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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
उत्तराखंड में शेड्यूल कास्ट की संख्या 20% है, और कुछ ही लोगों को उच्च स्तरीय शिक्षा मिल पाती है जिसके लिए छात्रों को उनका गांव छोड़कर शहरों में आना पड़ता है. बदकिस्मती से उनकी कास्ट का स्टेटस उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है, शहरों में भी छात्रों को अपनी जाति की वजह से आसानी से घर नहीं मिल पाता है.
ST/SC के छात्रों को कई परेशानी झेलनी पड़ती है, उत्तराखंड सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने उत्तराखंड के हर शहर में डॉक्टर अंबेडकर हॉस्टल सेटअप किया है. लेकिन इन हॉस्टल की हालत बहुत खराब है, हम छात्रों को साफ सफाई जैसी बुनियादी सुविधा तक नहीं मिली है और न ही खाना ढंग का है, ऐसी और भी कई चीजे हैं.
हर हॉस्टल कॉलेज से ज्यादा दूर बना है, छात्रों को कॉलेज पहुंचने के लिए लंबा सफर करना पड़ता है, कई जगहों पर तो ये दूरी 5 से 10 किलोमीटर है जैसे अलमोड़ा में बने आंबेडकर हॉस्टल फल्सीमा कॉलेज से लगभग 8-10 किलोमीटर दूर है. छात्रों को कॉलेज से हॉस्टल और हॉस्टल से कॉलेज आने-जाने में सामान्य से ज्यादा पैसे लग जाते हैं. लड़कियों के लिए भी अलग से हॉस्टल बनाए गए हैं लेकिन नियम के मुताबिक पूरे राज्य में लड़कियों के लिए सिर्फ दो हॉस्टल बनाए गए हैं.
हॉस्टल से जुडी दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत है खाने की, नियम के मुताबिक हॉस्टल में ही मेस की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. जहां पर भी ये व्यवस्था दी गई है वहां खाने के लिए हर छात्र को कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार 69 रुपये में खाना दिया जाता है तो उसकी क्वॉलिटी बहुत खराब है और उसकी गारंटी भी नहीं है कि खाना ठीक होगा या नहीं.
नंदलाल, इसी हॉस्टल में रहते हैं, उन्होंने मुझे बताया है कि उन्हें सुबह नाश्ते में सूजी और बिस्किट के अलावा कुछ नहीं मिलता है, जो मेन्यु है वो सिर्फ कागज पर है.
इंफ्रास्ट्रक्चर, साफ-सफाई, शौचालय और हॉस्टल की सिक्योरिटी बहुत खराब है, हॉस्टल की हालत जर्जर हो चुकी है और इससे छात्रों की जिंदगी खतरे में है, प्रशासन किसी भी शिकायत को अनसुना कर देता है.
तीसरी दिक्कत है मेडिकल की, नियम के मुताबिक हर हॉस्टल में किसी भी आपातकालीन स्थिति के लिए सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने पैरामेडिक को अपॉइन्ट किया है, लेकिन कई हॉस्टल में ये सुविधा नहीं है.
चौथी दिक्कत है लाइब्रेरी की. लंबे समय से छात्रों की मांग है कि हर हॉस्टल में अंबेडकर लाइब्रेरी बनाई जाए, ताकि छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी कर सके और उनके पढ़ने के लिए ज्यादा मटेरियल मौजूद हो. लेकिन इस पर भी प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया है.
हम कई बार अपनी आवाज उठाते हैं आंदोलन भी करते हैं, तो प्रशासन हमें कहता है कि हम नेता गिरी कर रहे हैं
हमने सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, हमारे विधायक, सोशल वेलफेयर मिनिस्टर, हमारे मुख्यमंत्री को अपनी समस्या बताई है, लेकिन जब भी हम अपना पॉइंट रखते हैं और कोई सुनता नहीं है तो हमें लगता है कि हमारे हक सिर्फ भारत के संविधान में ही लिखे हैं, धरातल पर वो कहीं नहीं है.
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