Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संसद पर हमले के 20 साल : खौफ की यादें अभी भी ताजा

संसद पर हमले के 20 साल : खौफ की यादें अभी भी ताजा

13 दिसंबर 2001 को हुए उस हमले का खौफ देश की जनता के जेहन में आज भी ताजा

IANS
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>संसद पर हमले के 20 साल : खौफ की यादें अभी भी ताजा</p></div>
i

संसद पर हमले के 20 साल : खौफ की यादें अभी भी ताजा

null

advertisement

बीस साल पहले, भारत की सर्वोच्च विधायी संस्था संसद में एक नृशंस आतंकी हमला हुआ था, जिसने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था। 13 दिसंबर 2001 को हुए उस हमले का खौफ देश की जनता के जेहन में आज भी ताजा है।

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) के पांच आतंकवादियों ने एम्बेस्डर कार में गृह मंत्रालय और संसद के नकली स्टिकर लगाकर सफेद परिसर में घुसपैठ की।

यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय संसद में सुरक्षा व्यवस्था उतनी ही कड़ी थी जितनी आज है।

एके47 राइफल, ग्रेनेड लांचर, पिस्टल और हथगोले लेकर आतंकवादियों ने संसद परिसर के चारों ओर तैनात सुरक्षा घेरे को तोड़ दिया। जैसे ही वे कार को अंदर ले गए, स्टाफ सदस्यों में से एक, कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव को उनकी हरकत पर शक हुआ।

कमलेश पहली सुरक्षा अधिकारी थीं जो आतंकवादियों की कार के पास पहुंचीं और कुछ संदिग्ध महसूस होने पर वह गेट नंबर 1 को सील करने के लिए अपनी पोस्ट पर वापस चली गईं, जहां वह तैनात थीं।

आतंकवादियों ने अपने कवर को प्रभावी ढंग से उड़ाते हुए कमलेश पर 11 गोलियां चलाईं।

आतंकवादियों के बीच एक आत्मघाती हमलावर था, जिसकी योजना को कमलेश ने विफल कर दिया, लेकिन उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

कमलेश को मारने के बाद आतंकी अंधाधुंध फायरिंग करते हुए आगे बढ़ गए। आतंकी कार्रवाई लगभग 30 मिनट तक चली, जिसमें कुल नौ लोग मारे गए और अन्य 18 घायल हो गए।

उसी बीच सुरक्षा बलों ने सभी पांचों आतंकियों को बिल्डिंग के बाहर ही ढेर कर दिया गया।

राष्ट्रीय राजधानी में आतंकवाद, संगठित अपराध और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों को रोकने, पता लगाने और जांच करने के लिए 1986 में स्थापित दिल्ली पुलिस की आतंकवाद-रोधी इकाई स्पेशल सेल ने जांच का जिम्मा संभाला।

20 साल पुराने आतंकी हमले की यादों को याद करते हुए तत्कालीन पुलिस उपायुक्त अशोक चंद ने आईएएनएस को बताया कि जब नरसंहार हुआ, उस समय वह स्पेशल सेल के कार्यालय में थे।

चंद ने कहा, जैसे ही हमें सूचना मिली, मैं अपनी टीम के साथ संसद पहुंचा। उन्होंने कहा कि जब वह मौके पर पहुंचे, उस समय भी हमला जारी था।

उन्होंने कहा, स्थिति सामान्य नहीं हुई थी, उस समय तक स्पेशल सेल की अन्य टीमें भी वहां पहुंच गईं।

अगले कुछ ही मिनटों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों ने सभी आतंकियों को ढेर कर दिया।

गौरतलब है कि हमले के समय संसद में तैनात सीआरपीएफ की बटालियन जम्मू-कश्मीर से हाल ही में लौटी थी।

घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अन्य अधिकारी ने कहा कि वे ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयार थे और जानते थे कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है।

हालांकि सुरक्षा बलों ने अत्यधिक बहादुरी दिखते हुए स्थिति को जल्द नियंत्रित कर लिया। संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ ने भी कई लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एक अधिकारी ने कहा, हमला शुरू होने के तुरंत बाद वॉच एंड वार्ड के कर्मचारियों ने संसद भवन के सभी दरवाजे बंद कर दिए। इस तरह आतंकवादियों को अंदर प्रवेश करने से रोक दिया गया।

अप्रैल 2009 में वॉच एंड वार्ड का नाम बदलकर पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस कर दिया गया।

चंद ने कहा कि हमले के तुरंत बाद जांच शुरू कर दी गई। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने महज 72 घंटों में इस मामले का पदार्फाश किया और इस सिलसिले में चार लोगों- मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन, अफसल गुरु और एस.ए.आर. गिलानी को गिरफ्तार किया।

उनमें से दो को बाद में बरी कर दिया गया, जबकि अफजल गुरु को फरवरी 2013 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई। शौकत हुसैन ने जेल में अपनी सजा काटी।

हमले की 20वीं बरसी की पूर्व संध्या पर दिल्ली पुलिस ने रविवार को राष्ट्रीय राजधानी में भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है।

सिर्फ तीन महीने पहले सितंबर में स्पेशल सेल ने पाकिस्तान स्थित एक प्रमुख आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया और आठ लोगों को गिरफ्तार किया। ये लोग त्योहारों के मौसम में देश में आतंकी हमले करने की साजिश रच रहे थे।

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT