Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Independence Day 2023: स्वतंत्रता संग्राम की पांच गुमनाम नायिकाओं की कहानी

Independence Day 2023: स्वतंत्रता संग्राम की पांच गुमनाम नायिकाओं की कहानी

Independence Day 2023: स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुछ ऐसी अनकही कहानियां, जिन्हें अनदेखा कर दिया गया

क्विंट हिंदी
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>स्वतंत्रता संग्राम की पांच गुमनाम नायिकाओं की कहानी, जिनके चेहरे से हम अनजान हैं</p></div>
i

स्वतंत्रता संग्राम की पांच गुमनाम नायिकाओं की कहानी, जिनके चेहरे से हम अनजान हैं

क्विंट हिंदी

advertisement

हरेक स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2023) के दिन हम उन वीर सपूतों को याद करते हैं, जिनकी देश के प्रति दिवानगी हमें राष्ट्र भावना से भाव-विभोर कर देती है. हम उन लाखों सिर की बात करते हैं, जो वतन पर न्योछावर हो गयें.

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, लाला लाजपत राय जैसे अनगिनत सेनानियों के त्याग और बलिदान की कहानियों से हर भारतीय परिचित है.

लेकिन इस बीच छिपी रह जाती हैं कुछ ऐसी अनकही कहानियां, जिन्हें या तो बिलकुल अनदेखा कर दिया गया है या वे इतिहास की किताबों में, गुमनाम होकर रह गयीं.

स्वंत्रता दिवस की 77वीं वर्षगांठ पर आइए हम आपको पांच ऐसी गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बतातें हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को धूल चटा दिया था.

बीनादास

1986 में दिसंबर के महीने में ऋषिकेश की एक खाई में एक अनाथ शव मिला. वो शव पूरी तरह सड़ चुका था. हालत ऐसी कि देखकर पहचान पता कर पाना बिल्कुल भी संभव नहीं. काफी मालूम करने पर पता चला कि वो शव महान देशभक्त बीनादास का है.

ये वही बिनादास थीं, जिनकी हिम्मत ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे. महज 21 वर्ष की उम्र में, अंग्रेजी हुकुमत से लोहा लेते हुए, उन्होंने बंगाल के ब्रिटिश अधिकारी गवर्नर स्टेनले जैक्सन जैक्सन पर गोली चला दिया था. ऐसा कर वो यह दिखाना चाहती थीं कि भारतीय अंग्रेजी शासन से कितनी नफरत करते हैं.

हालांकि बीना का निशाना चुक गया और गोली जैक्सन के कान के पास से होकर गुजरी. इतने में लेफ्टिनेन्ट कर्नल सुहरावर्दी ने दौड़कर बीना का गला एक हाथ से दबा दिया और दूसरे हाथ से पिस्तौल वाली कलाई पकड़ कर हॉल की छत की तरफ कर दी. इसके बावजूद बीना एक के बाद एक गोलियां चलाती रहीं.

उन्होंने कुल पांच गोलीयां चलाई. बीना को तुरंत ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 9 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.

9 साल जेल में बिताने के बाद अन्य राजबंदियों के साथ वो भी बाहर आईं. रिहाई के तुरंत बाद, उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. यहां उन्हें एकबार फिर गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि कितनी भी मुश्किलें और चुनौतियां बीना के रास्ते में आई हों, लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ना नहीं छोड़ा.

1947 में बीनादास ने स्वतंत्रता सेनानी ज्योतिष भौमिक से शादी की. वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने के बाद भी बीना ने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए लड़ना नहीं छोड़ा. लेकिन इस बीच बीनादास के साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसने उन्हें बुरी तरह झकझोर कर रख दिया. बिनदास के पति ज्योतिष भौमिक अचानक ही चल बसें.

अपने पति की मृत्यु के शोक में विलुप्त बीना कलकत्ता छोड़कर, सभी की नजरों से दूर ऋषिकेश के एक छोटे से आश्रम में जा बसीं. अपना गुजारा करने के लिए वहां वो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं और एक प्राइवेट स्कूल में 25 रुपए की नौकरी भी करती थीं.

इस बीच सरकार ने उनसे संपर्क कर, स्वतंत्रता सेनानी पेंशन स्वीकार करने का आग्रह किया. लेकिन बीनादास ने ये पेंशन लेने से इंकार कर दिया.

प्रोफेसर सत्यव्रत घोष ने अपने एक लेख, "फ्लैश बैक: बिना दास -- रीबॉर्न" में बीनादास की मार्मिक मृत्यु का जिक्र करते हुए लिखा है-

"उन्होंने सड़क के किनारे अपना जीवन समाप्त किया. उनका मृत शरीर बहुत ही छिन्न भिन्न अवस्था में था. रास्ते से गुजरने वाले लोगों को उनका शव मिला. पुलिस को सूचित किया गया और महीनों की तलाश के बाद पता चला कि यह शव बिनादास का है. यह सब उसी आजाद भारत में हुआ जिसके लिए इस अग्नि - कन्या ने अपना सब कुछ ताक पर रख दिया था. देश को इस मार्मिक कहानी को याद रखते हुए ,देर से ही सही, लेकिन अपनी इस महान स्वतंत्रता सेनानी को सलाम करना चाहिए."

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नीरा आर्य, जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस के लिए अपने पति पर गोली चला दी 

बागपत जिले के खेकड़ा कस्बे की एक वीरांगना नीरा आर्य. नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च 1902 को बागपत जिले के खेकरा नामक नगर में हुआ था. नीरा के अंदर देश को आजादी दिलाने को लेकर एक आग थी, इसलिए अपनी पढ़ाई के साथ ही वो सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद फौज’ की रानी झांसी रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में शामिल हो गईं.

उस दौरान नीरा के पिता अंग्रेजों से काफी ज्यादा प्रभावित थे. ऐसे में नीरा के पिता ने उनकी शादी ग्रेज सैन्य अधिकारी श्रीकांत जयरंजन दास से करवा दिया.

शादी के बाद, नीरा एक दिन नेताजी से मिलने जा रही थीं. यह देख उनके पति श्रीकांत भी उनका पीछा करने लगें. नीरा को नेताजी से मिलते देख, श्रीकांत ने नेताजी पर गोली चला दी.

सौभाग्य से नेताजी तो बच गए लेकिन गोली उनके ड्राइवर को लग गई. इस घटना के बाद, अंग्रेजों के पास किसी तरह की सूचना न पहुंच सके इसलिए नीरा ने अपने पति श्रीकांत, जो कि CID में एक अधिकारी पद पर था. उसे ही मार दिया.

हालांकि अंग्रेजों की इसकी भनक लग गई और नीरा को सेल्युलर जेल भेज दिया गया. अंग्रेज चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस और कांग्रेस की भविष्य की नीतियों के बारें में नीरा उन्हें बता दें. लेकिन नीरा ने कुछ भी नहीं बताया.

इस दौरान नीरा को काफी ज्यादा प्रताड़ित किया गया. उनके स्तन तक काट दिए गए. इतनी कठिनाई झेलने के बावजूद उन्होंने राष्ट्र के लिए काम करना नहीं छोड़ा. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने नीरा आर्य की वीरता को देखते हुए उन्हें भारत की प्रथम महिला जासूस की उपाधि दी थी. आजादी के बाद इन्होंने सड़क के किनारे फूल बेचकर गुमनाम जिंदगी जी.

राजकुमारी गुप्ता के विचारो में गांधीवाद तथा चंद्र शेखर दोनों की छाप थी

राजकुमारी गुप्ता का जन्म 1902 में बाँदा , कानपुर जिले में हुआ था. इनका विवाह मदन मोहन गुप्ता के साथ हुआ. राजकुमारी और इनके पति मदन मोहन, गांधी जी और चंद्र शेखर आजाद के साथ मिलकर काम करते थे, जिसकी वजह से राजकुमारी गुप्ता के विचारो में गांधीवाद तथा चंद्र शेखर दोनों की छाप थी.

