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'एक ऐसा व्यक्ति जो न तो कभी प्रधानमंत्री था न ही राष्ट्रपति, ना ही उसने कभी मुख्यमंत्री बनने की चाह रखी ना ही वो कहीं से सांसद या विधायक था. यही नहीं उस व्यक्ति ने जीवन भर राजनीति और नेताओं के बारे में भला बुरा कहा. लेकिन जब उस व्यक्ति का जीवन समाप्त हो गया था तब उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई जो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को मिलती है.'
23 जनवरी 1927 को पुणे में केशव सीताराम ठाकरे के घर जन्मे बाल केशव ठाकरे (Bal Thackeray) जिन्हें लोग प्यार से बाला साहेब ठाकरे भी बुलाते थे. उनकी मां का नाम रमाबाई था. बाद में पूरा परिवार मुंबई के पास भिवंडी में चला गया था. बाला साहेब का जन्म चार बेटियों के पैदा होने के बाद हुआ था. बाल ठाकरे के और भी भाई थे. पर बाल ठाकरे की बात कुछ और ही थी.
साल 1939 था जब ठाकरे परिवार भिवंडी से मुंबई के दादर इलाके में रहने आए थे. उस समय दुनिया दूसरे महायुद्ध से गुजर रही थी. जिसपर 'टाइम्स ऑफ इंडिया' अखबार में बैन बेरी कार्टून निकालते थे. बाल ठाकरे बड़ी जिज्ञासा से इन कार्टून्स को देखा करते थे.
बाबूराव पेंटर एक दिन दादर में बाल ठाकरे के घर आए थे. वहां दिवार पर बाल ठाकरे द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग टंगी हुई थी जिस पर बाबूराव की निगाह पड़ी. उन्होंने बाल ठाकरे को बुलाकर पूछा क्या करते हो? बाल ठाकरे बोले कि कल से वो जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स जानेवाले हैं जहां उन्होंने एडमिशन ले लिया है.
जनता पार्टी के उदय से एक नई उम्मीद जाग उठी थी. शिवसेना इस दौर में नाजुक हालातों से गुजर रही थी. बाल ठाकरे ने तब कहा था कि नवंबर 1978 में हुए मुंबई महानगर निगम चुनाव में भगवा नहीं लहराया तो शिवसेना के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दूंगा. लेकिन शिवसेना के केवल 21 पार्षद ही चुन कर आए. पिछले चुनाव से आधी संख्या घट गई थी. इसलिए चुनाव के बाद शिवाजी पार्क की रैली में बाल ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद भावुक शिवसैनिकों ने काफी हंगामा करके उन्हें इस्तीफा वापस लेने पर मजबूर किया था.
जून 1980 को महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें शिवसेना ने एक भी सीट पर न लड़कर कांग्रेस को समर्थन दे दिया था. जिससे जनता पार्टी की हार हुई और उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी. शरद पवार की समाजवादी कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही. बाल ठाकरे के मित्र बैरिस्टर अब्दुल रहमान अंतुले पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बने बदले में कांग्रेस ने शिवसेना को विधान परिषद की तीन सीटें दी थी.
मुंबई के विलेपार्ले विधानसभा सीट के लिए दिसंबर 1987 में हुए उप-चुनाव में पहली बार शिवसेना ने हिंदुत्व का आक्रामक प्रचार किया था. शिवसेना की लड़ाई जनता दल और कांग्रेस दोनों से थी. बीजेपी ने उस समय जनता दल के उम्मीदवार को समर्थन दिया था. पहली बार 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं' ये घोषणा चुनावी अखाड़े में की गई थी. इस चुनाव में एक्टर मिथुन चक्रवर्ती और नाना पाटेकर ने शिवसेना के उम्मीदवार का प्रचार किया था.
हर रोज सुबह बाल ठाकरे कम से कम 16 अखबार पढ़ते थे. वो महत्वपूर्ण खबरों को अंडरलाइन करते थे. ताकि जिस इलाके की खबर हो वहां के शिवसेना लोक प्रतिनिधि या पदाधिकारी-कार्यकर्ता को उस समस्या के बारे में सूचित कर सके. जैसे कि कहीं कचरा साफ नहीं हुआ ऐसी खबर हो तो वो वहां के विधायक, पार्षद या शिवसैनिक को उसे तुरंत करवाने के आदेश दिया करते थे. वो इतिहास पढ़ने में भी काफी रुचि रखते थे. लेकिन उन्हें झूठे और काल्पनिक प्रेम कहानियों वाले उपन्यास पढ़ना बिल्कुल पसंद नहीं था.
अभिनेता राज कपूर और बाल ठाकरे काफी अच्छे दोस्त थे. 'मेरा नाम जोकर' फिल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद राज कपूर ने बाल ठाकरे और उनके भाई श्रीकांत ठाकरे को सेकंड एडिट कट दिखाने स्टूडियो बुलाया था. श्रीकांत ठाकरे का उर्दू भाषा पर प्रभुत्व था और बाल ठाकरे को सिनेमा में काफी रुचि थी. इसलिए राज कपूर जैसे दिग्गज फिल्म निर्माता को भी कभी उनसे सुझाव लेने में झिझक नहीं महसूस होती थी.
फिल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान एक हादसे में अमिताभ गंभीर रूप से जख्मी हुए थे. तब उन्हें हवाई जहाज से इलाज के लिए मुंबई लाया गया था. लेकिन अमिताभ के कद जितनी बड़ी एम्ब्युलेंस उस समय उपलब्ध नही थी. तब अमिताभ के सेक्रेटरी को पता लगा कि मुंबई के गिरगाव में शिवसेना शाखा नंबर 19 में एक बड़ी एम्ब्युलेंस मिलेगी. तब बाल ठाकरे ने उसे अमिताभ के लिए तुरंत एयरपोर्ट भिजवाने को कहा था. उसी शाखा नंबर 19 के एक कार्यक्रम में बाल ठाकरे समेत अमिताभ बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुए थे.
बाल ठाकरे और दिलीप कुमार की गहरी दोस्ती थी. अपने आवास मातोश्री के टेरेस पर बाल ठाकरे और दिलीप कुमार गप्पे शप्पों के साथ वॉर्म (गर्म) बियर का स्वाद लेते थे. दिलीप कुमार को मीना ताई ठाकरे के हाथ का खाना काफी पसंद था. लेकीन दिलीप कुमार ने 'निशान-ए-पाकिस्तान' खिताब स्वीकार ने के बाद दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी. तब बाल ठाकरे ने कहा था कि, "अभी चना भी है, बियर भी है, लेकिन दिलीप कुमार के रास्ते बदल गए हैं".
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