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वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद बीते कुछ दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है, लोगों के अलग-अलग दावों के बीच बनारस में कश्मकश की स्थिति बनी हुई है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले पर अपने आदेश में कहा कि इस मामले की सुनवाई अब सिविल कोर्ट के बजाय जि़ला अदालत करेगी, लेकिन स्थानीय लोग शिवलिंग था या नहीं इसकी बहस में लगे हुए हैं। ज्ञानवापी में फिलहाल शिवलिंग के दावे वाली जगह पर सुरक्षा की रखी गई है और नमाजियों को मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति भी होगी। जिस जगह पर यह दावा किया गया है उधर करीब 7 से 8 पैरामिल्रिटी फोर्स के जवान तैनात हैं और कड़ी निगरानी रखे हुए हैं।
मस्जिद में नमाज पढ़ने वाली जगह के बाहर पुलिस ने भी सुरक्षा व्यवस्था संभाली हुई है, नमाज पढ़ने जाने से पहले सभी की चेकिंग की जाती है और संदिग्धों से पूछताछ भी होती है।
वाराणसी के कुछ निवासी इसे राजनीति बता रहे हैं तो कोई शिवलिंग तो फव्वारे का ही दावे कर रहे हैं। वाराणसी के निवासी महताब अली कहते हैं यह सर्वे और अन्य चीजें बनारस में सिर्फ राजनीति के कारण हो रही हैं, 1991 के तहत जब कानून बन चुका है तो फिर उसके बाद सर्वे और खुदाई का क्या मतलब रह जाता है। यहां के तमाम मुसलमान वहां नमाज पढ़ते है और वुजू खाने में ही वुजू करते हैं, लेकिन अब यह सब होना बहुत गलत है।
यह सिर्फ अकेली मस्जिद नहीं जहां इस तरह का फव्वारा है, अन्य कई मस्जिदों में इसी तरह वुजू खाना है। इसके मुताबिक तो सभी जगहों पर शिवलिंग ही है।
विवाद वाली जगह से थोड़ी ही दूर रेस्टोरेंट संचालक हरि प्रकाश सिंह ने बताया कि, जबसे यह सर्वे शुरू हुआ है और यह मामला चला है तब से रेस्टोरेंट में ग्राहकों ने आना बंद कर दिया है। टूरिस्ट भी पहले के मुकाबले कम है। लगता है सर्वे से लोगों में डर बैठा हुआ है। हालांकि कॉरिडोर बनने से बहुत फायदा हुआ है। सरकार यदि कोई बहतर विकल्प तलाशे तो और बेहतर व्यापार होगा और यदि यहां शिवलिंग ही मिलता है तो इससे और व्यापार बढ़ेगा।
काशीविश्वनाथ मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेंद्र पांडेय ने आईएएनएस को बताया कि, क्योंकि यह मामला अदालत में चला गया है तो न्यायालय में इतना विवेक और समय है कि वह दूध का दूध पानी का पानी कर सकें। हिंदू और मुस्लिम पक्षों पर बवाल नहीं करना चाहिए। शांति बनाए रखनी चाहिए और निष्कर्ष का इंतजार करना चाहिए।
यदि आप हिंदू और मुस्लिम पक्षों से व्यग्तिगत रूप से पूछेंगे तो दोनों पक्षों के दावे सभी को पता हैं। हालांकि पहले या अभी भी कोई देखे तो वो पूरा मन्दिर का ही ढांचा है। फूल पत्र बना हुआ है, डमरू और त्रिशूल बना हुआ है। यह मंदिर में ही मिलते हैं न कि मस्जिद में।
यह साफ है कि हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपने-अपने दावों पर बरकरार हैं मुस्लिम समाज के लोगों की माने तो यह फव्वारे को बेवजह शिवलिंग बना दिया जा रहा है। बनारस में भाई चारा हमेशा कायम रहेगा लेकिन कुछ लोग माहौल खराब करने का प्रयास कर रहे हैं।
वहीं हिंदू पक्षों के तमाम लोग कह रहे हैं कि हमारे दूसरे समाज के भाई खुद कह रहे हैं कि वहां जो भी होगा हम उसे मानेंगे तो हम भी उनका सम्मान करते हैं। लेकिन सासंद ओवैसी कयामत तक लड़ने की बात कर रहे हैं। पहले कोर्ट का सम्मान करने की बात और फिर कयामत तक लड़ने की बात कहना गलत है।
इसके अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर के पास एक दुकान संचालक आमिर बताते हैं कि, जिसको यह शिवलिंग कह रहे हैं उस तरह की तमाम कारीगरी हमारे देश में होती है। लेकिन सिर्फ दो समुदायों को बांटना है तो आप कुछ भी कहिये, हम कोर्ट में यकीन रखते हैं फैसला जो होगा मंजूर होगा लेकिन इनसे(हिंदू पक्ष) भी पूछिए क्या इन्हें मंजूर होगा ?
मैं सभी से यह पूछना चाहता हूं कि यह तय कौन करेगा कि यह क्या है ? कानून ही कहता है कि निर्दोष को कभी सजा नहीं मिलनी चाहिए लेकिन जिस तरह की चीजें हो रही हैं, हम सभी को दोषी बनाया जा रहा है।
इनसब बहस के बीच विशेष कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह द्वारा अदालत में दूसरे चरण की रिपोर्ट भी पेश की जा चुकी है जो कि लीक हो गई। उनकी रिपोर्ट में भी इस बात का दावा किया गया है कि, हिंदू प्रतीकों के चिह्न् प्राप्त हुए हैं। वहीं मस्जिद की दीवारों पर कमल, डमरू और त्रिशूल के प्रतीक चिह्न् मिलने के बारे में भी रिपोर्ट में बताया गया है।
इससे पहले पूर्व कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा ने भी अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें उन्होंने 10 प्रतिशत ही काम किया है लेकिन उसमें उन्होंने कुछ चीजें ऐसी देखीं जो इसके मंदिर होने की तरफ इशारा करती हैं।
--आईएएनएस
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