राजकुमारी गुप्ता सबसे नजर बचा-बचा कर क्रांतिकारियों के लिए सूचना तथा हथियार बांटने का काम करती थीं. वो चंद्र शेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी की सदस्य भी थीं.

काकोरी कांड में क्रांतिकारियों को हथियार पहुंचाने का काम राजकुमारी गुप्ता ने ही किया था. अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद यह बात सबके सामने आ गई.

जब उनके ससुराल वालों को यह बात पता चला, तो उन्होंने राजकुमारी का बहिष्कार कर दिया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और देश की आजादी के लिए योदगान देती रहीं.

किटटूर रानी चेन्नम्मा

किटटूर रानी चेन्नम्मा- शायद ही आपने कभी इनका नाम सुना हो. लेकिन रानी चेन्नम्मा वो पहली भारतीय शासक हैं, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया. 1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही दक्षिण के राज्य कर्नाटक में शस्त्रों से लैस सेना के साथ रानी ने अंग्रेजों से लड़ाई की.

चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को ककाती में हुआ था. उनकी शादी देसाई वंश के राजा मल्लासारजा से हुई, जिसके बाद वो कित्तुरु की रानी बन गईं. उन्हें एक बेटा हुआ, जिसकी 1824 में मौत हो गई.

अपने बेटे की मौत के बाद उन्होंने एक बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और उसे अपनी गद्दी का वारिस घोषित कर दिया. लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के तहत इसको स्वीकार नहीं किया.

इस तरह से ब्रिटिश और कित्तुरु के बीच लड़ाई शुरू हो गई. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1824 में कित्तुरु पर कब्जा कर लिया.

अंग्रेजों ने 20 हजार सिहापियों और 400 बंदूकों के साथ कित्तुरु पर हमला कर दिया. उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा. कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तुरु की सेना के हाथों मारा गया.

अंग्रेजों ने वादा किया कि अब युद्ध नहीं करेंगे. लेकिन अंग्रेजों ने धोखा दिया और फिर से युद्ध छेड़ दिया. इस बार अंग्रेजों ने पहले से भी ज्यादा सिपाहियों के साथ हमला किया. रानी चेन्नम्मा अपने सहयोगियों संगोल्ली रयन्ना और गुरुसिदप्पा के साथ जोरदार तरीके से लड़ीं. लेकिन अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक होने के कारण वह हार गईं. उनको बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया. वहीं 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई. आज भी उन्हें कर्नाटक की सबसे बहादुर महिला के नाम से याद किया जाता है.

तारा रानी श्रीवास्तव

बिहार के सारण जिले में जन्मी तारा रानी श्रीवास्त्व अल्पायु से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित थीं. 13 साल की उम्र में उनका विवाह फुलेंदु बाबू से हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे. उनके विवाह ने देशभक्ति के उनके जुनून को और बढ़ावा दिया.

तारा रानी और फुलेंदु सबसे आगे खड़े होकर अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध नारे लगा रहे थे. भारी संख्या में जुटे भीड़ को हटाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया और जमकर गोलियां चलाईं.

भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए कई महिलाओं को प्रेरित करने में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गांधी जी के आवाह्न पर फुलेंदु बाबू, पुरुषों और महिलाओं की भारी भीड़ एकत्रित करने में सफल रहे और उन्होंने सीवान पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण कर अंग्रेजों का पूरजोर विराध किया.

अफरा-तफरी में, फुलेंदु पुलिस की गोलियों का शिकार हो गएं. इसके बावजूद तारा रानी डटी रहीं. उन्होंने अत्यंत साहस के साथ फुलेंदु के घावों पर पट्टी बांधी और फिर राष्ट्रीय ध्वज के साथ, पुलिस थाने की ओर चल पड़ीं. ऐसी थी उनकी देशभक्ति की भावना.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT