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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
इन दो केस का मतलब क्या है? कोरोना वायरस की महामारी वाले इस दौर में केंद्र, राज्य सरकारों, एजुकेशन बोर्ड्स ने ऑनलाइन पढ़ाई का शोर तो कर दिया है, लेकिन क्या हमारे पास पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर है? बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी तो छोड़िए, क्या गांव-कस्बों-शहरों-महानगरों तक में सबके पास स्मार्टफोन या लैपटॉप है? अगर है तो हमारे स्टूडेंट या टीचर इसके लिए कितने तैयार हैं?
जरा आंकड़ों से देश में ऑनलाइन एजुकेशन के हालात समझते हैं
UNESCO के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में COVID-19 के कारण लॉकडाउन का असर कुल 32 करोड़ छात्रों पर पड़ा है. ये छात्र प्री-प्राइमरी से लेकर ग्रेजुएशन-पीजी तक के छात्र हैं. वहीं दुनियाभर की बात करें तो 191 देशों में स्कूलों के बंद होने से करीब 150 करोड़ छात्र और 6.3 करोड़ प्राइमरी और सेकेंडरी टीचर प्रभावित हुए हैं.
Indian Statistical Institute के प्रोफेसर अभिरूप मुखोपाध्याय लॉकडाउन में पढ़ाई के लिए जद्दोजहद कर रही बड़ी आबादी की अहम मुसीबत के बारे में अपने आर्टिकल में बताते हैं. नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के हवाले से वो बताते हैं कि देश की 27 फीसदी आबादी के पास ही इंटरनेट एक्सेस है और इंटरनेट एक्सेस का मतलब ये नहीं कि घर पर इंटरनेट की सुविधा हो. इस 27% आबादी में से सिर्फ 47% लोगों के पास ही स्मार्टफोन या लैपटॉप या दूसरा कोई कम्प्यूटिंग डिवाइस है. इसमें गांव और शहर दोनों हैं.
अब जिनके पास इंटरनेट एक्सेस है वो भी इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर परेशान रहते हैं. देश में ज्यादातर लोग इंटरनेट के लिए 3G या 4G बेस्ड स्मार्टफोन की मदद लेते हैं.
Quacquarelli Symonds (QS) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर अभी ऑनलाइन लर्निंग पर शिफ्ट होने के लिए तैयार नहीं है. QS दुनियाभर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग तैयार करता है. "COVID-19: A wake up call for telecom service providers" नाम की ये रिपोर्ट QS के एक सर्वे पर आधारित है. रिपोर्ट में कनेक्टिविटी और सिग्नल की दिक्कतों पर बात की गई है. बताया गया है कि ऑनलाइन क्लासेज के दौरान छात्र इन दिक्कतों का सबसे ज्यादा सामना करते हैं.
द क्विंट से खास बातचीत में देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल कहते हैं,
पहले तो हमें इंफ्रास्ट्रकचर की ही दिक्कतों से गुजरना है. ये लड़ाई जब पूरी हो तो बात होगी कि हमने ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कौन-कौन से मॉडल तैयार किए हैं, जो अभी भी बनने के ही दौर में हैं. ये भी साफ है कि जिन देशों में इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी की सुविधा अच्छी है, वहां भी शिक्षकों के लिए ऑनलाइन टीचिंग जल्दी से शुरू करना चुनौतीपूर्ण रहा है. ऐसे ही जिन देशों में ये सुविधा कम मौजूद हैं, वहां ये चुनौती और भी बड़ी है.
ऐसे में कोरोना वायरस महामारी के दौर में वक्त है देश को ऑनलाइन एजुकेशन की खामियों पर रिसर्च करने का और उसपर काम करने का, जिससे आगे जब कभी ऐसा कुछ हो तो हम पूरी तरह तैयार रह सकें.
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