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सदी इक्कीसवीं, साल सत्रहवां. 21वीं सदी की उम्र में ये 17वां साल उसकी जवानी की कहानी कहता है. लेकिन, जब कभी हम पीछे मुड़कर देखेंगे तो इसी 2017 में 17 और उससे कमतर उम्र वाले बच्चों के खून सने हाथ और उनके अपराध याद आएंगे. इस साल जुर्म की तीन ऐसी वारदातें हुईं जो समाज को, मां-बाप को, बच्चों को और इन सबके आपसी रिश्तों के ताने-बाने को नई रोशनी में देखने पर मजबूर करती हैं.
वो सितंबर की एक खुशनुमा सुबह थी. उजली और रोशन. लेकिन एक परिवार के लिए वो घने अंधेरे की शुरुआत थी. रेयान इंटरनेशनल स्कूल के बाथरूम में 7 साल के प्रदुम्न का शव मिलता है. खून से लथपथ. गुरुग्राम पुलिस हरकत में आती है और आनन फानन में एक बस कंडक्टर को गिरफ्तार कर लिया जाता है. क्या मामला सुलझ गया. बिल्कुल नहीं. बच्चे के पिता को भरोसा नहीं हुआ. तफ्तीश की आवाज उठाई. आखिर में दबाव बढ़ता देख सीबीआई को बुलाया गया. और फिर होता है धमाका. सीबीआई का धमाका. ये खुलासा कि कत्ल दरअसल, रेयान के ही 11वीं में पढ़ने वाले छात्र ने दिया है.
इस घटना ने बच्चों की परवरिश को लेकर नई बहस छेड़ दी. बहस जारी है, बहस का फैसला बाकी है और सबक सीखने का सिलसिला अभी चल ही रहा है.
महज दो महीने बीते थे कि एक बार फिर दिल्ली दहल उठी. इस बार मामला और भी संगीन था. क्योंकि इस कथित अपराध को करने वालों की उम्र महज 4 साल थी. लड़का और लड़की दोनों 5 साल. आरोप ये कि लड़के ने लड़की का 'रेप' किया. मामला दिल्ली के नामी स्कूल का था. कहा गया कि सीसीटीवी में बच्ची ठीक दिख रही है. फिर सीसीटीवी के ही जरिए बच्ची की मां ने नए आरोप लगाए. जिरह हुईं, वकील किए गए. लेकिन जरा सोचकर देखिए. अगर सचमुच वो सब हुआ है जो मां का आरोप है तो हम कहां जा रहे हैं. ये ठहर कर सोचने की जरूरत है. टीवी और इंटरनेट के हमले के दौर में हमने मासूमियत की गठरी बांधकर कौन सी नदी में फेंक दी है.
एक घर है, ग्रेटर नोएडा की ऊंची इमारत में. वही इमारतें जहां बहुत सारे घर होते हैं. और दूर से देखने पर सब माचिस की डिब्बियों से नजर आते हैं. अब तक तो सिर्फ ये दिखते माचिस की डिब्बी से थे. लेकिन बीते कुछ वक्त में एक के बाद एक हो रही वारदातों से लगता है कि ये सुलग भी वैसे ही रहे हैं. तीलियों की रगड़ जैसे. अब देखिए न. 11वीं में पढ़ने वाला एक लड़का, मां और बहन को मारकर, एक रात में कातिल बन गया. ये अलग बात है कि उसके कातिल बनने की पूरी प्रक्रिया, यकीनन, एक रात की नहीं हो सकती. अब बताया जा रहा है कि मां अक्सर उसे पीटती थीं, बहन चिढ़ाया करती थी. वो किसी खतरनाक मोबाइल गेम का आदी था. लेकिन, ये सब बात अब हो रही हैं. अब जब एक परिवार बिखर गया है. अब जब एक बेटे ने अपनी ही मां और बहन की जान लेली है.
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ये तीन अपराध इस बदलते दौर में चेतावनी की जोरदार घंटी की तरह कानों में गूंजते रहने चाहिए. ताकि, बच्चों को बेरहम अपराधी में बदलने से समय रहते बचाया जा सके.
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