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लोक आस्था का महापर्व छठ (Chhath Puja) का चार दिवसीय अनुष्ठान शुक्रवार यानी 17 नवंबर से शुरू हो गया. इस पर्व का पौराणिक महत्व तो है ही, इसके अलावा यह पर्व स्वच्छता, सादगी और पवित्रता का भी संदेश देता है. सबसे बड़ी बात है कि इस अनुष्ठान या पर्व में मजहब भी आड़े नहीं आता. यही कारण कहा जाता है कि यह पर्व सांप्रदायिक सौहार्द की पाठ भी पढ़ाता है. बिहार के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुस्लिम महिलाएं और पुरुष इस छठ पर्व को पूरे सनातन पद्धति और रीति-रिवाज से करती हैं.
गोपालगंज और वैशाली जिले के कई गांवों के मुस्लिम घरों में छठ के गीत गूंज रहे हैं. यही नहीं छठ पर्व में उपयोग होने वाले मिट्टी के चूल्हे, धागा (बद्धी) और अरता पात भी अधिकांश इलाकों में मुस्लिम परिवार की महिलाएं बनाती हैं.
सूर्योपासना के इस महापर्व छठ व्रत की शुक्रवार यानी 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरुआत हो चुकी है. शनिवार को खरना है.
रविवार, 18 नवंबर, को अस्ताचलगामी और सोमवार, 19 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.
सबसे गौर करने वाली बात है कि इनकी न केवल छठ व्रत को लेकर श्रद्धा है बल्कि इनका पूरा विश्वास भी है.
संग्रामपुर गांव की रहने वाली शबनम खातून, संतरा खातून, नूरजहां खातून का मानना है कि उनके घर पर छठी मइया की कृपा बरसी, तभी घरों में बच्चों की किलकारियां गूंजी. आज इनका विश्वास छठी मईया पर बना हुआ है.
इनका मानना है कि वे पूरी शुद्धता और रीति रिवाज, नियम के साथ छठ पर्व करती हैं. उनके घर के पुरुष सदस्य भी इसमें सहयोग करते हैं.
इधर, वैशाली जिले के लालगंज और सराय थाना क्षेत्रों में भी कई मुस्लिम महिला और पुरुष प्रति वर्ष छठ पर्व करती हैं. इन लोगों का कहना है कि इस पर्व के बीच मजहब कभी आड़े नहीं आता.
वह अन्य हिंदू महिलाओं के साथ पर्व की तैयारी करती हैं और एक ही घाट पर भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैं.
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