Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Crime Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उत्तर प्रदेश में पेशेवर अपराधियों को सुरक्षा, आम गवाहों की जा रही जान?

उत्तर प्रदेश में पेशेवर अपराधियों को सुरक्षा, आम गवाहों की जा रही जान?

Umesh Pal Murder के बाद पुलिस को केंद्र की साक्षी सुरक्षा योजना की याद आई

पीयूष राय
क्राइम
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तर प्रदेश में पेशेवर अपराधियों को सुरक्षा, आम गवाहों की जा रही जान?</p></div>
i

उत्तर प्रदेश में पेशेवर अपराधियों को सुरक्षा, आम गवाहों की जा रही जान?

(फोटो- Quint Hindi)

advertisement

24 जनवरी 2018 को मेरठ (Meerut Crime) का परतापुर क्षेत्र गोलीबाजी से गूंज उठा. सुबह 11 बजे के आसपास अपने घर के बाहर खाट पर बैठी वृद्ध नछत्तर कौर की तीन हमलावरों ने गोलियों से भूनकर हत्या कर दी. सनसनीखेज हत्या को अंजाम देकर लौट रहे बदमाशों ने नछत्तर के बेटे बलविंदर सिंह को भी मौत के घाट उतार दिया. नछत्तर की हत्या का सीसीटीवी वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वीडियो में एक के बाद एक आए तीन हमलावरों ने लगातार नछत्तर पर फायर झोंकी थी. सीसीटीवी फुटेज के मीडिया में आते ही मेरठ पुलिस के पैरों तले जमीन खिसक गई. जांच में पता चला कि नछत्तर के पति नरेंद्र सिंह की प्रधानी के चुनावी रंजिश में 2016 में हत्या हो गई थी. मृतक नछत्तर और बलविंदर इस केस में मुख्य गवाह थे और जिस दिन इनकी हत्या की गई, उसके अगले दिन कोर्ट में इनकी गवाही भी थी.

अभी यह मामला थमा भी नहीं था कि कुछ दिनों बाद मेरठ में ही हत्या के एक और मुख्य गवाह की हत्या हो गई. 13 जुलाई 2016 को मेरठ के हसनपुर- रजापुर गांव के चेतन उर्फ भूरा की हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड में चेतन की मां सावित्री देवी और उसका भाई मितन मुख्य गवाह थे. चेतन हत्याकांड में जेल से छूट कर आए कुछ हत्या आरोपियों ने सावित्री और उनके परिवार को गवाही न देने की लगातार धमकी दे रहे थे. अपनी सुरक्षा को लेकर परेशान सावित्री ने जिले के आला अधिकारियों से बिलख बिलख कर गुहार भी लगाई लेकिन आला अधिकारियों के निर्देश के बावजूद उनको सुरक्षा नहीं मिली.

3 फरवरी 2018 को सावित्री को कुछ शूटरों ने गोली मारकर मौत के घाट उतारने का प्रयास किया. गंभीर हालत में उन्हें मेरठ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पर उन्होंने 8 फरवरी को दम तोड़ दिया है.

एक के बाद एक हुई इन हत्याओं से संवेदनशील मामलों में गवाहों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई थी. सावित्री की हत्या के मामले में पुलिस के ढुलमुल रवैये की काफी आलोचना हुई. सब का एक ही सवाल था. जब संवेदनशील मामले में मुख्य गवाह अपनी सुरक्षा को लेकर बार-बार पुलिस अधिकारियों से मिल रही थी तब मामले को तत्परता से क्यों नहीं हल किया गया?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पेशेवर अपराधी लेते हैं सुरक्षा का मजा

2019 में मिर्जापुर पुलिस अभिरक्षा में मुजफ्फरनगर आए अपराधी रोहित सांडू को कुछ अज्ञात लोगों ने हमला कर छुड़ा लिया था. इस घटना के दौरान मिर्जापुर में तैनात एक दरोगा को गोली भी लगी थी जिसकी बाद में मौत हो गई थी. मामले की जांच कर रही मुजफ्फरनगर पुलिस की मानें तो इस पूरी घटना का साजिशकर्ता गैंगस्टर भूपेंद्र बाफर था. बाफर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्राइम की दुनिया का एक बड़ा नाम है. बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ जैसे अपराधियों का कभी साथी रहने वाला बाफर का 2019 में पुलिस अभिरक्षा से अपराधी छुड़ाने के मामले में नाम आने के बाद जांच एजेंसियां सकते में थीं. खुलासा हुआ कि मेरठ प्रशासन की तरफ से बाफर को सुरक्षा में 2 सरकारी गनर और बुलेट प्रूफ जैकेट मिली हुई थी. एक पेशेवर अपराधी को प्रशासन की तरफ से सुरक्षा कैसे मिल गई इस बात पर जांच तो हुई लेकिन कार्रवाई के नाम पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.

