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“अब तो वह रिटायर होने वाले हैं, अब कुछ ही दिन उनकी सर्विस बची हुई है. कभी कोई त्रुटि हो गई और उसका अहसास हो गया तो अब ध्यान नहीं देना चाहिए.” ये कहना है बिहार के मुखिया नीतीश कुमार का. ये बयान फर्जी फोन कॉल में फंसे DGP एसके सिंघल को लेकर था. एक फर्जी फोन कॉल ने बिहार की सियासत में गर्माहट ला दी है. बीजेपी नीतीश कुमार से जवाब और कार्रवाई की मांग कर रही है, जबकि नीतीश कुमार रिटायरमेंट और गलती का अहसास का हवाले देते हुए नरमी बर्तने की बात कर रहे हैं. हम पूरी कहानी बताएंगे, लेकिन इससे पहले हम जान लेते हैं कि इस पूरे मामले पर किसने क्या कहा?
इस पूरे मामले पर नीतीश कुमार ने कहा कि इस बात की जानकारी लगी कि कोई फोन कर रहा है. डीजीपी को लग गया कि कोई गलत आदमी फोन कर रहा है. इसके बाद जांच कराई गई तो पता चल गया कि कोई गड़बड़ आदमी फोन कर रहा है. अब कार्रवाई की जा रही है. इस स्कैम में घिरे डीजीपी पर क्या कोई कार्रवाई होगी? इस सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा कि अब तो वह रिटायर होने वाले हैं. अब कुछ ही दिन उनकी सर्विस बची हुई है. कभी कोई त्रुटि हो गई और उसका अहसास हो गया तो अब ध्यान नहीं देना चाहिए. सुशील मोदी द्वारा लगाए जा रहे आरोप पर सीएम ने कहा कि उन्हें बोलकर टीआरपी मिलती है तो उन्हें बोलने दीजिए.
DGP को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर फोन करने वाले जालसाज अभिषेक अग्रवाल की बिहार के आर्थिक अपराध इकाई ने पोल खोल दी है. वो अपने मित्र IPS आदित्य कुमार के ऊपर से शराब बंदी केस हटाने और कहीं पोस्टिंग कराने के लिए DGP को चीफ जस्टिस के नाम पर फोन करता था. DGP भी उसके झांसे में आ गए थे. जब कभी वो नाराज होकर फोन काटता था, DGP उससे समय लेकर वाट्सएप पर कॉल कर बात करते थे.
EOU के DSP भास्कर रंजन ने रविवार को पकड़े गये अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ जो प्राथमिकी दर्ज करायी है, उसमें ये बातें लिखी हुई हैं. प्राथमिकी के मुताबिक अभिषेक अग्रवाल ने स्वीकार किया है कि “ DGP बिहार द्वारा भी मेरे छद्म रूप को असली मानते हुए मुझे सर, सर कह कर संबोधित किया जाता था और उनके द्वारा मेरे नाराजगी दिखाने पर मुझसे मोबाइल पर वाट्सएप के माध्यम से समय लेकर कॉल भी किया जाता था.”
EOU की FIR कहती है कि अभिषेक अग्रवाल ने खुद को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बताते हुए DGP एसके सिंघल को कई दफे कॉल किया. अभिषेक ने पूरे रौब-दाब के साथ उनसे बात की और बिहार के डीजीपी उनके दबाव में आ गये. उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि अभिषेक अग्रवाल वाकई पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस है. FIR के मुताबिक ये सारा खेल इसलिए किया गया था कि बिहार के डीजीपी गया के पूर्व SSP आदित्य कुमार के खिलाफ चल रही विभागीय कार्यवाही को समाप्त कर दें और पुलिस मुख्यालय में बैठे आदित्य कुमार की किसी जिले में पोस्टिंग कर दें.
EOU द्वारा जो FIR दर्ज की गयी है, उसमें जालसाज अभिषेक अग्रवाल की जुबानी कई बातें कहलवायी गयी हैं. FIR के मुताबिक अभिषेक अग्रवाल का कहना था कि “IPS अधिकारी आदित्य कुमार (जो पूर्व में गया के SSP पद पर तैनात थे और वर्तमान में बिहार पुलिस के मुख्यालय पटेल भवन में तैनात हैं) को मैं पिछले चार सालों से जानता हूं और वे मेरे अभिन्न मित्र हैं. आदित्य कुमार के खिलाफ शराब से संबंधित केस दर्ज था, जिसे खत्म कराने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. आदित्य कुमार की गया में एसएसपी के तौर पर पोस्टिंग के दौरान तत्कालीन आईजी अमित लोढ़ा से भी विवाद चल रहा था और वो उन्हें फंसाना चाहते थे.”
EOU ने इस पूरे मामले में जो FIR दर्ज की है उसमें अभिषेक अग्रवाल कह रहा है कि “आदित्य कुमार ने मुझसे केस के संबंध में चर्चा की थी. उन्होंने मुझसे अपेक्षित सलाह और सहयोग की अपेक्षा की थी. उनसे बातचीत में ये निर्णय हुआ कि हाईकोर्ट, पटना के किसी वरिष्ठ जज के नाम पर अगर डीजीपी, बिहार से कहो कि आदित्य कुमार के खिलाफ प्रोसिडिंग खत्म करते हुए किसी जिले में पदस्थापना हो सकता है.
आदित्य कुमार के कहे अनुसार उनके कार्यालय और बरिस्ता रेस्टोरेंट बोरिंग रोड में कई दफे बैठक और मंत्रणा की गई. हम दोनों ने मिलकर एक सुनियोजित योजना तैयार की. जिसके तहत हम दोनों ने संजय करोल, चीफ जस्टिस, पटना हाईकोर्ट का छद्म रूप धारण कर वाट्सएप और नार्मल कॉल से डीजीपी, बिहार को झांसा देकर अपने प्रभाव में लेकर आदित्य कुमार के हित में प्रशासनिक निर्णय लेने हेतु बाध्य करने का खाका तैयार किया.”
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