बिहार: लॉकडाउन में गरीब बच्चों को तोहफा - स्कूल टीवी

‘गोइंग टू स्कूल’ ने घर में रहकर पढ़ाई करने के लिए ‘स्कूल टीवी’ की शुरुआत की है.

क्विंट हिंदी
शिक्षा
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गोइंग टू स्कूल 
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गोइंग टू स्कूल 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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कोरोना महामारी ने देश से लेकर दुनिया को करीब-करीब रोककर रख दिया, लॉकडाउन की वजह से स्कूलबंदी हुई जो अब भी जारी है. हालांकि प्राइवेट स्कूलों के ज्यादातर बच्चे ऑनलाइन मीडियम के जरिए पढ़ाई तो कर रहे हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चे इस रेस में पीछे छूट जा रहे हैं. ऐसे में उन बच्चों को एक नई उम्मीद दिखी है.

खासकर बिहार जैसे पिछड़े राज्य के उन बच्चों को जो समाज के कमजोर वर्गों से आते हैं, जिन्होंने पढाई को करीब-करीब अलविदा कह दिया था, उन्हें एक गैर-लाभकारी शिक्षा ट्रस्ट 'गोइंग टू स्कूल' के जरिए एक तोहफा मिला है.

इन बच्चों के लिए 'गोइंग टू स्कूल' ने इनके घर में रहकर पढ़ाई करने के लिए 'स्कूल टीवी' की शुरुआत की है. इसके लिए बिहार सरकार और फ्री-टू-एयर दूरदर्शन के साथ टेलीविजन पर वोकेशनल और लाइफ लर्निंग एजुकेशन के लिए करार किया है.

इन बच्चों को पढ़ाने के लिए टीचर कौन होंगे?

एक्सपर्ट और प्रोफेशनल लोगों के नेतृत्व में 100 से ज्यादा लेसन की एक सीरीज है जो ग्रेड 9-12 के बच्चों को बताएगी कि उन्हें नौकरी पाने या बिजनेस शुरू करने के लिए क्या जरूरत है.

मधुमक्खी पालन से लेकर ऑर्गेनिक होम-क्लीनर्स हो या एक समस्या का समाधान ढूंढ़ने वा उद्यमी बनना हो, आकर्षक कॉमिक बनाने हो या एक न्यूज ब्रॉडकास्टर, फिल्म के लिए लिखना हो या फोटोग्राफी में महारत हासिल करना हो. और यहां तक कि कैसे कोडिंग सीखते हैं.

क्या है स्कूल टीवी का मकसद?

इस पहल का मकसद उस धारना को तोड़ना है जिसमें ये मानकर लोग बैठ चुके हैं कि क्वॉलिटी एजुकेशन पर सिर्फ संपन्न लोगों का विशेषाधिकार है. स्कूल टीवी का मकसद एक लाख से ज्यादा बच्चों तक पहुंचना है, जो पहले से टीवी से जुड़े हैं. बता दें कि इस कार्यक्रम के जरिए बिहार के शिक्षा और उन लाखों बच्चों की जिंदगी को बदलने की कोशिश की जा रही है जो इंटरनेट और बेहतर शिक्षा की वजह से पीछे रह जाते हैं.

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