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बिजनौर: बेलगाम मनचले और बेबस लड़कियां, यूपी का खौफनाक सच

बिजनौर में बढ़ती छेड़छाड़ से लड़कियों को स्कूल जाना हो रहा है दूभर

मुस्कान शर्मा & आकिब रजा खान
भारत
Published:
छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं के कारण लड़कियां पढ़ाई छोड़ रही हैं (फोटो: द क्विंट)
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छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं के कारण लड़कियां पढ़ाई छोड़ रही हैं (फोटो: द क्विंट)
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16 सितंबर 2016 को दो समुदायों के बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर में एक बेहद मामूली सी हाथापाई की घटना ने दंगों का रूप अख्तियार कर लिया. और उस हाथाहाई के पीछे की वजह कुछ और नहीं बल्कि छेड़छाड़ थी.

जब पूरा देश ये बहस करने में मशरुफ था कि वो मासूम जिसके साथ छेड़-छाड़ की घटना हुई वो हिंदू है या मुसलमान, उस वक्त द क्विंट ने फैसला किया बिजनौर जाने का. यदि एक लड़की के साथ ऐसा हो सकता है तो किसी भी लड़की के साथ हो सकता है. हम लोगों ने मामले की जड़ तक जाने की सोची. द क्विंट की टीम निकल पड़ी बिजनौर की सड़को पर उन लड़कियों से बात करने के लिए जो रोज सुबह अपने घर से तो पढ़ाई करने के लिए निकलती हैं लेकिन हमेशा छेड़छाड़ की शिकार होती हैं.

देखिए द क्विंट की ये ग्राउंड रिपोर्ट :

द क्विंट की मुस्कान शर्मा और आकिब रजा खान दंगा प्रभावित इलाके बिजनौर की हकीकत जाने के लिए पहुंचे. बिजनौर की गलियां, वहां रहने वाली छात्राओं के लिए कितनी सुरक्षित हैं ये जानना हमारे लिए बेहद जरुरी था. वहां जाकर क्या क्या हैरत अंगेज तथ्य सामने आए देखिए हमारी इस रिपोर्ट में.

मुस्कान शर्मा: जो पहली बात मेरे जेहन में आई जब मुझे ये स्टोरी करने को कहा गया वो ये था कि क्या बिजनौर मेरे लिए सुरक्षित है? इतने दंगों के बाद क्या मुझे वहां जाना चाहिए? लेकिन इन सभी सवालों से भी अहम सवाल जो मेरे दिमाग में चल रहा था वो ये था कि वहां रहने वाली लड़कियां कैसे रहती होगी? मेरे लिए ये जानना अहम था इसलिए मैं निकल पड़ी.

आकिब: सच पूछो तो मैं भी बिजनौर जाने में कतरा रहा था क्योंकि दंगों को अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. मुझे कोई भी आइडिया नहीं था कि वहां कैसे लोग रहते हैं, वहां का माहौल कैसा है? लोग हमसे बात करेंगे या नहीं लेकिन सबसे अहम बात जो मेरे दिमाग में थी वो ये कि क्या वहां लड़कियां खुलकर अपनी बात हमें बताएंगी? मुझे लगता है मुस्कान की आपका वहां पर होना हमारे लिए काफी मददगार साबित हुआ. आपका वहां के अनुभव के बारे में क्या कहना है?

मुस्कान: सच मानिए कि वहां कि लड़कियों ने मुझे जो भी कुछ बताया मैं वो सब सुनकर दंग रह गई. और सबसे ज्यादा रोंगटे खड़े करने वाली जो बात थी वो थी जब एक लड़की ने मुझे बताया कि कैसे पुलिसवाले उसका स्कूल से लेकर घर तक पीछा करते थे, उसे छेड़ते थे उसे तंग करते थे. वहां कि लड़कियां पने घर से बाहर जाने से भी कतराती हैं और बाहर जाना तो दूर वहां तो कई लड़कियां अपने घर में भी सेफ महसूस नहीं करतीं. और शायद यही वजह है कि लड़कियां वहां स्कूल नहीं जाना चाहती.

