Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'आज का हिंदुस्तान शिवपालगंज नहीं हो सकता'

'आज का हिंदुस्तान शिवपालगंज नहीं हो सकता'

'आज का हिंदुस्तान शिवपालगंज नहीं हो सकता'

IANS
न्यूज
Published:
i
null
null

advertisement

 नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (आईएएनएस)| श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' को पचास साल पूरे होने के मौके पर साहित्यकार पुष्पेश पन्त ने उपन्यास की आज के समय में प्रासंगिकता पर अपनी बात रखी।

  उन्होंने कहा कि "आज का हिंदुस्तान शिवपालगंज नहीं हो सकता है, यह बाबरी मस्जिद के विध्वंस होने के पहले का भारत है, यह आपातकाल के पहले का भारत है और हरित क्रांति के पहले का भारत है।" राजकमल प्रकाशन की तरफ से यहां शुक्रवार शाम आयोजित कृति उत्सव में साहित्यकार और आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा, "मैंने जब पहली बार राग दरबारी उपन्यास पढ़ा तब मेरी उम्र चौदह बरस थी। उसे मैं पचास बार पढ़ चुका हूं और पचास बार और पढ़ूंगा।" उन्होंने कहा कि आज का शिवपालगंज पहले से ज्यादा हिंसक संवेदनहीन और विवेकहीन हो गया है।

विख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा, "पुराने दिनों में दलित-शोषित-महिलाओं पर नियंत्रण पिटाई के जरिए किया जाता था। अब पिटाई नहीं कर सकते तो सारी योजनाओं पर कब्जा करके उनपर नियंत्रण कर रहे हैं। रागदरबारी इसी नियंत्रण की कहानी है।"

राग दरबारी की अंग्रेजी अनुवादक जिलियन राइट ने कहा, "रागदरबारी जैसी किताब तो अंग्रेजी में न कोई थी न है। लेखक श्रीलाल शुक्ल अनुवादक के लिए एक आदर्श लेखक थे।" उन्होंने कहा कि राग दरबारी में इतनी कहानियां हैं कि पूरे एक महीने तक दास्तान चल सकती है।

देवी प्रसाद त्रिपाठी ने राग दरबारी के 50वें प्रकाशन वर्ष में छपे नए आवरण वाले सजिल्द और पेपरबैक संस्करण का लोकार्पण किया, और उसके बाद कहा, "राग दरबारी उपन्यास में पहले पन्ने से ही मुहावरों का इस्तेमाल किया गया है। श्रीलाल शुक्ल अपने मुहावरे अवधी और अंग्रेजी से लेते थे और उनके मुहावरे काफी धारदार होते थे।"

दास्तान शुरू होने से पहले राग दरबारी के विशेष संस्करण के शीघ्र प्रकाशन की घोषणा राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरूपम ने की। सीमित संख्या में छपने जा रहे इस डिलक्स संस्करण की झलक चित्रकार विक्रम नायक की उपस्थिति में दिखाई गई।

उल्लेखनीय है कि श्रीलाल शुक्ल ने 1964 में राग दरबारी को लिखना शुरू किया था और 1967 में यह उपन्यास पूरा हुआ। इसका प्रकाशन 1968 में हुआ था और 1970 में इस उपन्यास को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1986 में दूरदर्शन पर इस उपन्यास पर आधारित एक धारावाहिक का भी प्रसारण हुआ था।

राजकमल प्रकाशन की तरफ से जारी बयान के अनुसार, अब तक इस उपन्यास की पांच लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT