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सहारनपुर के देवबंद (Deoband) में शनिवार, 28 मई को जमीयत उलेमा हिंद (Jamiat ulema-e-hind) के 2 दिन के जलसे का आगाज हुआ. इसके अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी (Maulana Mahmood Madani) ने कहा कि देश में मुसलमानों का चलना तक मुश्किल हो गया है. हमें हमारे ही देश में अजनबी बना दिया गया है. हम हर जुल्म सह लेंगे, लेकिन वतन पर आंच नहीं आने देंगे. ऐसे में समझते हैं कि जमीयत उलेमा हिंद क्या है? इसका उद्देश्य क्या है और मौलाना महमूद मदनी कौन हैं?
जमीयत उलमा-ए-हिंद खुद को भारत का सबसे बड़ा मुस्लिमों का संगठन बताता है, जिसका गठन 1919 में किया गया था. 18वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली के शाह वलीउल्लाह ने लोगों का ध्यान यूरोपीय लोगों के शोषण की ओर आकर्षित करके पूरी व्यवस्था को बदलने के लिए एक क्रांति का नेतृत्व किया था.
अंग्रेजों के शासन में जमीयत ने खिलाफत आंदोलन में शामिल हुआ था. साथ ही इसने भारत के बंटवारे का भी विरोध किया था. हालांकि देश के बंटवारे के दौरान इस स्टैंड की वजह से जमीयत में बंटवारा हो गया और जमीयत उलेमा ए इस्लाम नाम का एक नया संगठन बना जो पाकिस्तान बनने का समर्थन कर रहा था.
जमीयत का मानना है कि इस्लाम विश्व बंधुत्व और शांति की प्रेरणा देता है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद आतंकवाद और अतिवाद की सभी रुपों में कड़ी आलोचना करता है. जमीयत का मानना है कि भारत में सभी नागरिकों को बराबर अधिकार प्राप्त है और सभी के अधिकार और कर्तव्य संविधान से बंधे हुए हैं.
मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं, जो 13 साल तक इसके महासचिव भी रहे हैं. आतंकवाद के खिलाफ इनकी स्पष्ट निंदा और भारतीय मुस्लिम समुदाय का समर्थन के लिए ये प्रसिद्ध हैं.
मदनी ने 6 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और सीएए का विरोध किया था. मदनी ने सीएए के खिलाफ देशव्यापी विरोध का भी आह्वान किया था. उन्होंने दिसंबर 2019 में पूरे देश में 1000 से अधिक स्थानों पर आयोजित किए. मदनी ने 2020 दिल्ली दंगों के पीड़ितों के लिए राहत और वकालत के प्रयासों का भी नेतृत्व किया था.
एक टीवी कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि, हम लोग बाइचांस नहीं बाइचॉइस इंडियन हैं. हमने इंडिया को चुना है. जिन्ना इंडिया के मुसलमानों का जनाजा पढ़कर गए थे, मदनी की ये बात काफी प्रसिद्ध हुई थी.
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Published: 29 May 2022,12:27 PM IST