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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार के पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan Singh) की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई को स्थगित कर दिया हैं. आज 11 अगस्त शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 26 सितंबर तय की हैं. आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दिवगंत आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से दाखिल की गई हैं.
आज शुक्रवार को गोपालगंज के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा, "हम इसे सितंबर में किसी भी गैर विविध दिन पर उठाएंगे". सुनवाई के दौरान बिहार सरकार के वकील ने रंजीत कुमार ने बेंच को बताया कि राज्य सरकार ने एक ही दिन में 97 दोषियों की सज़ा में छूट देने पर विचार किया हैं न कि सिर्फ आनंद मोहन को.
इस पर बेंच ने कहा,"क्या इन सभी 97 लोगों पर एक लोक सेवक की हत्या का आरोप लगाया गया था? इसके जवाब में रंजीत कुमार ने कहा कि वह उन दोषियों को वर्गीकृत करते हुए एक विस्तृत प्रतिक्रिया दाखिल करेंगे,जिन्हें उनके अपराध के आधार पर छूट दी गई हैं.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को दो सप्ताह की अवधि के भीतर एक अतिरिक्त जवाबी हलफनामा दायर करने की अनुमति दी और याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर हलफनामा यदि कोई हो, दाखिल करने के लिए एक सप्ताह की अवधि भी दी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने उन्हें मामले से संबंधित आधिकारिक फाइलों की प्रति नहीं दी है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी करते हुए याचिका में लगें आरोपों पर ज़वाब दाखिल करने को कहा था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि एक लोक सेवक की हत्या के अपराध में कैदी आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. उसकी समय पूर्व रिहाई पर विचार किया गया.
प्रासंगिक रिपोर्ट अनुकूल होने के बाद आनंद मोहन को रिहा किया गया हैं. एक ओर आम जनता की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र माना जाता हैं दूसरी तरफ किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए विचार किए जाने के लिए पात्र नहीं माना जाता है.पीड़ित की सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया गया है.
गोपालगंज के तत्कालीन मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में आरोप लगाया गया कि बिहार सरकार ने 10 अप्रैल, 2023 के संशोधन के जरिए पूर्वव्यापी प्रभाव से बिहार जेल मैनुअल, 2012 में संशोधन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषी आनंद मोहन को छूट का लाभ दिया जाए.
1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कृष्णैया को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था, जब उनकी गाड़ी ने गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश की थी. आनंद मोहन सिंह पर भीड़ को उकसाने के आरोप लगे थे. जी कृष्णैया के शव पर गोलियों के भी निशान थे. इसी मामले में बिहार सरकार ने आनंद मोहन को नियम बदल कर रिहा कर दिया.
पूर्व सांसद आनंद मोहन 16 साल जेल में बिताने के बाद इसी साल 27 अप्रैल को जेल से बाहरआए हैं.आनंद मोहन पर गोपालगंज के DM रहे जी कृष्णैया की हत्या में शामिल होने के दोषी हैं. इस मामले में उम्र कैद की सजा के तौर पर उन्होंने 16 साल जेल में बिताए हैं. बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को कारा नियमों में बदलाव किया, जिसके बाद उनकी रिहाई हुई थी.
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