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(चेतावनी: इस खबर में यौन उत्पीड़न का विवरण है. शिकायतकर्ताओं के नाम उनकी पहचान की सुरक्षा के लिए बदल दिए गए हैं)
"मैं गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से गुजर रही हूं, जिसका असर मेरे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ा है. मुझे माइग्रेन की समस्या है, जो दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है."
"मुझे उनके सुपरविजन में रेटिनल हेमरेज (Retinal Haemorrhage) और डिप्रेशन हो गया, जो सीधे तौर पर लंबे समय तक भावनात्मक तनाव और दबाव के कारण हुआ है."
"गंभीर एंजाइटी (anxiety) और नींद नहीं आने (insomnia) की समस्या के बाद मुझे मजबूरन कोर्स छोड़ना पड़ा."
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) विश्ववद्यालय के जवाहरलाल नेहरू अध्ययन केंद्र (CJNS) की तीन PhD स्कॉलर्स ने आरोप लगाया है कि उनके सुपरवाइजर, जो एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य हैं, पिछले दो सालों से उनका मानसिक और यौन उत्पीड़न कर रहे हैं.
तीनों ने दावा किया कि उन्होंने पूरे मामले को लेकर अपने विभाग के निदेशक, डीन और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से पहली बार मई और फिर जुलाई में लिखित में शिकायत की थी. इस शिकायत में उन्होंने उक्त सुपरवाइजर के खिलाफ कार्रवाई और एक नए मेंटर की मांग की थी, जिससे कि वे शांतिपूर्वक अपना रिसर्च जारी रख सकें. लेकिन उनका दावा है उनकी शिकायत पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है.
क्विंट ने आरोपों पर प्रतिक्रिया के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया के सभी संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया. सामाजिक विज्ञान के डीन मोहम्मद मुस्लिम खान ने 16 जुलाई को द क्विंट को बताया कि "(संबंधित) प्रोफेसर को निलंबित कर दिया गया है."
9 मई को आयशा* ने सेंटर के निदेशक को लिखित शिकायत में कहा कि उन्हें पिछले डेढ़ साल से अपने सुपरवाइजर की ओर से “काफी मानसिक उत्पीड़न” का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने दावा किया कि “पूरी ईमानदारी से तैयार और प्रस्तुत" किए गए उनके कई रिसर्च प्रपोजल के बदले उन्हें सुपरवाइजर की ओर से “केवल उदासीनता और उपहास” ही मिला.
कविता* ने भी अपने सुपरवाइजर पर आरोप लगाया कि उन्होंने न केवल ढाई साल तक उनके सिनॉप्सिस को खारिज किया, बल्कि उसे एक अन्य सहकर्मी के सामने फेंक दिया, जिसकी वजह से उन्हें “शर्मिंदगी” का सामना करना पड़ा. 14 मई को विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को भेजी गई अपनी शिकायत में उन्होंने सुपरवाइजर पर उनके “विवाहित जीवन का मजाक उड़ाने” और उनके गर्भवती होने के कारण उनका “उपहास” करने का आरोप लगाया है.
कविता* ने आरोप लगाया, "गर्भावस्था के दौरान उनके बुरे व्यवहार के कारण मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अपना जीवन समाप्त कर लूं... मैंने 20 बार अपनी सिनॉप्सिस में सुधार किया, लेकिन वह फिर भी संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने मुझे PhD छोड़ने के लिए मजबूर किया."
आयशा* ने आरोप लगाया कि जब भी वह फीडबैक लेने अपने सुपरवाइजर के ऑफिस जातीं, तो वो खुद के बारे में ऑनलाइन सर्च करने के लिए बोलते और अपना इंट्रोडक्शन पढ़ने के लिए कहते. इसके साथ ही वह किताबों के अंश और सारांश पढ़ने के लिए भी कहते, लेकिन आयशा* का काम नहीं देखते. आयशा* ने बताया कि उन्होंने “100 से ज्यादा बार” यह काम किया है.
अन्य दो PhD स्कॉलरों ने भी अपनी लिखित शिकायतों में इस बात का जिक्र किया था.
