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दरअसल, यह मौका था जाट समुदाय के प्रभावशाली नेताओं के साथ बैठक का। बुधवार को दिल्ली में भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के घर पर जाट समुदाय के 200 से ज्यादा नेताओं के साथ अमित शाह बैठक कर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनसे भाजपा को समर्थन देने की अपील कर रहे थे लेकिन उन्हें इस बात का भी बखूबी अंदाजा था कि चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी को लेकर जाट समुदाय के लोगों में एक प्रकार का सॉफ्ट कार्नर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग यह सोच रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के पोते और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी का राजनीतिक पुनर्वास होना ही चाहिए।
जाट समुदाय की इस सोच का अंदाजा गृह मंत्री अमित शाह को भी बखूबी था लेकिन इसके साथ ही उन्हें यह भी पता था कि जाट जयंत चौधरी को तो चाहते हैं लेकिन अखिलेश यादव को वोट नहीं करना चाहते हैं। इसलिए जाट समुदाय के प्रभावशाली नेताओं की बैठक में ही शाह ने खुलकर जयंत चौधरी को साथ आने का ऑफर कर दिया। शाह के इस ऑफर की सबसे खास बात यह रही कि जयंत चौधरी को समझा कर भाजपा के साथ लाने की जिम्मेदारी भी उन्होंने जाट समुदाय के इन्ही नेताओं को सौंप दी।
शाह ने कहा कि, अगर सपा और रालोद की सरकार बन भी गई तो उसमें सिर्फ अखिलेश यादव की ही चलेगी, जयंत चौधरी की नहीं। जयंत भाई ने गलत घर चुन लिया है, अभी कुछ नहीं हो सकता लेकिन भविष्य के लिए आप लोग उन्हें जरूर समझाइए।
दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक दल अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। सपा-रालोद गठबंधन की वजह से भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में जयंत चौधरी को साथ आने का खुला ऑफर देकर अमित शाह ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया है।
प्रदेश में पहले चरण के तहत 10 फरवरी को 58 सीटों और दूसरे चरण के तहत 14 फरवरी को 55 सीटों पर मतदान होना है। इन 113 सीटों पर जीत-हार का फैसला करने में जाट मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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