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अनवरत काम व धैर्य से सफलता जरूर मिलती है : प्रीति सुमन

अनवरत काम व धैर्य से सफलता जरूर मिलती है : प्रीति सुमन

IANS
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अनवरत काम व धैर्य से सफलता जरूर मिलती है : प्रीति सुमन
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अनवरत काम व धैर्य से सफलता जरूर मिलती है : प्रीति सुमन
(फोटोः रॉटर्स/चित्र सिर्फ सांकेतिक प्रयोग के लिए) 

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पटना, 4 फरवरी (आईएएनएस)| बिहार के सीतामढ़ी के बेलामछपकौनी गांव की रहने वाली प्रीति सुमन का नाम अभिनय, गायन, और निर्देशन में अगर कोई जाना पहचाना नाम बन जाए, तो आपको आश्चर्य होगा। लेकिन आज प्रीति ने मुंबई से लेकर दिल्ली तक में अपनी कलाओं का लोहा मनवाया है।

उनका कहना है कि प्रतिभा से इन क्षेत्रों में एक मुकाम बनाने की जद्दोजहद तो करनी पड़ती है, परंतु अगर कलाकार अनवरत काम करता रहे और धैर्य रखे तो देर-सबेर उसे सफलता जरूर मिलेगी।

लोकगायिका के रूप में खासकर मैथिली भाषा के गाए प्रीति के गीत खासे लोकप्रिय हुए हैं। वैसे तो प्रीति सोनी चैनल के 'महावीर हनुमान', जी टीवी पर 'अम्मा' सीरियल में अभिनय तथा डीडी बिहार पर मैथिली सीरियल, 'और सब ठीक छइ', एस़ एऩ झा के 'गजबै दुनिया' और सावधान इंडिया, क्राइम पेट्रोल, एक था राजा एक थी रानी, पेशवा बाजीराव, संतोषी मां, मशाल, सीरियलों में सहायक निर्देशक में काम कर अपनी सफलता के झंडे छोटे पर्दे पर गाड़ चुकी।

इसी दौरान उन्होंने हिंदी फिल्म 'मेक इन इंडिया' में अभिनय का भी मौका मिला और उसमें भी एक ग्रामीण महिला की भूमिका को बखूबी निभाया।

प्रीति इन दिनों मुंबई से अपने गांव बेलामछपकौनी आई हैं। इसी दौरान उन्होंने आईएएनएस के साथ एक विशेष बातचीत में कहा, मैंने जो कुछ सीखा वह अपने पिता से सीखा और बेहतर करने की सफर की ओर अग्रसर हूं।

प्रीति के फिल्मी करियर की शुरुआत लेखन से हुई, जब वह मुजफ्फरपुर के एमडीडीएम कॉलेज में पढ़ रही रही थीं, उस समय उनकी उम्र 15 साल रही होगी। कॉलेज की सहेलियां कविताएं लिखती थीं, उन्हें सुनती थीं। इस कसौटी पर अपने को जांचा तो पाया कि अभिव्यक्ति उनकी तुलना में उससे बेहतर है। वहीं से गीत, गजल लिखने का दौर आरंभ हुआ।

वे कहती हैं कि घर में ही उनको अभिनय और निर्देशन के बारीकियों को समझने का मौका मिला। प्रीति के पिता गजेन्द्र मोहन प्रसाद रंगकर्म से जुड़े थे और गांव तथा आसपास के क्षेत्रों में नाटक करवाते रहे हैं। प्रीति बताती हैं कि वे अपने गांव बेलामछपकौनी में भी कई नाटकों का मंचन किया। इसमें अंधेर नगरी चौपट राजा, सामा चकेवा है।

प्रीति का मानना है, आज भी समाज यह कबूल नहीं करता था कि बेटियां मंच पर आए। प्रारंभ में मेरा भी विरोध हुआ, लेकिन हौसले नहीं डिगे। अपने बुलंद हौसले के कारण अपने सफर को जारी रखा और 2008 में दिल्ली चली गई।

प्रीति दिल्ली में साहित्यक परिवेश, अभिनय के क्षेत्र के समझने की कोशिश की। इस कोशिश के दौर में संजीवनी आडियो, वीडियो कंपनी ने गीत लिखने का मौका दिया, लेकिन यहां भी अलग तरीके की चुनौतियां थीं।

बकौल प्रीति, अलबम वाले चाहते थे कि वह मौजूदा दौर में लोकगीतों के नाम पर अश्लीलता और फूहड़ता का जो आलम है, उसी धारा में वह बहकर लिखे, लेकिन मुझे कतई यह मंजूर नहीं था। मैंने स्पष्ट कह दिया। यहां गीतों के अलबम की कड़ी में 'कांवड़ जगहे पर', 'माई के महिमा' और 'सिया के बारात' अलबम आए।

प्रीति का कहना है कि लोकसंगीत के लिहाज से लोगों ने इन गीतों को खूब पसंद किए। हिंदी, भोजपुरी, मैथिली में कई अलबम के लिए गीत लिख चुकी प्रीति बिहार शताब्दी वर्ष के लिए भी गीत तैयार की थी। इसके अलावे मैथिली और हिंदी में तीन अलबम के लिए उन्होंने न सिर्फ गीत लिखे, बल्कि स्वयं अपनी आवाज दी।

प्रीति कहती हैं कि 'हे मइया जागू न भेलइ बिहान', 'दूल्हा बेचन आइल देखू ई सारा बाराती' गीतों को लोगों ने खूब पसंद किया।

कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुकीं प्रीति अभिनय के अतिरिक्त कई पत्र पत्रिकाओं में कविताएं भी लिखती रही हैं। 2014 में दिल्ली इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के बुक में कविता लिखने का मौका मिला। संस्कार चैनल के लिए भी प्रीति ने गीत लिखे हैं।

प्रीति अपने आगे के सफर के विषय में कहती हैं, मेरा सपना बिहार के लिए कुछ करने और यहां के विषयों खासकर यहां की समस्याओं को लेकर फिल्म बनाने की है।

उनका मानना है कि काम में समर्पण हो तो मंजिल मिल ही जाती है। अभी तो लंबा सफर है जीवन का पड़ाव बहुत कुछ सीख देता है।

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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