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12,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर्स का आशियाना है मुंबई (Mumbai) का कमाठीपुरा- वहां एक मसरूफ शाम को एक अधेड़ औरत अपने घर के बाहर बैठी, ग्राहक का इंतजार कर रही है. दसियों साल बीत गए. कमाठीपुरा की इन्हीं गलियों ने उसे पनाह दी है.
जब उससे पूछता हूं कि यहां वह कहां से आई और क्यों, तो वह बांग्ला में जवाब देती है- “मुर्शीदाबाद गेयेछो, जाओ, बूझबे कैनो एशेची? खाबो की?” (अगर तुम मुर्शीदाबाद गए होते तो तुम्हें पता होता कि मैं यहां क्यों आई. वहां मैं क्या खाती?)
यहां पास में बिरयानी की एक दुकान है. वहां के मेन्यू में फिश करी, छोलार दाल (चने की दाल जो नारियल से साथ बनाई जाती है) और आलू पोश्तो (आलू, मिर्ची, हल्दी और खसखस के बीज से बनी सब्जी) शामिल हैं.
इस आर्टिकल में बांग्लादेश की औरतों के कमाठीपुरा पहुंचने की दास्तान है, और उनकी वेदना भी.
बांग्लादेश के ढाका में ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट रबींद्र घोष ने द क्विंट से कहा, “बांग्लादेश से ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी इस समय सबसे ज्यादा हो रही है. ऐसी बहुत सी हिंदू लड़कियां हैं, जो अपने परिवार में अत्याचार से परेशान होती हैं, और बेहतर जिंदगी के लिए घर से भाग जाती हैं. उन्हें डर लगता है कि उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन और शादी के लिए अगवा कर लिया जाएगा. इसके अलावा मुसलमान लड़कियां भी हैं, जिन्हें दलाल अगवा कर लेते हैं और उनकी तस्करी कर दी जाती है. दलाल उन्हें विदेश में बेहतर जिंदगी का वादा करते हैं.” उनका कहना है कि आखिर में वे चकलों में पहुंचा दी जाती हैं.
रबींद्र कहते हैं कि बांग्लादेश के गांवों में बहुत ज्यादा गरीबी है, और “दलाल” वहां की लड़कियों और औरतों को बड़े सपने दिखाते हैं- वे कहते हैं कि मुंबई और दुबई में घरेलू हेल्पर के तौर पर वे लोग अच्छा पैसा कमा सकती हैं.
“लेकिन ऐसा नहीं होता.” रबींद्र कहते हैं.
असल में नवंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के एक शीर्ष अधिकारी ने बांग्लादेश को चेताया था कि उसे अपनी सरहदों पर चौकसी बढ़ानी चाहिए. उस अधिकारी ने ऐसा करने को इसलिए कहा था ताकि ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसी खतरनाक समस्या पर काबू पाया जा सके. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (ओएचसीएचआर) के कार्यालय की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है.
रबींद्र की तरह त्रिवेणी भी कहती हैं कि “भीतरी इलाकों में गरीबी बहुत ज्यादा है और यही इसकी मुख्य वजह है.”
त्रिवेणी दावा करती हैं कि बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में म्यामांर की महिला शरणार्थी बड़ी संख्या में रह रही थीं. अब ये भारत में पहुंचाई जा रही हैं.”
2019 की रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, "चटगांव के कुटुपलोंग में सेक्स इंडस्ट्री फल-फूल रही थी, जो बांग्लादेश में रोहिंग्याओं का सबसे बड़ा शिविर था." न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2010 के करीब दक्षिणपूर्वी एशिया में बंगाल की खाड़ी से होते हुए ह्यूमन ट्रैफिकिंग की जाती थी. एंटी ट्रैफिकिंग ग्रुप्स को डर है कि अब बांग्लादेश से रोहिंग्या शरणार्थियों को इसी रास्ते स्मगल किया जा रहा है."
इस बीच त्रिवेणी कहती हैं कि बहुत सी रोहिंग्या शरणार्थी, जो बांग्लादेश में थीं, भारत और फिर कमाठीपुरा आ गईं.
