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अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) के मुताबिक एशिया पेसीफिक रीजन में 2.3 करोड़ नौकरी आएंगी, जिनमें भारत भी शामिल हैं. देखने में ये आंकड़ा भले ही बड़ा लग रहा हो लेकिन भारत में भी नौकरियों की भारी कमी है, खासतौर पर युवा वर्ग में. भारत में बेरोजगारी के आकलन पर डालिए एक नजर.
एशिया पेसीफिक रीजन में नौकरियों की संख्या बड़ी है, लेकिन इनमें से ज्यादातर खराब क्वालिटी की नौकरियां हैं और साल 2019 तक भारत के 77% वर्कर के पास ये नौकरियां होंगी. ILO की रिपोर्ट में कहा गया कि इससे एशिया पेसीफिक के 90 करोड़ महिलाओं और पुरुषों पर इसका असर पड़ेगा.
भारत में वर्ल्ड और साउथ एशिया रीजन से कहीं ज्यादा कमजोर बेरोजगारी का स्तर है. रिपोर्ट के मुताबिक 53.5 करोड़ लोगों के पास 2019 में 39.86 करोड़ खराब क्वालिटी की नौकरी होगी. भारत में सबसे बड़ी चिंता पूरे रोजगार की है जो 2017-19 में 3.4% से 3.5% रहेगा. सबसे ज्यादा बेरोजगारी का आलम तो 15 से 24 साल के युवाओं के लिए हैं. इनमें 2014 में बेरोजगारी की दर 10% थी जो 2019 में 10.7% होगी. जबकि साल 2017 में ये दर 10.5% है.
ये रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब भारत में रोजगार की चर्चा जोरों पर है. जबकि भारत की लेबर मार्केट में हर साल 1.2 करोड़ लोग जुड़ते हैं. खराब क्वालिटीक की नौकरियों के कारण लोगों को रु. 198 प्रति दिन तक भी कमाने पड़ रहे हैं. साल 2017 तक भारत में काम मिलने के बावजूद गरीबी 23.4% है, जबकि एक दशक पहले ये 44% थी.
इकोनमिक ग्रोथ बढ़ने के बावजूद भी भारत में काम करने वालों में गरीबी की दर काफी ज्यादा है.
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