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विकास का पुनर्निर्माण अभूतपूर्व तरीके से होना है। संरक्षणवाद और प्रतिस्पर्धा को सावधानीपूर्वक संतुलित करना होगा। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी विनिर्माण सुविधाओं पर फोकस करे और इसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाए। लोगों को उम्मीद है कि सरकार इसके लिए एक नई राष्ट्रीय विनिर्माण नीति तैयार करेगी।
हमें बिजली और लॉजिस्टिक्स पर भी होने वाले खर्च को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। इन सभी चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित करने की जरूरत है। जीडीपी में लॉजिस्टिक शेयर का योगदान भारत में लगभग 13 से 14 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक बेंचमार्क 9 से 10 प्रतिशत है। उद्योगों को माल, कच्चे माल और सेवाओं के परिवहन पर भारी लागत वहन करना पड़ता है। हमारे परिवहन का 65 प्रतिशत हिस्सा सड़क से होता है, जो कि रेलवे और जलमार्ग की तुलना में अधिक महंगा है। जबकि वैश्विक स्तर पर, सड़क परिवहन पर उद्योगों की निर्भरता 25 प्रतिशत है। राष्ट्रीय रसद नीति पाइपलाइन में है, जो 2022 तक जीडीपी में लॉजिस्टिक हिस्सेदारी को 10 प्रतिशत तक कम करने की मांग कर रही है। रेलवे, रोडवेज, जलमार्ग और वायुमार्ग में निवेश से अर्थव्यवस्था और रोजगार में मांग पैदा करने में मदद मिलेगी और ऊपर निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।
कई अड़चनें हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। भूमि अधिग्रहण की राह में कानूनी और प्रक्रियात्मक देरी एक बड़ी चुनौती है। इसी तरह श्रम क्षेत्र में सुधारों के मामले में भी ऐसा ही है। व्यापार करने की लागत काफी अधिक है। हमारी वैश्विक रैंकिंग भी कम है।
भारत उच्च ब्याज दर के दौर से ब्याज दरों को कम करने की ओर बढ़ रहा है। आरबीआई लगातार रेपो दर और रिवर्स रेपो दर दोनों को कम कर रहा है, लेकिन ट्रांसमिशन वांछित गति से नहीं हो रहा है। मेरा मानना है कि भारत के पास वैश्विक विनिर्माण पूंजी को आकर्षित करने और दुनिया के कारखाने के रूप में उभरने का उचित मौका है। भारत में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के सामूहिक प्रयास से ही विनिर्माण क्षेत्र नई ऊंचाइयां छू सकता है।
( लेखक- गोपाल कृष्ण अग्रवाल, भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
--आईएएनएस
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