यूपी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि गवाहों को मिलने वाली सुरक्षा का फायदा जरूरतमंद से ज्यादा अपराधी किस्म के लोग उठा लेते हैं. "पेशेवर अपराधी अपने रसूख और दबंगई का फायदा उठाकर अपने ऊपर मामलों में क्रॉस FIR कर या अपने ऊपर हमला करा कर अपनी जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा के लिए आवेदन दे देते हैं. ऐसे लोग सरकारी दांवपेच भी आम लोगों से ज्यादा समझते हैं और नेताओं से दबाव दिलवाकर अपने लिए सुरक्षा ले लेते हैं."

प्रशासन का रवैया लचर, मौत के घाट उतारे जा रहे गवाह

उमेश पाल हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस की नींद टूटी और केंद्र की साक्षी सुरक्षा योजना की याद आई. घटना के बाद प्रदेश के कार्यवाहक डीजीपी डीएस चौहान ने जिले में अपने अधीनस्थों को साक्षी सुरक्षा योजना के तहत गवाहों की सुरक्षा मॉनिटरिंग के आदेश दिए. 2018 में लागू इस योजना के तहत देश के हर जिले में जनपद न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक समिति बननी थी जो गवाहों के आवेदन का आकलन कर उन्हें उचित सुरक्षा देने की सिफारिश करती. इस समिति में जिले के पुलिस प्रमुख सदस्य और अभियोजन प्रमुख सदस्य (सचिव) के रूप में होते हैं.

गवाहों के आवेदन पर सुरक्षा का आकलन कर गवाह के नाम बदलने, दूसरी जगह विस्तापित करने से लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाही कराने तक- सुरक्षा के कई उपाय आदेश के आधार पर लागू किए सकते है.

  • साक्षी और अभियुक्त का जांच अथवा सुनवाई के दौरान एक-दूसरे से सामना नहीं हो;

  • डाक और टेलीफोन कॉल की मॉनीटरिंग

  • साक्षी के टेलीफोन नम्बर को बदलने अथवा उसे गैर-सूचीबद्ध टेलीफोन नम्बर देने के लिए टेलीफोन कम्पनी के साथ व्यवस्था करना

  • साक्षी के घर पर सिक्योरिटी डोर्स, सीसीटीवी अलार्म, फेंसिंग आदि जैसे सुरक्षा उपकरण लगाना

  • साक्षी को बदले हुए नाम अथवा वर्णाक्षरों से बुलाकर साक्षी की पहचान छिपाना

  • साक्षी के लिए आपात संपर्क व्यक्ति

  • साक्षी घर के आसपास गहन संरक्षण, नियमित गश्त

  • रिश्तेदार के घर अथवा आस-पास के नगर में साक्षी का अस्थायी तौर पर आवास बदलना

  • न्यायालय आने-जाने के लिए एस्कॉर्ट प्रदान करना और सुनवाई की तारीख के लिए सरकारी वाहन अथवा राज्य के खर्च पर वाहन मुहैया करवाना

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग समय पर गवाहों को धमकाने से लेकर उनकी हत्या तक के जो मामले आए हैं उससे जिला स्तर पर गवाहों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन का लचर रवैया सामने आ गया है. 2018 में मेरठ में हत्या के एक मामले में मुख्य गवाह सावित्री देवी की हत्या के मामले में यह निकल कर आया था कि विरोधियों की धमकी से परेशान सावित्री तत्कालीन मेरठ एसएसपी मंजिल सैनी से मिली थी लेकिन सुरक्षा के इंतजाम नहीं हुए और अंततः उन्हें कीमत अपनी जान से चुकानी पड़ी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT