Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Crime Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Jaipur Blast: 4 'दोषी' कैसे हुए बरी? झूठी कहानी,सबूत से छेड़छाड़, जांच पर 8 सवाल

Jaipur Blast: 4 'दोषी' कैसे हुए बरी? झूठी कहानी,सबूत से छेड़छाड़, जांच पर 8 सवाल

2008 Jaipur Bomb Blast: जयपुर में हुए सिलसिलेवार धमाकों में 71 लोगों की मौत हुई थी और 180 से अधिक घायल हुए थे.

क्विंट हिंदी
क्राइम
Published:
<div class="paragraphs"><p>2008&nbsp;जयपुर ब्लॉस्ट केस में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला</p></div>
i

2008 जयपुर ब्लॉस्ट केस में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

(फोटो: ट्विटर)

advertisement

2008 जयपुर बम ब्लास्ट मामले (2008 Jaipur Bomb Blast Case) में राजस्थान सरकार हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. बुधवार को राजस्थान हाई कोर्ट ने 2008 बम ब्लास्ट मामले में चार दोषियों को बरी कर दिया. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने फैसला सुनाया. इसके साथ ही उन्होंने पूरी जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं.

बता दें कि 2008 में जयपुर में हुए सिलसिलेवार धमाकों में कम से कम 71 लोगों की मौत हुई थी और 180 से अधिक घायल हुए थे.

राज्य सरकार के पास अब क्या विकल्प है?

हाई कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की बात कही है. लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के बाद पिछले 15 साल से इस आतंकी घटना में अपने परिवारवालों को गंवाने वाले लोगों की न्याय मिलने की उम्मीद को झटका लगा है.

सवाल उठ रहे हैं कि इतनी बड़ी आतंकवादी घटना की जांच और पैरवी में क्यों लापरवाही बरती गई?

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी ज्ञान नहीं था. इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश डीजीपी को दिए गए हैं. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि,

यह मामला लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है, लेकिन वे किसी तरह की भावनाओं या संवेदनाओं के आधार पर फैसला नहीं कर सकते हैं. मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी से कड़ी को जोड़ा जाना चाहिए था. किसी भी तरह की खामी रहने पर उसका फायदा आरोपियों को मिलता है. कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती ATS अफसरों की बताई है.

इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस केस पर नजर रखें.

आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील सैयद सादात अली ने कहा कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है, इसलिए आरोपियों को बरी किया गया है.

वो 8 प्वाइंट्स क्या हैं जिस पर उठे सवाल?

  1. कोर्ट में पेश की गई जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जयपुर ब्लास्ट के करीब चार महीने बाद ATS ने 13 सितंबर 2008 को मोहम्मद सैफ को गिरफ्तार किया था. जिससे पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला. लेकिन इससे पहले ही ATS ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों के बिल बुक बरामद करने का दावा किया था, जिसपर कोर्ट ने सवाल उठाए.

  2. खरीदे गए साइकिलों के बिल बुक पर लिखे हुए फ्रेम नंबर और मौके से जब्त साइकिलों के अवशेषों पर लिखे फ्रेम नंबर मैच नहीं कर रहे थे. इसी के साथ मैन्यूफेक्चर नंबर भी बिल से मैच नहीं हुए.

  3. साइकिल खरीदने के बिलों में कांट-छांट की गई थी और ATS इसका स्पष्टीकरण पेश नहीं कर सकी.

  4. ATS ने दावा कि किया था वारदात के दिन दोषी हर्ष यादव, जितेंद्र, राजहंस और विकास डिलक्स बस से जयपुर आए और शाम को शताब्दी एक्सप्रेस से वापस लौट गए. लेकिन ATS यात्रा टिकट, सहयात्री या अन्य साक्ष्य पेश नहीं कर सकी.

  5. बम में इस्तेमाल छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे FSL की रिपोर्ट में मैच नहीं हुए.

  6. घटना के बाद चैनल्स को मेल भेजने का दावा किया गया, लेकिन जिनको ई-मेल भेजा गया उनका बयान दर्ज नहीं हुआ और न ही कोर्ट में पेश किया गया.

  7. जिस साइबर कैफे से ई मेल किए गए थे उसके मालिक मधुकर मिश्रा के बयान भी कोर्ट में पेश नहीं किए गए.

  8. जेल में ​शिनाख्त परेड के दौरान अ​धिकारी गवाह के साथ जेल में गए. बचाव पक्ष ने इसके साक्ष्य पेश किए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
"पुलिस ने जो डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के ऊपर अपना केस माना था. कोर्ट ने उस डिस्क्लोजर स्टेटमेंट को ही गलत माना. कोर्ट ने यहां तक कहा है कि पुलिस ने जानबूझकर सबूतों के साथ छेड़छाड़ की है."
सआदत अली, आरोपियों के वकील

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि 4 दोषियों को निचली अदालत से फांसी की सजा हुई थी और एक को बरी किया गया था. सरकार ने जिसको बरी किया गया था उसके खिलाफ 8 अपीलें दायर की थी. और जिन 4 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी उनमें से एक नाबालिग था. कोर्ट ने उसे नाबालिग ही माना और सरकार की सभी अपीलों को खारिज कर दिया है.

बता दें कि निचली अदालत ने 18 दिसंबर 2019 को आरोपी मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान और सैफुर्रहमान को दोषी माना था. जबकि शाहबाज हुसैन को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया था.

हाई कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त राजकीय अधिवक्ता रेखा मदनानी ने 29 अगस्त से 12 सितंबर 2022 तक पक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट से चारों गुनाहगारों की फांसी की सजा बरकरार रखने की गुहार लगाई गई थी. हाई कोर्ट में निचली अदालत के करीब बीस हजार पेज में दर्ज बयान और सबूतों के साथ ही अन्य जानकारियां पेश की गई थी.

वहीं दोषियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यारामा कृष्णा पेश हुए और दलीलें दी. इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता श्रीसिंह, त्रिदीप पेस, राजस्थान हाईकोर्ट के सैयद सआदत अली सहित अन्य अधिवक्ताओं की टीम ने भी पैरवी की.

(इनपुट: पंकज सोनी)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT