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आक्रामक होते किसान आंदोलन से कैसे निपटेगी बीजेपी?

आक्रामक होते जा रहे किसान आंदोलन को लेकर आने वाले दिनों में भाजपा की यह होगी रणनीति

IANS
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नई दिल्ली, 10 नवंबर ( आईएएनएस )। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन का एक वर्ष पूरा होने जा रहा है और इस मौके पर किसान संगठनों ने एक बार फिर से अपने आंदोलन को धार देने के लिए अब संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद तक ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान कर दिया है।

सरकार पर दवाब बढ़ाने के लिए जहां एक तरफ आंदोलनकारी किसान नेताओं ने संसद तक ट्रैक्टर मार्च करने का ऐलान कर दिया है वहीं दूसरी तरफ गांव देहात में भी आंदोलनकारी किसान लगातार भाजपा नेताओं का घेराव कर रहे हैं। यह समस्या इसलिए भी चुनौतीपूर्ण बन गई है क्योंकि आने वाले दिनों में भाजपा के मंत्रियों, सांसदों और दिग्गज नेताओं को चुनाव वाले उन इलाकों का दौरा करना है, जहां इन किसान संगठनों का प्रभाव है।

आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा के चुनावी अभियान से जुड़े एक बड़े नेता ने बताया कि किसान आंदोलन को लेकर भाजपा का रूख बिल्कुल स्पष्ट है कि सरकार हमेशा बातचीत के लिए तैयार है लेकिन किसानों के हितों के नाम पर ये संगठन सिर्फ राजनीति कर रहे हैं।

आक्रामक होते किसान आंदोलन और हाल ही में हरियाणा में जिस अंदाज में भाजपा नेताओं को कई घंटे तक बंधक बना कर रखा गया, जैसे हालात उत्पन्न होने पर भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को शांति के साथ प्रतिक्रिया देने को कहा गया है।

भाजपा नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए बताया कि लाल किला में तिरंगे का अपमान करके, देश का अपमान करके इन संगठनों ने यह साबित कर दिया है कि इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए जहां तक संसद मार्च का सवाल है , यह कानून व्यवस्था कायम करने वाली एजेंसियों का मामला है और सारे हालातों को देखते हुए नियमानुसार इनसे संबंधित एजेंसिया ही अनुमति देने या नहीं देने को लेकर फैसला करेगी।

इसके साथ ही भाजपा नेता ने आईएएनएस से यह भी कहा कि जहां तक चुनाव का सवाल है , जनता और देश के किसान इनकी सच्चाई जानते हैं और इसलिए जनता भाजपा के साथ है।

आपको बता दें कि रविवार को दिल्ली में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी भाजपा के एक दिग्गज नेता ने मंच से हरियाणा के ऐलनाबाद में हुए उपचुनाव का जिक्र करते हुए कहा था कि हार के बावजूद भाजपा उम्मीदवार के मतों में बढ़ोतरी और दूसरे स्थान पर आने से यह साबित हो गया है कि किसान बहुल इलाकों में भी जनता इन किसान नेताओं के साथ नहीं खड़ी है।

--आईएएनएस

एसटीपी/एएनएम

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