“वे सभी बांग्ला बोलती हैं और उनके खान-पान की आदतें भी बंगाल और झारखंड की लड़कियों और औरतों जैसी है. बांग्लादश मे शोषण का शिकार होने के बाद वे यहां भाग आईं. और अब उन्हें कमाठीपुरा में अलग किस्म के शोषण का सामना करना पड़ता है.” त्रिवेणी कहती हैं.
फरवरी की शुरुआत में, एक टीनएज लड़की कमाठीपुरा के नजदीकी नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में लगभग बेहोश हो गई. नागपाड़ा के पुलिस वालों के लिए यह कोई अजीब बात नहीं थी. कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर्स अपने ग्राहकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन आती रहती हैं.
यह लड़की नाबालिग थी, सिर्फ 15 साल की, उसने सेक्स वर्क अभी शुरू नहीं किया था. कमाठीपुरा में काम करने वाले एक्टिविस्ट सरफराज अली ने बताया.
सरफराज ने कहा, “इस लड़की को चार दिनों से खाने को कुछ नहीं दिया गया था. वह बांग्लादेश के भीड़-भाड़ वाले जेसोर शहर के एक नजदीकी गांव की रहने वाली है. जेसोर अपने कारखानों के लिए मशहूर है. पश्चिम बंगाल की पेत्रपोल सीमा से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर.”
सरफराज कमाठीपुरा में दस साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि जेसोर से स्कूल जाते समय इस बच्ची को नशीला पदार्थ खिलाया गया और फिर कोलकाता से मुंबई की ट्रेन से यहां ले आया गया.
इस महीने की शुरुआत में उस बच्ची को सरफराज ने बचाया. उसने कमाठीपुरा में उसके कमरे को तोड़कर उसे बाहर निकाला. गली के बाहर खड़ी गाड़ी में किसी तरह उसे बैठाया. कमरे में दो नाबालिग लड़कियां और थीं, लेकिन वे यकायक गायब हो गईं. सरफराज ने द क्विंट को बताया, “शायद बिचौलियों, दलालों ने उन्हें कहीं छिपा दिया.”
नागपाड़ा पुलिस स्टेशन के सीनियर इंस्पेक्टर महेश कुमार एन. ठाकुर ने इस वाकये पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. वह कहते हैं,
लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं. वह कहते हैं, “हम यह तय करना होगा कि उसे बांग्लादेश का कोई दूसरा एजेंट किसी भारतीय ग्राहक के पास दोबारा ट्रैफिक न कर दे.” रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है, भारत में 2 करोड़ सेक्स वर्कर्स हैं.
डॉ. ईश्वर गिलाडा पिछले 40 सालों से कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर्स का इलाज कर रहे हैं. वह कहते हैं कि वह कमाठीपुरा में बंगाली औरतों की बढ़ती मौजूदगी से हैरान हैं.
“केवल बंगाली ही क्यों… मैं समझ नहीं पा रहा हूं. इन लड़कियों को यहां कौन भेज रहा है?” डॉ गिलाडा ने कहा.
डॉ गिलाडा ग्रांट रोड, मुंबई में यूनिसन मेडिकेयर के प्रमुख हैं. 1985 में उन्होंने सबसे पहले भारत में एड्स की चेतावनी दी थी. डॉ गिलाडा पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कमाठीपुरा में सेक्स वर्कर्स को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे अपने ग्राहकों को कंडोम का उपयोग करने को कहें.
कमाठी ठेकेदारों ने इस बस्ती का निर्माण किया था. कमाठी लोग हैदराबाद से मुंबई आए थे, जो कामठी या मजदूर कहलाते थे. वे लोग जिस जगह पर रहते थे, उसे कमाठीपुरा या कामथियों का घर कहा जाता था.
धीरे-धीरे और लोग भी वहां आकर रहने लगे, जिसमें बदनाम पठान गैग भी शामिल था. वह सूदखोरी और जुए का धंधा करते थे और कथित रूप से कॉन्ट्रैक्ट पर हत्याएं करते थे.
पठान गैग को चलाने वाला करीम लाला था, जो अफगानिस्तान से मुंबई आया था. कमाठीपुरा उसकी मुट्ठी में था. संजय लीला भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी में अजय देवगन ने करीम लाला का किरदार निभाया था.
