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Springdales School फाउंडर रजनी कुमार:प्यार के लिए भारत आईं,भारत को उनसे इश्क हुआ

अपने पति के साथ 1955 में दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल की स्थापना करने वाली Rajni Kumar का 10 नवंबर को देहांत हो गया

राहुल गोरेजा
शिक्षा
Published:
<div class="paragraphs"><p>चैंपियन एजुकेटर और पद्म श्री पुस्कार से सम्मानित रजनी कुमार का 99 वर्ष की आयु में&nbsp;निधन </p></div>
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चैंपियन एजुकेटर और पद्म श्री पुस्कार से सम्मानित रजनी कुमार का 99 वर्ष की आयु में निधन

फोटो : नमिता चौहान / क्विंट

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पूसा रोड पर स्थित दिल्ली के प्रतिष्ठित स्प्रिंगडेल्स स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल डॉ अमीता मुल्ला वट्टल ने स्प्रिंगडेल्स स्कूलों की फाउंडर रजनी कुमार के बारे में बताते हुए कहा कि "उनके साथ मेरा संबंध कुछ ऐसा था कि जब भी हमारी बात होती थी, तब वे (रजनी कुमार) कहती थीं कि हम-तुम एक ही धागे (लाइफ और लर्निंग से) से जुड़े हुए हैं."

चैंपियन एजुकेटर और पद्म श्री पुस्कार से सम्मानित रजनी कुमार का 99 वर्ष की आयु में बीते 10 नवंबर को निधन हो गया.

क्विंट ने आधुनिक भारत की प्रतिष्ठित शिक्षाविद् और सबकी प्यारी "कुमार आंटी" के बारे में जानने के लिए उनके सहयोगियों, पूर्व छात्रों और पैरेंट्स से बात की.

'प्यार के लिए भारत आयीं'

रजनी कुमार का जन्म 5 मार्च 1923 को इंग्लैंड में हुआ था. उनका असली नाम नैन्सी जॉयस मार्गरेट जोन्स था. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई के दौरान उन्हें साथ में पढ़ने में वाले स्टूडेंट युधिष्ठर कुमार से प्यार हो गया था.

युधिष्ठर के पीछे-पीछे नैन्सी 23 साल की उम्र में भारत आ गईं. यहां युधिष्ठर जब टीबी से लड़ रहे थे तब रजनी ने उनकी देखभाल की और अंत में दोनों ने शादी कर ली. इसके बाद से ही नैन्सी जोन्स रजनी कुमार बन गईं.

1950 में दिल्ली के सलवान गर्ल्स स्कूल को रजनी ने बतौर प्रिंसिपल ज्वॉइन किया, जहां उन्होंने पांच साल तक काम किया. इसके बाद 1955 में उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर दिल्ली के पूर्वी पटेल नगर में अपने किराए के घर में स्प्रिंगडेल्स स्कूल की स्थापना की थी. उस समय उनकी स्कूल में 24 स्टूडेंट और 3 टीचर थे.

रजनी कुमार को अपना "मेंटर" मानने वाली डॉ अमीता मुल्ला वट्टल बताती हैं कि "50 के दशक में जब रजनी कुमार भारत आईं, तब वे लर्निंग के मामले में अपने साथ ताजी सांसें लेकर आईं. वे शिक्षा का एक नया रूप लेकर आईं. जिन चीजों के बारे में हम आज बात करते हैं, उन चीजों को वो अपने साथ तभी लेकर आई थीं. जिस नई शिक्षा नीति की बात हम आज कर रहे हैं, उसके बारे में वे तभी बातें करती थीं."

वट्टल कहती हैं कि कुमार ने "एक बच्चे के समग्र विकास पर जोर दिया, न कि केवल मार्क्स (नम्बर्स) पर." वट्टल बताती हैं कि "इन्हीं सिद्धांतों और विचारों को ध्यान में रखते हुए रजनी कुमार ने स्कूल की स्थापना की थी."

वर्तमान में चार स्प्रिंगडेल्स स्कूल हैं- दो दिल्ली में, एक जयपुर में और एक दुबई में.

