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अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबानी (Taliban) हुकूमत के बाद आम लोगों के साथ ही गनी सरकार में शामिल मंत्रियों का भी जीवन यापन मुश्किल हो गया है. इसका जीता जागता उदाहरण अशरफ गनी सरकार में वित्त मंत्री रहे खालिद पाएंद हैं. पाएंद अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में कैब चलाकर गुजारा कर रहे हैं. जो एक वक्त में अफगानिस्तान का खजाना संभालता था, आज वो परिवार और अपना पेट पालने के लिए ड्राइविंग कर रहा है.
वॉशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए खालिद बताते हैं कि अगले दो दिन में उन्हें 50 ट्रिप्स पूरी करनी है. इसके बदले उन्हें 35 डॉलर का बोनस मिलेगा. इसके अलावा वो जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय में एक सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम करते हैं, जहां उन्हें प्रति सेमेस्टर 2,000 डॉलर मिलते हैं. वो कहते हैं कि घर में पत्नी के साथ 4 बच्चे हैं. कुछ सेविंग थी, उससे भी काम चल रहा है. वो कहते हैं कि मेर मुल्क अफगानिस्तान के हालात बहुत ही खराब हैं. महामारी तो थी ही अब सूखा भी पड़ रहा है. पूरी दुनिया ने पाबंदियां लगा रखी हैं, जिसकी वजह से इकोनॉमी तबाह हो चुकी है और इसके साथ ही तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी बदतर कर दी है.
खालिद पाएंद कहते हैं कि मेरी जिंदगी का एक हिस्सा अफगानिस्तान में गुजरा. अब मैं अमेरिका में हूं. सच कहूं तो मैं अब कहीं का ना रहा. मैं अपने मुल्क लौट नहीं सकता और यहां का कोई ठिकाना नहीं. आज मुझे 4 डॉलर की टिप मिली है. खालिद कहते हैं कि तालिबान के कब्जे से कुछ ही दिन पहले उन्होंने अफगानिस्तान के वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. वो बताते हैं कि लेबनान की एक कंपनी का पेमेंट नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से राष्ट्रपित गनी मुझसे नाराज थे और मुझे खूब बुरा भला कहा था.
खालिद कहते हैं कि दुनिया ने हमें 20 साल दिए. हर तरह की मदद की, लेकिन हम नाकाम रहे. करप्शन की वजह से हमारा सिस्टम बिखर गया. वो कहते हैं कि सच्चाई तो ये है कि हमने अपने आवाम को धोखा दिया. मंत्री जानते थे कि तालिबान मुल्क पर कब्जा कर लेगा. वो वॉट्सएप पर मुल्क छोड़ने के मैसेज एक्सचेंज कर रहे थे.
खालिद पाएंदा को अफगानिस्तान में पहली प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने का श्रेय भी जाता है. पाएंदा कहते हैं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र, महिलाधिकार और मानवाधिकार की लंबी लड़ाई लड़ी. दरअसल, साल 2008 में खालिए पहली बार अमेरिका आए थे. अमेरिका कहने पर ही अशरफ गनी ने उन्हें साल 2019 में डिप्टी फाइनेंस मिनिस्टर बनाया था.
पाएंदा का परिवार अगस्त के पहले हफ्ते में ही अफगानिस्तान से अमेरिका पहुंचा था. वो भी 15 अगस्त से पहले ही वॉशिंगटन पहुंच गए थे. वहीं, उनके दोस्त और पत्नी नहीं चाहती थीं कि खालिद वित्त मंत्री बनें, क्योंकि उस समय तालिबान तेजी से बढ़ रहा था. काबुल में कोरोना से उनकी मां की मौत हो गई थी.
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