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आज दुनिया में जिस तेजी से विकास हो रहा है, उसी तेजी से पर्यावरण का भी हनन हो रहा है. हम विकास की अंधी दौड़ में इस कदर दौड़े जा रहे हैं कि अपने हित-अनहित को भी नहीं समझ पाते. विकास ने हमें सुविधाएं तो प्रदान की हैं, लेकिन उनका नुकसान भी समाज और प्रकृति में देखने को मिल रहा है. आधुनिक विकास ने सबसे ज्यादा नुकसान हमारे वातावरण और आर्द्रभूमियों को पहुंचाया है.
कारखानों से निकलने वाले गंदे अवशिष्ट, खनन और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन कुछ ऐसे मानवीय कारण हैं, जिन्होंने आर्द्रभूमियों को अत्यधिक नुकसान पहुंचा है. इसके साथ-साथ ही समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, तूफान आदि प्रकृतिक कारणों के कारण भी आर्द्रभूमियां अपना वास्तविक रुप खोती जा रही हैं.
हमें अपनी आर्द्रभूमियों को बचाना होगा, क्योंकि ये जैव-विविधता बनाए रखने में बहुत मददगार होती हैं और कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाती हैं. आर्द्रभूमि के महत्व के प्रति लोगों को जागरुक करने और उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रति वर्ष 2 फरवरी को पूरी दुनिया में विश्व आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) दिवस मनाया जाता है.
वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न कानूनों और नीतियों के माध्यम से आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए कदम उठाए जाते हैं, लेकिन सरकार कितनी भी कोशिश कर ले जन-जागरूकता के बिना ये संभव नहीं है.
आर्द्रभूमि उस जमीन को कहते हैं, जो दलदली हो या वनस्पति पदार्थों से ढकी हुई हो और जिसमें स्थिर या बहता हुआ पानी रहता हो. उस पानी की गहराई छह मीटर से ज्यादा नहीं होती. आर्द्रभूमि कहलाती है.
1971 में पहली बार ईरान के शहर रामसर में आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया था. जिसमें दुनिया भर के कई क्षेत्रों का चयन किया गया और ये समझौता 1975 से लागू हुआ. भारत में ग्यारह लाख बारह हजार एक सौ इक्तीस (11,12,131) हेक्टेयर क्षेत्र ऐसा है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंट्स की रामसर सूची में शामिल किया गया है. इस क्षेत्र के अंतर्गत रुद्रसागर झील, चिल्का झील, दीपोर बील और भोपाल के भोज वेटलैंड्स सहित 27 स्थान शामिल हैं.
(सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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