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गांधी के नाम पर रस्म नहीं, काम की जरूरत : शंकर सान्याल

गांधी के नाम पर रस्म नहीं, काम की जरूरत : शंकर सान्याल

IANS
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गांधी के नाम पर रस्म नहीं, काम की जरूरत : शंकर सान्याल (साक्षात्कार)
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गांधी के नाम पर रस्म नहीं, काम की जरूरत : शंकर सान्याल (साक्षात्कार)
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पटना, 17 फरवरी (आईएएनएस)| देश के चर्चित गांधीवादी और हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष शंकर कुमार सान्याल का कहना है कि महात्मा गांधी के नाम पर रस्मअदायगी से ज्यादा ठोस काम जरूरी है। उन्होंने कहा कि गांधी अब स्तूप और मठ से उठकर लोगों के बीच नहीं जा सकते, इसके लिए उन लोगों को आगे आना होगा, जिन्होंने उस महात्मा को ठीक से समझा है।

यहां एक कार्यक्रम में भाग लेने आए सान्याल ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, आज गांधी को केवल पाठ्य पुस्तकों में न पढ़ाया जाए, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में उनके चरित्र को जीने की कला सिखाने की जरूरत है।

उन्होंने हालांकि चिंता प्रकट करते हुए कहा, यह चिंतनीय पहलू है कि आज के युवा गांधी से नहीं जुड़ पा रहे हैं और इसके लिए कोई कोशिश भी होती नहीं दिख रही है।

सान्याल ने कहा कि विश्वभर में बढ़ते आतंकवाद, प्राकृतिक संकट, वैमनस्य तथा असमानता का निदान मात्र अहिंसा, प्रेम और करुणा से ही हो सकता है। अहिंसा एक विचार नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक ढंग है। यही वजह है कि आज भारत में गांधी की जितनी चर्चा नहीं होती, उससे ज्यादा विदेशों में होती है।

सान्याल का कहना है कि आज जिस तरह से लोगों में असहिष्णुता बढ़ी है, उस पर गांधी के दर्शन और विचार से ही रोक लगाई जा सकती है।

उन्होंने कहा कि आज के संदर्भ में भी गांधी के विचार ही उपयोगी हैं। यह गौर करने वाली बात है कि जिस ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गांधी ने लड़ाई लड़ी, आज उसी ब्रिटिश पार्लियामेंट के सामने गांधी की मूर्ति स्थापित है। जो लोग गांधी को भुलाने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि दुनिया के 108 देशों में गांधी के सम्मान में रास्तों के नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखे गए हैं और 350 शहरों में उनकी मूर्तियां हैं।

महात्मा गांधी द्वारा वर्ष 1932 में स्थापित हरिजन सेवक संघ के सातवें अध्यक्ष सान्याल ने युवाओं के गांधी से दूर रहने के प्रश्न पर कहा, दरअसल, गांधी के लिए मार्केटिंग नहीं की गई। आज कई साधु-संतों की पहचान बौद्धिक मार्केटिंग के जरिए ही हुई है। सिर्फ रस्मअदायगी से काम नहीं चलेगा, गांधी के विचारों को युवाओं तक पहुंचाने की जरूरत है और इसके लिए गांधीवादियों को आगे आना होगा।

बिहार सरकार द्वारा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि शराबबंदी तो पूरे देश में होनी चाहिए और इसके लिए माहौल तैयार करने की जरूरत है।

राष्ट्रीय एकता पुरस्कार व गैर-पारंपरिक ऊर्जा पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित सान्याल ने गांवों के पिछड़ेपन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि महात्मा गांधी गांव को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर इकाई बनाए जाने पर जोर दिया था। आज उनके द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यो को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, देश कितना भी प्रगति कर ले, लेकिन गांधी के विचारों को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि उनके विचार मानव को मानवता सिखाते हैं।

सान्याल ने कहा कि गांधी के विचार के केंद्र में गांव थे और अहिंसा उनका मूलमंत्र था। हिंसा अशांति लाती है और अहिंसा शांति देती है। जिनको शांति पसंद है, वे गांधी से दूर नहीं जा सकते।

मौजूदा समय में गांधीवादियों के सामने क्या चुनौती है? यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा, आज धर्म, मजहब के नाम पर इंसानों के बीच नफरत फैलाकर उसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास देशभर में चल रहा है। गांधी हर धर्म को समान दृष्टि से देखते थे। उन्हें यह भजन प्रिय था 'ईश्वर-अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान'। समाज में घोले जा रहे नफरत के जहर को समाप्त करना सबसे बड़ी चुनौती है। पर्यावरण की रक्षा और अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाना भी गांधीवादियों के समक्ष बड़ी चुनौती है। हिंसात्मक व्यवस्था को अहिंसात्मक तरीके से चुनौती देनी होगी।

किसी भी नेता के लिए गांधी को आदर्श मानना कितना जरूरी है? इस सवाल पर उन्होंने स्पष्ट कहा, सारी दुनिया भारत को गांधी के देश के रूप में देखती और सम्मान देती है। अहिंसा के मार्ग पर चलकर सर्वशक्ति संपन्न ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजाद करा लेना आसान काम नहीं था। महात्मा गांधी इंसान के रूप में देश के लिए भगवान थे। चोर भी मंदिर में भगवान को प्रणाम करने के बाद ही चोरी करने जाता है। यह दुखद है कि गांधी के विचारों से आज के अधिकांश नेता बहुत दूर चले गए हैं।

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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