advertisement
बिहार (Bihar) में पकड़ौआ विवाह (Catch Marriage) के एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. 10 नवंबर को कोर्ट ने अपने फैसले में 10 साल पहले हुई आर्मी जवान की जबरन शादी को अमान्य करार दिया.
साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी की कि हिंदू विवाह तब तक मान्य नहीं है जब तक दूल्हा-दुल्हन अपनी मर्जी से पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे न ले लें. कोर्ट ने इस शादी को रद्द कर दिया है. आइए देखते हैं क्या है पूरा मामला?
करीब 10 साल पहले बिहार के नवादा जिले में काशीचक में रहने वाले आर्मी जवान रविकांत की कथित शादी हुई थी. ये मामला 30 जून 2013 का है, जब रविकांत सेना में एक सिग्नलमैन थे. वे लखीसराय के अशोक धाम मंदिर में प्रार्थना करने गए थे. उसी दिन उनका अपहरण कर लिया गया और बंदूक की नोक पर लड़की को सिन्दूर लगाने के लिए मजबूर किया गया.
इस जबरन शादी को रद्द करने के लिए रविकांत ने फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल की. 27 जनवरी, 2020 को उसकी याचिका फैमिली कोर्ट से खारिज हो गई.
इसके बाद उन्होंने पटना हाईकोर्ट का रुख किया. अब हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस शादी को रद्द कर दिया साथ ही फैमिली कोर्ट के फैसले को भी 'त्रुटिपूर्ण' बताया.
पटना हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान दुल्हन पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि कथित विवाह के दौरान 'सप्तपदि' (सात फेरों) का मौलिक अनुष्ठान पूरा हुआ था. कोर्ट ने पाया कि दुल्हन की ओर से मौखिक गवाही देने वाले पुजारी को 'सप्तपदी' के बारे में कोई जानकारी थी. साथ ही वो ये भी नहीं बता पाए कि शादी किस जगह हुई है. कोर्ट ने इस कथित विवाह को ये कहते हुए रद्द कर दिया कि ये कानून की नजर में अमान्य है.
पटना हाईकोर्ट में जस्टिस पीबी बजंथरी और जस्टिस अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया.
बता दें कि बिहार में कुछ साल पहले तक 'पकड़ौआ विवाह' का काफी चलन था. ग्रामीण इलाकों में लड़की के घर वाले अच्छे लड़के को पकड़कर उसकी शादी जबरन अपनी बेटी से करा देते हैं. इस मुद्दे पर कई फिल्में भी बन चुकीं हैं. हालांकि, हाल के सालों में ऐसे विवाहों में कमी आई है. अब पटना हाईकोर्ट का ये फैसला ऐसी शादियों की रोक के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)