अदिति* ने आरोप लगाया कि सुपरवाइजर ने वर्तनी और टाइपोग्राफिकल जैसी छोटी-मोटी गलतियों की वजह से उनके प्रपोजल को खारिज कर दिया और यहां तक कि उनकी लेखनी का भी “अपमान” किया.
अदिति* ने द क्विंट को बताया, "जब मैंने यही काम जामिया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एजुकेशन में प्रस्तुत किया, तो न केवल इसका चयन हुआ, बल्कि जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षा संकाय के प्रोफेसरों ने इसे चेंजिंग पैराडाइम्स ऑफ एजुकेशन नामक पुस्तक में एक अध्याय के रूप में प्रकाशित भी किया."
हालांकि, “गंभीर एंजाइटी अटैक और अनिद्रा” की वजह से उन्हें कथित तौर पर कोर्स से हटने के लिए "मजबूर" किया गया.
आयशा* ने द क्विंट से कहा, “जब मैंने एक विशेष शरणार्थी समुदाय के बारे में प्रस्ताव रखा तो सुपरवाइजर ने मुझसे कहा कि अगर मैं हाशिए पर पड़े लोगों पर रिसर्च करूंगी तो एक दिन मैं भी उनमें से एक बन जाऊंगी.”
उन्होंने आगे बताया कि महिलाओं पर रिसर्च के लिए जब उन्होंने अपना प्रपोजल बदला, तो सुपरवाइजर ने चर्चा के दौरान “महिला विरोधी बयान” दिए और उनका “अपमान” किया. आयशा* ने अपनी शिकायत में लिखा है कि सुपरवाइजर के रवैये से उन्हें भावनात्मक तनाव और एंजाइटी का सामना करना पड़ा है.
आयशा* ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया, "एक लेक्चर के दौरान उन्होंने अचानक कहा, 'सहजन (ड्रमस्टिक) सेहत के लिए लाभदायक है, क्योंकि इससे यौन इच्छा बढ़ती है.'"
अदिति ने अपनी शिकायत में लिखा है कि वह महिला स्कॉलर्स और फैकल्टी मेंबर्स, जिनमें उनके विभाग की निदेशक भी शामिल हैं, पर लिंगभेदी (sexist) टिप्पणियां करते थे. कविता ने भी आरोप लगाया कि वह “लगातार विश्वविद्यालय की अन्य महिला फैकल्टी मेंबर्स की अकादमिक योग्यता को कमतर आंकते, उनकी आलोचना करते और उस पर सवाल उठाते थे.”
आयशा* ने आरोप लगाया, "वह अक्सर क्लासरूम में कहा करते थे- 'महिलाएं अब हर पद पर हैं; आपके केंद्र (CJNS) की निदेशक एक महिला हैं और यहां कार्यालय में बॉस हैं, लेकिन वह घर पर गुलाम या फिर शक्तिहीन हैं. मैं यहां पर बॉस नहीं हूं, लेकिन घर पर शक्तिशाली हूं, मैं ही बॉस हूं."
कविता* ने बताया कि सुपरवाइजर आमतौर पर रात में उन्हें फोन करते और यह पूछकर बातचीत शुरू करते कि क्या "मैं अकेली हूं." सितंबर 2022 की एक घटना को याद करते हुए, जब उन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया था, कविता* ने अपनी लिखित शिकायत में आरोप लगाया:
उन्होंने दावा किया कि वह "उनका कॉल रिसीव करने के लिए मजबूर थीं", नहीं तो वह अगली मीटिंग में बहुत ही बुरा बर्ताव करते और उनका रिसर्च नहीं देखते.
अदिति* ने आरोप लगाया कि वह उनके कपड़ों और आभूषणों पर टिप्पणी करते थे और “इस पर भद्दी टिप्पणियां करते थे कि मुझे लड़कों से दोस्ती रखनी चाहिए या नहीं.”
