे लगा एक बाथरूम बना था. वहीं, किचन के दूसरे साइड एक बिस्तर लगा था.
नेहा यहां अपनी मां, बेटी और छोटे भाई के साथ रहती हैं.
अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए नेहा ने बताया "मैंने घर की और अपनी बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये नौकरी कर ली. अगर मेरे पास नौकरी नहीं होती तो मैं उसे कैसे पालती?
नेहा ने 2020 में कोविड महामारी के दौरान एक सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम करना शुरू किया था, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के निवासी श्रीकृष्ण 15 साल से अधिक समय से सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर रहे हैं. दिल्ली के कंझावला में बसने से पहले, उन्होंने पश्चिम बंगाल और गुजरात के विभिन्न हिस्सों में काम किया है.
"दुर्व्यवहार हमारी समस्याओं का एक छोटा हिस्सा है"
अपने घर की छत पर प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे श्रीकृष्ण अपने साथ हुई उत्पीड़न की एक घटना को याद करते हुए कहते हैं, "होली के दौरान हमारी सोसायटी के एक आदमी ने एक महिला के साथ बदतमीजी की. उस महिला ने मुझसे शिकायत की. जब मैंने उस व्यक्ति के परिवार को इसके बारे में बताया तो वो मुझ पर गुस्सा हो गए और मुझ पर उनके बेटे के खिलाफ झूठे आरोप लगाने का आरोप लगाया."
श्रीकृष्ण बताते हैं कि उन लोगों ने उन्हें एफआईआर की धमकी दी, जिससे उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
...लेकिन लगातार उत्पीड़न इस समस्या का दिखने वाला छोटा हिस्सा भर है, क्योंकि सिक्योरिटी सर्विस इंडस्ट्री में ऊपर से नीचे तक सड़न है.
सुरक्षा गार्डों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट सतीश कुमार गोयल ने द क्विंट को बताया कि गार्डों द्वारा विभिन्न प्रकार की कई शिकायतें की गई हैं. जिनमें न्यूनतम वेतन के अनुसार सैलरी का भुगतान न होना और वर्कप्लेस पर पीएफ और कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) न मिलना प्रमुख समस्या हैं.
घर की स्थिति और नौकरी के अवसरों की कमी को ध्यान में रखते हुए, अधिकांश सुरक्षा गार्ड इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते. लेकिन श्रीकृष्ण को लगता है कि इन मुद्दों पर जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया जा रहा है, उसमें बदलाव लाने के लिए इस पर बात करना जरूरी है.
उनके साथ क्या हुआ, इसके बारे में बोलते हुए, श्री कृष्ण कहते हैं "मैंने 1 मई 2014 को एम*** अपार्टमेंट (रोहिणी में) में एक सुरक्षा गार्ड की नौकरी शुरू की. उन्होंने सरकारी मानदंडों के अनुसार भुगतान करने का वादा किया. उन्होंने सलाना बोनस का भी वादा किया लेकिन वे अपने वादों पर खरे नहीं उतरे. जब मैंने उनसे वेतन बढ़ाने और सरकार द्वारा निर्धारित सभी मानदंडों को लागू करने के लिए कहा, तो उन्होंने मुझे नौकरी छोड़ने के लिए कहा और मुझे सोसायटी में प्रवेश करने से रोक दिया और इसीलिए वे 2015 से अपने पिछले नियोक्ता (Employer) के खिलाफ मामला लड़ रहे हैं.
मुद्दे को सुलझाने की उम्मीद में, वह रोहिणी, सेक्टर 16 में लेबर कोर्ट में मध्यस्थता केंद्र पहुंचे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. श्रीकृष्ण कहते हैं, ''अभी, मेरे मामले की सुनवाई सेक्टर 9 स्थित रोहिणी कोर्ट में चल रही है. मेरे वकील के अनुसार, मुझे 6.75 लाख रुपये देने होंगे.''
नेहा, श्रीकृष्ण और उनके जैसे कई अन्य सिक्योरिटी गार्ड्स का उनके ठेकेदारों और नियोक्ताओं के हाथों शोषण किया गया है. वास्तव में, सुरक्षा गार्डों की सुरक्षा के लिए ही दिल्ली सरकार ने 2009 में निजी सुरक्षा एजेंसी (विनियमन) नियम बनाए थे. यह गार्डों के प्रशिक्षण, एजेंसी के सत्यापन, लाइसेंस देने और सुपरवाइजर के प्रावधान के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश निर्धारित करता है.
सतीश कुमार गोयल कहते हैं, "लेकिन ये नियम सिर्फ कागजों पर हैं. वास्तविक दुनिया में इनका खुलेआम उल्लंघन होता है और यहां तक कि सरकार के पास भी इन पर नजर रखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं."
'सैलरीबॉक्स' के एक स्टडी में कहा गया है कि लगभग दो-तिहाई शारीरिक श्रम करनेवाले कर्मचारी प्रति माह 15,000 रुपये से कम कमाते हैं, जहां तक सिक्योरिटी सर्विस इंडस्ट्री का सवाल है, कई अपंजीकृत एजेंसियों और ठेकेदारों की मौजूदगी ने इन गार्ड्स को शोषण के चक्र में धकेल दिया है.
श्रीकृष्ण कहते हैं, "हमने गुलामी के बारे में सुना है. आज, मुझे लगता है कि यह आधुनिक गुलामी का एक रूप है." उनके जैसे कई अन्य लोगों के लिए, यह एक ऐसी लड़ाई है, जो वे हर दिन लड़ते हैं और एक ऐसी लड़ाई जिसे वे अपने कंधों पर जिम्मेदारियों के कारण हर दिन हारते हैं.
"मेरी बेटी के चेहरे पर एक गांठ है. उसके इलाज में मुझे 15,000 रुपये खर्च करने पड़े. डॉक्टर ने उसके पांच साल की होने पर ऑपरेशन की सलाह दी है. इसमें हमारे बहुत सारे पैसे खर्च होंगे. मुझे नहीं पता कि मैं कहां से पैसा लाउंगी"-निराशा से नेहा कहती हैं.
उन्हें उम्मीद है कि उनकी बेटी शिक्षा हासिल करे, जीवन में अच्छा करे और उनकी तरह नौकरी न करे.
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