advertisement
(चेतावनी: आर्टिकल में आत्महत्या का जिक्र है. अगर आपके मन में आत्महत्या का खयाल आता है या आप किसी को जानते हैं, जो संकट में है, तो कृपया उनसे संपर्क करें और इन हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ एनजीओ के नंबरों पर कॉल करें.)
27 अप्रैल को, जब हिंदू कॉलेज का सलाना फेस्ट 'मक्का' चल रहा था, तब कुछ स्टूडेंट्स और प्रोफेसरों का एक छोटा सा ग्रुप दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) कॉलेज में एड-हॉक असिस्टेंट प्रोफेसर समरवीर सिंह के शोक सभा के लिए इकट्ठा हुआ.
26 अप्रैल को, बाहरी दिल्ली के रानी बाग में अपने अपार्टमेंट में कथित तौर पर खुदकुशी से सिंह की मौत हो गई. उनके सहयोगियों, स्टूडेंट्स और रिश्तेदारों ने आरोप लगाया है कि DU कॉलेज में उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाए जाने के बाद सिंह ने ये कदम उठाया.
हिंदू कॉलेज के प्रिंसिपल 28 अप्रैल को पत्रकारों से नहीं मिले.
इस बीच, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पीआरओ अनूप लाठर ने कहा, "दिल्ली यूनिवर्सिटी डॉ समरवीर के दुखद और असामयिक निधन पर संवेदना व्यक्त करता है, और इस मुश्किल समय में उनके परिवार के लिए प्रार्थना करता है. कुछ भी उस दर्द को कम नहीं कर सकता है, जिसे यूनिवर्सिटी समेत सभी महसूस कर रहे हैं. उनके परिवार के साथ हमारी संवेदनाएं हैं और हम शोक की इस घड़ी में उनके लिए शक्ति और शांति की प्रार्थना करते हैं."
दिल्ली पुलिस के मुताबिक, 26 अप्रैल की देर रात एक पीसीआर कॉल आई थी. डिप्टी पुलिस कमीश्नर (आउटर) हरेंद्र के सिंह ने कहा, "उनके घर की ऊपरी मंजिल में दो कमरे हैं. एक कमरे में ताला लगा हुआ था. पहले लोहे के दरवाजे की जाली को काटा गया और फिर लकड़ी के दरवाजे को तोड़ा गया. वो अविवाहित थे. हम उन्हें एमवी अस्पताल ले गए, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया."
पुलिस ने गुरुवार को बताया कि मामले में एफआईआर दाखिल नहीं की गई है.
द क्विंट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से भी संपर्क किया, जिन्होंने आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की.
इस बीच, समरवीर के कजिन, राहुल सिंह, जो दिल्ली के रानी बाग में उनके साथ रहा करते थे, ने दावा किया, "पिछले कुछ महीनों से, वो बहुत तनाव में थे क्योंकि उनकी नौकरी परमानेंट नहीं थी, और उनका कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाया जा रहा था."
मूल रूप से राजस्थान के बारां जिले के रहने वाले 33 साल के समरवीर एड-हॉक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पिछले सात सालों से कॉलेज में पढ़ा रहे थे. वो पीएचडी कर रहे थे.
नौकरी छूटने वाले एक और फैकल्टी मेंबर ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से कहा, "पिछले तीन महीनों में, हम बहुत करीब आ गए थे. हम अक्सर बात करते थे, क्योंकि हमारी स्थिति एक थी..."
उन्होंने आगे कहा, "उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि वो डिप्रेस्ड थे, लेकिन वो निश्चित रूप से परेशान थे और ठीक महसूस नहीं कर रहे थे. उनकी मां बीमार थीं और उन्हें तनाव में नहीं रहना था."
इस बीच, विस्थापित टीचर ने कहा, "हम भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करने वाले थे. हम इसी हफ्ते मिलने वाले थे. हमने सोचा था कि हम जल्द ही दूसरे कॉलेजों में अप्लाई करेंगे. मुझे लगा था कि वो जिस दौर से गुजर रहे थे, उससे उबर चुके हैं...'
उनके दो स्टूडेंट्स ने उनकी क्लास और कुछ यादों को द क्विंट के साथ बांटा. हिंदू कॉलेज में सेकेंड ईयर की स्टूडेंट रुशम शर्मा, जो सिंह की 'क्रिटिकल थिंकिंग एंड डिसिजन मेकिंग' क्लास में थे, ने कहा, "वो आमतौर पर अपनी दूरी बनाए रखते थे. वो पढ़ाकर चले जाते थे. हमें लगा कि ये अच्छा है, लेकिन थोड़ा मजेदार भी. बाद में, हमें पता चला कि वो मुश्किल में हैं और दुखी हैं."
उन्होंने आगे कहा, "मुझे पिछले सेमेस्टर में उनकी आखिरी क्लास याद है. उन्होंने सिर्फ एक टेस्ट लिया और चले गए. वो जानते थे कि उनका तबादला किया जा रहा है. मैंने उन्हें करीब 20 दिन पहले देखा था. कुछ बातचीत चल रही थी और हमें लगा कि वो वापस आ रहे हैं."
रुशम ने कहा, "कुछ दिन पहले मैं कुछ प्राइवेट यूनिवर्सिटी में कोर्स देख रही थी और मैंने देखा कि उनके सभी प्रोफेसर विदेश से हैं. ये सब तब हो रहा है जब हमारे अपने ही टीचर्स संघर्ष कर रहे हैं. जब मुझे पता चला कि उनके साथ क्या हुआ है, तो मुझे बहुत दुख हुआ, लेकिन मेरा पहला खयाल यही था कि हम इसे भूलने नहीं देंगे."
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) के बयान में लिखा है, "समरवीर एक शानदार युवा टीचर थे, जो जुलाई 2017 से रिक्त पदों के खिलाफ काम करने वाले एकमात्र एड-हॉक टीचर थे. असल में, चार पदों का विज्ञापन किया गया था और समरवीर को बरकरार रखा जा सकता था, अगर प्रशासन युवा, प्रतिभाशाली टीचरों की दुर्दशा के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता. इसलिए, समरवीर की आत्महत्या एक इंस्टीट्यूशनल मर्डर के अलावा और कुछ नहीं है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर मामला दर्ज किया जाना चाहिए."
बयान में आगे कहा गया है, "इनमें से कई एड-हॉक टीचर अपने 40 के करीब या उससे ज्यादा उम्र के हैं, जिनके परिवार उनपर निर्भर हैं. अचानक उनकी आजीविका उनसे एक 'एक्सपर्ट पैनल' द्वारा छीन ली जाती है."
DU के अकैडमिक काउंसिल की मेंबर डॉ माया जॉन ने एक बयान में कहा, "ये एक फैक्ट है कि लंबे समय से एड-हॉक टीचरों की एक बड़ी संख्या, जो अन्यथा DU कॉलेजों के पदों के लिए सभी मानदंडों को पूरा करते हैं, हाल के इंटरव्यू में उन्हें हटाया जा रहा है. इसमें विश्वासघात और लाचारी दिखती है, क्योंकि सालों तक कॉलेजों/विभागों में पढ़ाने और यूनिवर्सिटी में योगदान देने के बाद उन्हें बिना आजीविका के छोड़ दिया जा रहा है."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)