2019 की रजनी कुमार की आत्मकथा (अगेंस्ट द विंड: ए लाइफ्स जर्नी) के बारे में भी वट्टल ने बात की, आत्मकथा में कुमार ने इंग्लैंड में बिताए गए अपने समय, प्यार में पड़ने, भारत आने, स्प्रिंगडेल्स की स्थापना और 1988 में प्रिंसिपल के तौर पर रिटायर होने के बारे में विस्तार से लिखा है.

रजनी कुमार ने अपने संस्मरण की प्रस्तावना में लिखा है कि "इसमें कोई शक नहीं है कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना वह थी जब मैंने अपने दिल की आवाज को सुनते हुए अपनी जन्मभूमि इंग्लैंड को छोड़ने और इस अद्भुत तथा आकर्षक देश भारत में उस आदमी के साथ घर बसाने का फैसला किया, जिसे मैं प्यार करती थी. तो मैं यहीं से अपनी कहानी शुरु करूंगी."

'जो सही था वह उसके लिए खड़ी हुईं' : एक्टिविस्ट शबनम हाशमी

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी के बच्चे स्प्रिंगडेल्स स्कूल में पढ़ते थे. हाशमी ने रजनी कुमार को याद करते हुए कहा कि वह ऐसी शख्सियत थीं जो हमेशा सही के साथ खड़ी रहती थीं. वे एक असाधारण 'दुर्लभ महिला' थी.

हाशमी कहती हैं कि "न केवल भारत में बल्कि दुनिया में बहुत कम ही ऐसे स्कूल हैं जो स्टूडेंट्स को लोकतांत्रिक मूल्य प्रदान कर हैं और उन्हें प्रमुख लोकतांत्रिक संघर्षों से अवगत करा रहे हैं. मैं सोच भी नहीं सकती कि दिल्ली में ऐसा स्कूल होगा जो नेल्सन मंडेला की जीवन की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करता था या 1917 की रूसी क्रांति के बारे में छात्रों को बताते था. वे लगातार छात्रों को जेंडर और सांप्रदायिक सद्भाव से संबंधित मुद्दों के प्रति संवेदनशील बना रहे थे, यह मुख्य तौर पर रजनी कुमार और उनके पति के कारण था."

भारत में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए 2012 में रजनी कुमार को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब एस जुमा द्वारा नेशनल ऑर्डर ऑफ द कम्पेनियंस ऑफ ओ.आर. टैम्बो (सिल्वर) से सम्मानित किया गया था.

वट्टल कहती हैं कि "हमारे स्कूल ने एक अफ्रीका क्लब शुरू किया था, हमारे स्टूडेंट्स उन्हें पत्र लिखा करते थे. और दक्षिण अफ्रीका को आजादी मिलने के बाद उन्होंने (मंडेला ने) सबसे पहले जिस स्कूल का दौरा किया, वह दिल्ली में हमारा स्कूल था."

इस दौरान, हाशमी ने पुरानी बातों को याद करते हुए बताया कि कैसे रजनी कुमार ने दिल्ली में घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला के बच्चों को शिक्षित करने में मदद की थी. हाशमी कहती हैं कि "हमने उस महिला को बचाया. उसके बाद मैंने मिसेज कुमार से मुलाकात की और उन्हें बताया कि इन बच्चों की पढ़ाई बाधित हो गई है. उन्हें स्कूल जाने की जरूरत है. यह सुनने के बाद मिसेज कुमार ने उन दोनों बच्चों को तत्काल एडमिशन दिया. चूंकि उस समय उन बच्चों की मां की हालत ऐसी नहीं थी कि वह स्कूल ड्रेस खरीद सके, इसलिए बच्चों को बिना यूनिफार्म के स्कूल आने की अनुमति दी गई थी."

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कइयों के लिए मां जैसी थीं रजनी

हीरू मीरचंदानी स्प्रिंगडेल्स स्कूल के पूर्व छात्रा हैं, उन्होंने क्विंट को बताया कि रजनी कुमार उनकी गॉडमदर जैसी थीं.

मीरचंदानी कहती हैं कि "स्प्रिंगडेल स्टूडेंट के पैरेंट के तौर पर वे (रजनी कुमार) मेरी मां को जानती थीं. जब मैं छोटी थी तब मैंने अपनी मां को खो दिया और उसके बाद मिसेज कुमार मेरी गॉडमदर की तरह बन गईं. वे अक्सर मेरी मां के बारे में कहानियां सुनाती थीं, निश्चित तौर पर मुझे यह काफी अच्छा लगता था."