AIIMS की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कविता* ने बताया कि वह पिछले 18 महीनों से रेटिनल हेमरेज और क्लिनिकल डिप्रेशन से पीड़ित हैं और अब वह थायरॉयड से संबंधित समस्याओं के लिए रोजाना दवा ले रही हैं. उन्होंने दावा किया कि उनकी यह स्थिति “सीधे तौर पर उस लंबे समय तक के भावनात्मक तनाव और दबाव के कारण है जो मैंने उनके सुपरविजन में झेला है.”
आयशा* और अदिति* दोनों ने आरोप लगाया कि सुपरवाइजर ज्यादातर “महिला स्कॉलर्स को चुनते हैं” और “उनमें से ज्यादातर ने अपना रिसर्च छोड़ दिया है.”
क्विंट ने पूर्व छात्रा पूजा* से बात की, जिन्होंने दावा किया कि 2015 से 2022 तक PhD करने के दौरान उन्हें उक्त सुपरवाइजर के तहत “भावनात्मक शोषण” का सामना करना पड़ा. पूजा ने आरोप लगाया, ''जब हम उनके ऑफिस में उनकी उपलब्धियों को ऑनलाइन पढ़ते थे, तो वह हमें घंटों घूरते रहते थे.''
उन्होंने कहा कि वह औपचारिक शिकायत सितंबर 2020 में ही दर्ज करा सकीं, जब वह उस पद पर नहीं थे. पूजा* ने दावा किया कि उनके उत्तराधिकारी ने उनकी शिकायत स्वीकार की और तुरंत उनके सुपरवाइजर को बदल दिया, जिसके बाद वह अपना रिसर्च पूरा कर सकीं. क्विंट ने संबंधित प्रभारी से संपर्क किया है और उनके जवाब मिलने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.
हालांकि, पूजा* को अपनी शिकायत वापस लेनी पड़ी.
पूजा* ने द क्विंट से कहा, "जब आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने मेरी शिकायतें सुनीं, तो उन्होंने कहा कि कार्यवाही जारी रहने तक मुझे मेरी डिग्री नहीं मिलेगी. मैंने अपनी PhD पर पहले ही सात साल खर्च कर दिए थे और अब और इंतजार नहीं कर सकती थी. इसलिए, मैंने अपनी शिकायत वापस ले ली."
अपनी पहली शिकायत दर्ज कराने के दो महीने बाद, आयशा* को 6 जुलाई को एक ईमेल मिला, जिसमें उन्हें अपने सुपरवाइजर को रिपोर्ट करने और अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया. उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया और अपने विभाग के अन्य प्रोफेसरों को टैग करते हुए एक ईमेल लिखा.
कविता* और अदिति* को भी ऐसा ही ईमेल मिला, लेकिन उन्होंने भी मिलने से इनकार कर दिया. शिकायतकर्ताओं ने 7-8 जुलाई को संबंधित अधिकारियों को अपनी शिकायतों का ब्यौरा देते हुए दूसरा ईमेल भेजा.
"हमें आदतन उत्पीड़क से मिलने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है?" अदिति* ने पूछा, वहीं कविता ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ विशाखा दिशा-निर्देशों के संभावित उल्लंघन की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया है कि शिकायतकर्ता और प्रतिवादी को एक-दूसरे के आमने-सामने नहीं लाया जाना चाहिए.
अदिति* ने दुख जताते हुए कहा, "विडंबना देखिए, मैं महिलाओं की शिक्षा तक पहुंच विषय पर PhD कर रही थी. मुझे लगता है कि मेरी इस स्टडी का अब कोई मतलब नहीं है, क्योंकि विश्वविद्यालय ही महिला स्कॉलर्स को उच्च शिक्षा तक पहुंचने नहीं दे रहा है."
इस बीच, कविता* ने मांग की है कि अधिकारी लैंगिक मुद्दों के प्रति सुपरवाइजर को संवेदनशील बनाएं और उसके दुर्व्यवहार के लिए सजा दें.
कविता* ने कहा, “अगर मैं शादीशुदा हूं और मेरा एक बच्चा है, तो इसका यह मतलब नहीं है कि मैं PhD करने में सक्षम नहीं हूं.”
(*शिकायतकर्ता की पहचान छिपाने के लिए उनके नाम बदले गए हैं)
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