जून 2022 का सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला ऐतिहासिक था, जिसने सेक्स वर्कर्स को एक पेशे के रूप में मान्यता दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेक्स वर्कर कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा की हकदार हैं. एपेक्स कोर्ट ने यह भी कहा है कि 'स्वैच्छिक' सेक्स कार्य अवैध नहीं है. उसने वेश्यावृत्ति को एक पेशे के रूप में परिभाषित करके सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को व्यापक बनाया है.
इस फैसले में पुलिसिया हिंसा को खत्म करने का आदेश दिया गया है और स्वास्थ्य और श्रम संरक्षण पर जोर दिया गया है. यह कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भी कहा गया था.
“लेकिन लड़कियां और महिलाएं अभी भी कमाठीपुरा में आ रही हैं. कमरे भरे हुए हैं. उनके पास कोई अधिकार नहीं है. उनके कठिन परिश्रम से जुड़े अधिकारों की गारंटी, एक सतत लड़ाई है,” डॉ. गिलाडा ने कहा.
कमाठीपुरा में लॉन्ड्री की दुकान चलाने वाला असलम कहता है, “यहां दलालों का राज है. लड़कियां जो कमाती हैं, उसका 40 से 50 टका वे लोग ले जाते हैं, लेकिन क्या किसी को इसकी परवाह है?”
ऐसी 15 गलियां हैं, जोकि 39 एकड़ में फैली हैं. यहां औरतें छोटे-छोटे कमरों में रहती हैं, और किचन और टॉयलेट एक दूसरे के साथ शेयर करती हैं.
असलम कहता है कि किसी ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं कि क्यों करीब एक दशक से, सप्लाई बंगाल और बांग्लादेश से क्यों हो रही है. उसके मुताबिक, रिसर्च एकतरफा होकर इशारा करती हैं. भले ही आप उस पर भरोसा करें. लेकिन महाराष्ट्र सरकार को अब तक बंगाल और झारखंड की राज्य सरकारों और बांग्लादेश की सरकार को इस सिलसिले में सचेत कर देना चाहिए. वह कहता है.
द क्विंट ने कई वकीलों से बातचीत की. उन्होंने कहा कि वे इस बात से अनजान हैं कि क्या महाराष्ट्र ने पश्चिम बंगाल या झारखंड या ओडिशा सरकार से इस संबंध में बातचीत की है. कि वे देखें कि औरतों को इतनी बड़ी संख्या में इन राज्यों से यहां लाया जा रहा है. बांग्लादेश के मामले में, दोनों देशों के बीच सीमा-स्तरीय वार्ता में मानव तस्करी और तस्करी के मुद्दे पर नियमित रूप से चर्चा होती रही है.
कमाठीपुरा में सेक्स वर्कर्स अकेली घूमती कभी नहीं मिलेंगी. उसका मैनेजर हमेशा उसके साथ होगा.
कुछ औरतों को उनके पति, या उनके दोस्त या कोई रिश्तेदार कमाठीपुरा लेकर आए हैं.
कुछ पढ़ाई और शादी से बचने के लिए यहां भाग आईं. जैसे मध्य प्रदेश के भोपाल से यहां पहुंची दो बहनें.
कई सालों में इन कहानियों में कोई बदलाव नहीं आया. कभी कमाठीपुरा के चकले राज्य वार बंटे थे, लेकिन अब यहां बांग्ला भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है.
कई रिसर्चर्स और फिल्ममेकर कहते हैं कि पुलिसवालों के साथ यहां आने के बावजूद वे चकलों को करीब से नहीं देख पाते.
डॉक्यूमेट्री फिल्म मेकर संतोषी मिश्रा ने कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर्स पर मुंबई 400008 नाम की फिल्म बनाई हैं. वह कहती हैं, “लड़कियां और औरतें पहले ही बहुत डरी हुई और परेशान हैं. अक्सर वे कहती हैं कि वे अपनी मर्जी से कमाठीपुरा में हैं. आपको सेक्स वर्कर की असली कहानी कभी सुनने को नहीं मिलेगी. वह जानती है कि रिसर्चर के जाने के बाद वह वहां अकेली है. फिर उसे चकले के मालिक और दलाल का सामना करना होगा. वे लोग उसकी जिंदगी को नरक बना देंगे.”
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