मीरचंदानी ने मिसेज कुमार को जिज्ञासु, हंसमुख और सीधा-सरल जीवन जीने वाली महिला के रूप में याद करती हैं. उन्होंने उस दिन को याद किया जब दोनों पिज्जा खाने के लिए बाहर गई थीं. मीरचंदानी बताती हैं कि "उस समय मिसेज कुमार 95 वर्ष की थीं. उन्होंने मेन्यू देखा और उसमें से सबसे 'भयंकर' चीजों का ऑर्डर दिया. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या वे सलाद लेना पसंद करेगी, तब उन्होंने कहा था 'सलाद कौन खाता है?' और एक ग्लास वाइन के साथ दिल से इटैलियन मील को इंजॉय किया."

हीरू मीरचंदानी बताती हैं कि मिसेज कुमार अक्सर उनसे कॉरपोरेट वर्ल्ड और वहां की समस्याओं के बारे में पूछती थीं. "मिसेज कुमार पूछती थीं कि पुरुष-प्रधान दुनिया में एक महिला होना कैसा लगता है? वे हमेशा ही काफी जिज्ञासु और उत्सुक रहती थीं."

अगले साल कुमार 100 वर्ष की हो जातीं. यह उनके जीवन में एक अहम पड़ाव होता, उस मौके को सेलिब्रेट करने के लिए मीरचंदानी सहित कई लोग उत्सुक थे.

इस बीच, स्प्रिंगडेल्स की पूर्व छात्रा यामिनी मलिक ने उस घटना को याद किया जब एक प्रतियोगिता में उन्हें अच्छा रिजल्ट मिला था और उसके बाद मिसेज कुमार द्वारा यामिनी को 500 रुपये प्राप्त हुए थे.

यामिनी बताती हैं कि "मैंने उनसे (मिसेज कुमार से) कहा था कि यह मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण उपलब्धि है और इस वजह से उन्होंने मुझे एक लिफाफा भेजा था, जिसके अंदर 500 रुपये का एक नोट था. वे मेरे लिए काफी अहम था, एक बच्चे के तौर पर भी मैंने कभी भी उन पैसों को इस्तेमाल (खर्च) करने के बारे में नहीं सोचा था. यहां तक कि जब नोटबंदी हुई तब भी मैंने उस नोट को बदलने के बारे में नहीं सोचा था, क्योंकि यह नोट उनके पास से आया था."

यामिनी मलिक के परदादा भी रजनी कुमार और उनके पति के दोस्त थे, उन्होंने स्कूल स्थापित करने में मदद की थी.

मीरचंदानी बताती हैं कि "उनकी याददाश्त काफी तेज थी और मिसेज कुमार से मिलने वाले सभी लोगों को ऐसा महसूस होता कि उनके साथ उनका व्यक्तिगत संबंध है."

रजनी कुमार के साथ यामिनी मलिक

फोटो : क्विंट द्वारा एक्सेस की गई

रजनी कुमार द्वारा यामिनी को दिया गया 500 रुपये का नोट

फोटो : क्विंट द्वारा एक्सेस की गई

'उन्होंने मुझे तब म्यूजिक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जब यह एक स्वीकार्य पेशा नहीं था': म्यूजिक कंपोजर शांतनु मोइत्रा

प्रसिद्ध म्यूजिक कंपोजर शांतनु मोइत्रा ने अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में उस बात को शेयर किया है कि कैसे रजनी कुमार ने उन्हें तब म्यूजिक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया था जब यह एक स्वीकार्य प्रोफेशन नहीं था.

सरित अरोड़ा ने ट्विटर पर लिखा है कि "एक स्प्रिंगडालियन के तौर पर, मैं हमेशा मैडम रजनी कुमार का ऋणी रहूंगा. उन्होंने मेरे अंदर स्वतंत्रता, समानता, एकता, भाईचारा और शांति के मूल्यों को स्थापित किया... हममें से कई लोगों और हमारे भविष्य को आकार देने लिए धन्यवाद ...आपने दुनिया को बेहतर बनाया. RIP"

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