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गुलबर्ग सोसायटी मामले में गुरुवार को फैसला आ गया, जिसमें 36 लोगों को बरी कर दिया गया है और 24 लोगों को दोषी करारर दिया गया है. आइए नजर डालते हैं कि क्या था पूरा मामला और अब तक इस केस में क्या क्या हुआ?
दरअसल अहमदाबाद के मेघाणीनगर थाना क्षेत्र की गुलबर्ग सोसाइटी में 28 फरवरी 2002 को दंगाइयों ने हमला कर दिया था. जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
घटना के बाद 39 लोगों के शव बरामद किए गए थे जबकि सात साल बाद बाकी 30 लापता लोगों को मृत मान लिया गया था.
20,000 से ज्यादा लोगों की हिंसक भीड़ ने अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी जहां सिर्फ एक पारसी और बाकी मुसलमान परिवार रहते थे उसपर हमला कर दिया. ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया गया. 39 लोगों के शव बरामद हुए और अन्य को गुमशुदा बताया गया, अब कुल मौतों का आंकडा 69 है.
8 जून, 2006: एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने पुलिस को एक फरियाद दी, जिसमें इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों समेत पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया. पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया.
7 नवंबर, 2007: गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को एफआईआर मानकर जांच करवाने से इनकार कर दिया.
26 मार्च, 2008: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों की जांच के लिए आर के राघवन की अध्यक्षता में एक SIT बनाई जिसमें गुलबर्ग का मामला भी शामिल हुआ.
मामले की सुनवाई साल 2009 में शुरू हुई, जिसमें कुल 66 आरोपी थे. इनमें से चार की पहले ही मौत हो चुकी है. मामले की सुनवाई के दौरान 338 लोगों की गवाही हुई.
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस नरसंहार के मामले में आरोपी थी, हालांकि 2010 में उनसे पूछताछ के बाद एसआईटी रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी. बाद में 10 अप्रैल 2012 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने एसआईटी की रिपोर्ट को माना कि मोदी और अन्य 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.
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