आकिब: मुझे भी ये सभी बातें सुनकर काफी धक्का लगा था. मैं काफी हद तक बेहद ही घिनौनी बातों के लिए तैयार होकर गया था. लेकिन ये जो मैंने सुना- मेरे होश ही फाख्ता हो गए. एक पुलिसवाला! ये बेहद ही चिंताजनक है. प्रशासन और कानून कैसे काम करता है. और सबसे अहम लोग वहां क्या खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं? मुझे माता पिता की तकलीफ का अब अंदाजा लग रहा है.

मुस्कान: वहीं अगर हम लड़कों कि बात करें तो मुझे वहां के लड़के काफी बेबाक और बेखौफ नजर आए.

आकिब: हां मैंने भी यही देखा.

मुस्कान: उन लोगों ने दिमाग में आदर्श महिला की तस्वीर बना रखी है. अगर एक लड़की लड़कों से बात करती है तो वो गलत है. अगर वो लड़के के साथ बाहर जा रही है चाहे वो कोई भी हो तब भी वहां के लड़कों के लिए उस लड़की को छेड़ने का, उसे तंग करने का, छेड़ने का लाइसेंस है. चाहे फिर उसका नतीजा कुछ भी हो.

आकिब: सितंबर में बिजनौर के दंगों में भी कुछ ऐसी ही स्थिती थी. बिजनौर के पेदा गांव में दंगों की शुरुआत हुई जिसके कारण 3 लोगों की मौत हो गई. वहां के जो लोकल पॉलिटिशियन हैं वो मानते हैं कि ये सब सियासी बात है. लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के बारे में कोई भी बात नहीं करता.

मुस्कान: हां, हो सकता है कि ये सिर्फ बिजनौर की बात नहीं है. देश के तमाम छोटे शहरों में लड़कियों के साथ ऐसा होता है. एक लड़की होने के नाते मुझे मालूम है की क्याॉ- क्या दिक्कतें आती हैं. जब आप खुद एक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इसतेमाल करते हो तो छिछोरे मनचले इर्द गिर्द घूमते रहते हैं.

आकिब: ये बात तो बेहद ही दुखद है कि लड़कियां वहां स्कूल नहीं जाना चाहती. यदि हम आंकड़ों की बात करें तो लड़कियों का ड्रापआउट रेट लड़कों से काफी जयादा है. और जो डेटा हमने इस्तेमाल किया है अपने वीडियो में, वो सरकारी आंकड़े हैं. लेकिन ये भी सच है कि जो रिएलिटी हमें देखने को मिली उसके अनुसार कहीं ना कहीं कोई कमी है.

सिर्फ 4% ड्रापआउट रेट है उत्तर प्रदेश का? क्या आप समझ पा रहे हैं कि काफी ऐसे मामले हैं जिनको रिपोर्ट ही नहीं किया गया है. लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते. हमें सरकारी आंकड़ों के ही हिसाब से जाना होगा.

मुस्कान: प्रशासन कौन सा प्रसाशन? वो तो ये मानते भी नहीं की ऐसे अपराध होते भी हैं. बिजनौर की महिला पुलिस अफसर का कहना था की उन्होंने तो अपनी 6 महीने की ड्यूटी में कोई भी छेड़ छाड़ के मामले देखे ही नहीं. और मैं इस बात से बेहद नाराज हूं कि लड़कियां अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार को रिपोर्ट क्यों नहीं कराती हैं?

आकिब: शायद इन्हीं करणों से पुलिस वाले भी इसमें शामिल हैं. लड़कियां भी पुलिस वालों के पास जाने को इस लिए कतराती हैं क्योंकि वो उनसे आपत्तिजनक सवाल पूछते हैं. जैसे कि कहां हाथ लगाया, कैसे हाथ लगाया. और शायद इसलिए लड़कियां नहीं चाहती कि जो हुआ उसको वो दोबारा जिएं. यही सोच कहीं ना कहीं उनके हौसले को तोड़ देती है.

मुस्कान: बहुत से मामसों में ये होता है कि जो इलजाम कहीं ना कहीं पीड़ित पर ही आ जाता है. लड़के भी यही मानते हैं कि कहीं ना कहीं लड़की उनकोे पलटकर देखती है तभी वो उसका पिछा करते हैं. क्या ये सब कभी खत्म होगा?

आकिब: मेरा मानना है कि लड़कों को ये बात समझनी चाहिए की न का मतलब न होता है. शायद यही एक सही शुरुआत है.

छेड़छाड़, पीछा करना और किडनैपिंग देश में आम बात है.

वीडियो एडिट: पुनित भाटिया

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