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उत्तर प्रदेश के एटा जिले में 16 साल पहले पहलोई और ताईपुर गांव के पास सुरेंद्र ईंट-भट्ठे पर हुए पुलिस एनकाउंटर में राजाराम की मौत हो गई थी. इस एनकाउंटर को अब गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने फर्जी मानते हुए अपहरण कर हत्या के आरोप में सिद्धपुरा थाने में तैनात तत्कालीन थानाध्यक्ष पवन सिंह समेत नौ पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए सजा बरकरार कर दी है. मंगलवार को गाजियाबाद की सीबीआई न्यायालय के विशेष न्यायाधीश परवेंद्र कुमार शर्मा की अदालत ने नौ पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है. सजा सुनाए जाने को लेकर आज अदालत में बहस होगी.
16 साल पहले थाने में तैनात दरोगा अजंट सिंह और सिपाही राजेंद्र के अनुसार द्वारा बनाई गई झूठी कहानी कुछ इस तरह दर्शाई गई थी. पुलिस ने अपनी ही रची कहानी में बताया कि सिढपुरा धुमरी मार्ग पर दरोगा अपने हमराही राजेंद्र के साथ गश्त पर निकले थे. तभी रोड होल्ड अप करने के लिए घात लगाए बदमाशों से पुलिस की मुठभेड़ हो गई. पुलिस का आरोप है कि बदमाशों ने लूटने का प्रयास किया था. दरोगा जी ने बहादुरी का परिचय देते हुए आड़ ली और बदमाशों की फायरिंग का बहादुरी से परिचय देते हुए भाग रहे बदमाश राजाराम शर्मा को ढेर कर दिया.
पुलिस की फायरिंग में बदमाशों के पैर उखड़ गए और अन्य बदमाश फरार हो गए. बदमाशों की तरफ से की गई फायरिंग में सिपाही राजेंद्र भी घायल हुए. पुलिस ने मृतक राजाराम शर्मा के शव के पास से एक 315 बोर का तमंचा और तीन खोखा, नौ जिंदा कारतूस भी बरामद भी किए थे.
मृतक राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी ने घटना की वास्तविकता बताते हुए कहा - "पुलिस हमारे पति को मोटरसाइकिल पर बैठाकर पूछताछ के लिए थाने ले गई थी. जब देर शाम तक वह घर नहीं पहुंचे तो मैं अपने जेठ,देवर और परिजनों के साथ थाना सिढपूरा पहुंची. पूछे जाने पर पुलिस कर्मियों ने गालियां देकर थाने से भगा दिया. दो दिन बाद अखबार में छपी एनकाउंटर की खबर से परिजनों को घटना के बारे में पता चला था."
मृतक की पत्नी संतोष देवी ने तत्कालीन पुलिस कप्तान राजेश राय से लिखित शिकायत दर्ज करवाते हुए सिढपूरा थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष पवन सिंह, एसआई एजेंट सिंह,श्री पाल ठेनुआ सहित सहयोगी पुलिस कर्मी सरनाम सिंह,राजेंद्र कुमार के विरुद्ध तत्कालीन पुलिस कप्तान एटा को शिकायत दी. राजा राम की पत्नी के द्वारा दी गई शिकायत वाले पत्र में पुलिस पर अपहरण कर राजाराम की हत्या कर देने का आरोप था लेकिन मामला पुलिस से जुड़े होने के कारण तत्कालीन एसएसपी ने पीड़ित राजा राम की पत्नी की लिखित शिकायत को ठंडे बस्ते में डालते हुए नजरअंदाज कर दिया.
पुलिसिया दरबारों में हाजिरी लगाकर परिजनों ने निचले न्यायालय का सहारा लिया. मामला पुलिस से जुड़े होने के बावजूद निचली अदालत से भी पीड़ित परिवार को निराशा ही हासिल हुई. पीड़ित परिवार ने मामला 156/3 के तहत अदालत में वाद दायर किया जहां से निचली अदालत में वाद खारिज कर दिया.
निचली अदालत से राहत न मिलने के बाद मृतक राजा राम की पत्नी संतोष कुमारी के जेठ शिव प्रकाश शर्मा और पप्पू, देवर अशोक शर्मा ने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया, और CBI जांच की मांग की. हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 1 जून 2007 को सीबीआई को जांच सौंप दी. CBI ने मामले में FIR दर्ज करने बाद जांच शुरू कर दी. करीब ढाई साल तक चली CBI जांच के बाद सीबीआई ने 22 दिसंबर 2009 को 10 पुलिसकर्मियों को अपहरण हत्या और साक्ष्य मिटाने के आरोप में दोषी पाते हुए न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया.
16 साल बाद मृतक राजाराम के परिजनों को न्याय की आज भी है. मृतक राजा राम की पत्नी संतोष कुमारी और बेटे मोहित कुमार ने समाज में रक्षक की भूमिका अदा करने वाली भक्षक बनी पुलिस के लिए सीबीआई की विशेष अदालत से फांसी की सजा सुनाए जाने की मांग करते हुए कहा,
जिस समय पुलिसिया कहर से ये परिवार कराह रहा था. उस वक्त राजाराम के बच्चे नासमझ थे. राजाराम की हत्या के समय उम्र लगभग 33 साल थी. राजाराम के बड़े पुत्र मोहित ने बताया,
मृतक राजा राम की पत्नी ने बताया- "जब पुलिस वाले हमारे पति को पकड़ कर के खींच रहे थे तब हम सभी लोग उनसे हाथ जोड़कर मन्नत मांग रहे थे कि आप छोड़ दीजिए लेकिन उन पुलिस वालों ने एक भी नहीं मानी यह कहते हुए संतोषी कुमारी के आंखों से आंसू छलक उठते हैं"
सीबीआई कोर्ट ने एटा के फर्जी एनकाउंटर मामले में सजा सुनाते हुए सिढपुरा थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी पवन सिंह, पाल सिंह ठेनवा, राजेन्द्र प्रसाद, सरनाम सिंह और मोहकम सिंह को हत्या एवम सबूत मिटाने का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए 33 हजार का जुर्माना लगाया है. वहीं, बलदेव प्रसाद, सुमेर सिंह, अजय कुमार और अवधेश रावत को सबूत मिटाना और कॉमन इंटेंशन के तहत 5- 5 साल की सजा,11 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है.
23 अगस्त को संतोष कुमारी ने फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगाते हुए पांच बार शिकायत स्थानीय पुलिस से की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. एटा के SSP को कोरियर से शिकायती पत्र भेजा, लेकिन उन्होंने भी अनसुना कर दिया. इसके बाद संतोष कुमारी ने हाईकोर्ट की शरण ली. साल-2007 में हाईकोर्ट ने इस केस की CBI जांच का आदेश दिया था.
CBI ने एक जून 2007 को ये केस दर्ज किया और जांच करके 22 जून 2009 में 10 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट लगा दी. इसकी सुनवाई गाजियाबाद की CBI अदालत में हुई. CBI अदालत में 4 दिसंबर 2015 को ये केस ट्रायल पर आया. कुल 202 गवाह अदालत में पेश हुए. सुनवाई के दौरान 10 में से 1 पुलिसकर्मी सब इंस्पेक्टर अजंट सिंह की मृत्यु हो चुकी है. CBI की अदालत ने बीते मंगलवार को शेष जीवित 9 पुलिसकर्मियों को दोषी करार देते हुए सजा सुना दी है.
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