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दुनिया भर में कोविड के बाद कंपनियों में काम करने को लेकर कल्चर बदला है. महामारी के बाद ऑफिस व्यवस्था पर थोड़ी लगाम लगी है कोवर्किंग इंडस्ट्री की मांग में तेजी आई है. क्योंकि, यह कर्मचारी और कंपनियों के लिए भी फायदे का सौदा है. कोवर्किंग प्लेस को लेकर दी ऑफिस पास के फाउंडर और CEO आदित्य बताते हैं कि साल 2023 संभवत: कोवर्किंग इंडस्ट्री के लिए सबसे अच्छा साल रहने वाला है. इसके पीछे वह तीन वजहों को बताते हैं.
पहला: कोविड का डर समाप्त हो गया है. जिन कंपनियों को पहले ऑफिस से काम करने को लेकर चिंता थी, अब वे महामारी को लेकर कम चिंतित हैं. इस कारण सभी प्रकार के निवासियों में इसकी मांग बढ़ रही है.
दूसरा: कमर्शियल प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट के कारण, कोवर्किंग प्लेयर ग्राहकों को आकर्षक डील पेश करने में सक्षम हैं. केवल कोवर्किंग स्पेस में शिफ्ट होने से, कंपनियां अपने ऑफिस के काम के खर्च में 18 से 22% की बचत कर सकती हैं. लागत में होने वाली यह बचत कंपनियों को पारंपरिक कार्यालयों से कोवर्किंग की ओर शिफ्ट कर रही है.
तीसरा: भारतीय अर्थव्यवस्था काफी औपचारिक हुई है। छोटे और मध्य-व्यवसाय (SMBs) जो पहले GST के दायरे से बाहर थे और घरों, बेसमेंट या अनधिकृत कॉलोनियों से संचालित हो रहे थे, अब औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना चाह रहे हैं.
इससे कोवर्किंग की मांग बढ़ रही है. कोवर्किंग इंडस्ट्री, जो वर्तमान में सारे कमर्शियल रियल एस्टेट का 18% हिस्सा है, वह अगले 18 से 24 महीनों में 25% के स्तर तक पहुंच जाएगा. उपरोक्त कारकों के कारण, अगले 2 से 3 वर्षों में इस उद्योग के काफी तेजी से बढ़ने की संभावना है.
कोविड के पहले भारतीय कोवर्किंग इंडस्ट्री केवल फ्रीलांसर और स्टार्अप के बीच लोकप्रिय थी. हालांकि, महामारी के बाद कोवर्किंग और व्यवस्थित ऑफिस उद्योग फ्रीलांसर, छोटे और मध्यम व्यवसायों (SMBs), स्टार्टअप, बड़े संगठनों और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) सहित सभी निवासियों द्वारा मांग में हैं. 1-500 के बीच सीट लेने वाले फ्रीलांसर, स्टार्टअप और SMB द्वारा कोवर्किंग स्पेस की मांग बहुत अधिक है. यह क्षेत्र कीमत के प्रति संवेदनशील है और लंबी अवधि की व्यवस्था में शामिल नहीं होना चाहता. इनकी मुख्य आवश्यकता कम कीमत और अधिक फ्लैक्सिबिलिटी है.
कोवर्किंग इंडस्ट्री के लिए यह सबसे तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है. बड़े संगठन और MNC क्लाइंट (जो 500 से अधिक सीटें लेते हैं) व्यवस्थित कार्यालय वातावरण पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि उनके कार्यालयों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और उनके ब्रांड दिशानिर्देशों के अनुसार विशेष रूप से बनाया जाए. ये निवासी लंबी अवधि की व्यवस्था में प्रवेश करना चाहते हैं और कीमत की चिंता नहीं करते. इनकी मुख्य आवश्यकता एक बेहतरीन, विशेष रूप से बनाया गया ऑफिस है, जहां ऑफिस के सभी काम प्रोफेशनल ऑपरेटर द्वारा व्यवस्थित किए जाते हों.
इस पर आदित्व वर्मा कहते हैं कि भारत में मंदी की आशंका को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है. हालांकि, मुझे लगता है कि कुछ यूरोपीय देशों को वास्तव में मंदी का सामना करना पड़ सकता है. अमेरिका कुछ क्वार्टर में मंदी से गुजर सकता है लेकिन वहां से रोजगार के मौजूदा आंकड़े भी अच्छे संकेत दे रहे हैं. घरेलू खपत के मामले में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई एक बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है.
यूरोपीय अर्थव्यवस्था से सीधे प्रभावित होने वाले भारतीय व्यवसाय 2023 के दौरान परेशानी महसूस कर सकते हैं. लेकिन, यह भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत छोटा प्रतिशत है. अगले 18 से 24 महीनों में फ्लेक्स स्पेस की मांग बढ़ने की काफी संभावना है क्योंकि इसके पक्ष में होने वाले कारक इसके खिलाफ होने वाले कारकों से बहुत अधिक हैं. फ्लेक्स स्पेस की मांग को बढ़ाने वाले किसी भी कारक की मंदी से प्रभावित होने की संभावना नहीं है.
उद्योग में TOP एकमात्र ऐसी कंपनी है जो नेबरहुड कोवर्किंग पेश करती है, जो पारंपरिक कोवर्किंग से अलग है क्योंकि यह पास (5 kms से कम दूरी) के लक्षित ग्राहकों की मांग पूरी करती है। इसका मूल आधार यह है कि SMBs दूर जाने के बजाय अपने घर/व्यवसाय की जगह के पास ही बेहतरीन क्वालिटी वाली ऑफिस फैसिलिटी में काम करना पसंद करते हैं. यह TOP को उसके लक्षित क्षेत्र, मूल्य-निर्धारण, मार्केटिंग और ऑफिस के साइज में विशिष्ट बनाता है. TOP ऑफिस, CBD क्षेत्रों के साथ-साथ घर के आसपास स्थित हैं ताकि SMBs लंबी दूर तय किये बिना पास के ऑफिस तक पहुंच सकें.
वर्तमान में कमर्शियल रियल एस्टेट स्टॉक शीर्ष 8 भारतीय शहरों में केंद्रित है. पूरा ग्रेड A स्टॉक लगभग 650-700 मिलियन स्क्वायर फीट है. इसमें सालाना लगभग 40 से 50 मिलियन स्क्वायर फीट नया स्टॉक शामिल होता है, जबकि 35 से 40 मिलियन स्क्वायर फ़ीट का उपयोग होता है. नेशनल कमर्शियल रियल एस्टेट मार्केट में लगभग 15% स्थान खाली हैं. भारत में आर्थिक गतिविधियां काफी हद तक शीर्ष 8 शहरों में केंद्रित हैं. यदि कोई टियर 2 और 3 शहरों में विकास करना चाहता है, तो वर्तमान में इसके अवसर सीमित हैं. मेरे विचार में, बुनियादी ढांचे के विकास को छोटे शहरों और जिलों तक पहुंचने में 2 से 3 साल या उससे अधिक का समय लगेगा और यह समय उस अवसर को ढूंढने का सही समय होगा. जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक प्रमुख शहरों के बाहर एक सफल को-वर्किंग बिजनेस की कल्पना करना मुश्किल है.
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