Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आज 13 अप्रैल है, कहीं आप जलियांवाला बाग गोलीकांड भूले तो नहीं हैं?

आज 13 अप्रैल है, कहीं आप जलियांवाला बाग गोलीकांड भूले तो नहीं हैं?

13 अप्रैल को ही बैसाखी भी मनाई जाती है. रॉलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में उस दिन सभा होनी थी.

समरेंद्र सिंह
भारत
Updated:
13 अप्रैल को ही हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड
i
13 अप्रैल को ही हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड
(फोटो: Facebook)

advertisement

आज 13 अप्रैल है. आज ही के दिन 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था. निहत्थे लोगों पर ब्रितानी हुकूमत के ब्रिगेडियर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 379 लोग मारे गए थे और 1100 लोग घायल हुए थे, जबकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, करीब 1000 लोगों की मौत हुई थी और 1500 लोग घायल हुए थे.

क्या हुआ था उस दिन?

उस दिन बैसाखी का त्योहार था. पंजाब में बैसाखी जोर-शोर से मनाई जाती है. उन दिनों आजादी के आंदोलन की भी गूंज थी. ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होते थे. स्वतंत्रता आदोलन पर रोक लगाने के लिए मकसद से अंग्रेजी सरकार ने रॉलेट एक्ट (The Anarchical and Revolutionary Crime Act) 1919 लागू किया था.

रॉलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में उस दिन सभा होनी थी. करीब 20-25 हजार लोग जमा हुए थे. बाग करीब 200 गज लंबा और 200 गज चौड़ा था और चारों ओर दस फीट ऊंची दीवार थी. इसमें कुल पांच दरवाजे थे, जिसमें एक दरवाजे को छोड़ कर सभी बंद थे.

इस बाग में जुटे लोगों का मकसद शांतिपूर्ण सभा के जरिये अंग्रेजी सरकार को यह बताना था कि आजाद होना उनका हक है और इस तरह की तानाशाही का वह विरोध करते हैं. अंग्रेजी अफसरों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. उन्होंने जान-बूझकर सभी लोगों को जमा होने दिया. उसके बाद जब सभा शुरू हुई, तो सबक सिखाने के इरादे से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 सैनिकों के साथ वहां पहुंचा. उसने अपने सैनिकों के साथ बाग के मुहाने पर दो तोप लगा दिए और बाहर निकलने का रास्ता रोक दिया.

सैनिकों को देख कर सभा के संचालकों ने लोगों से शांतिपूर्वक बैठे रहने की अपील की. उनमें से किसी को भी अंदाजा नहीं था कि जनरल डायर हैवानियत की हद पार करने वाला है. उसके बाद डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया. निहत्थे लोगों पर, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे, 10 मिनट तक गोलियां बरसाई गईं. कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं. चारों तरफ लहू बिखर गया. लोगों के पास भागने का रास्ता नहीं था. उस बाग में एक कुआं था. लोग जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए. 120 शव कुएं से निकाले गए.

(फोटो: Facebook)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

जांच के लिए बना हंटर कमीशन

इस मामले को शुरू में दबाने की बड़ी कोशिश हुई. नरसंहार के बाद लौट कर डायर ने अपने अफसरों को बताया कि उसकी मुठभेड़ भारतीय विद्रोहियों से हुई थी, जिसकी वजह से उसे सैनिक कार्रवाई करनी पड़ी. लेकिन सच छिपाए नहीं छिपा. नरसंहार की खबर पूरे देश और फिर दुनिया में आग की तरह फैली. तीखी प्रतिक्रिया हुई. जिसके बाद दबाव में ब्रिटिश सरकार ने जांच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया.

कमीशन के आगे जनरल डायर ने कुबूल किया कि नरसंहार का आदेश उसने ही दिया था. उसका मकसद लोगों को भगाना नहीं था, बल्कि वह भारतीयों को सबक सिखाना चाहता था कि आदेश नहीं मानने का अंजाम क्या होता है. कमीशन की सिफारिशों के आधार पर डायर को डिमोट कर के वापस ब्रिटेन भेज दिया गया. हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस हुई और निंदा प्रस्ताव पास हुआ. लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स में डायर की प्रशंसा का प्रस्ताव पास किया गया. यही नहीं मशहूर साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग ने डायर का समर्थन किया. भारत ने किपलिंग को आज भी इस गुनाह के लिए माफ नहीं किया है.

नरसंहार के पहले के हालात

1914-1915 में महात्मा गांधी भारत आ चुके थे और 1916 से उन्होंने सक्रिय आंदोलन शुरू कर दिया था. भारत में स्वतंत्रता संघर्ष को कुचलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने मार्च 1919 में रॉलेट एक्ट पारित किया. यह एक सख्त कानून था, जिसके तहत किसी पर भी देशद्रोह का आरोप लगा कर जेल में डाला जा सकता था. उससे ठीक पहले पहले विश्वयुद्ध में भारत के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत की बड़ी मदद की थी. उन्हें यह उम्मीद थी कि इसके एवज में अंग्रेजी सरकार भारत को कुछ अधिकार देगी और उनके साथ ठीक बर्ताव करेगी. लेकिन उसने रॉलेट एक्ट लगा कर अपने मंसूबे साफ कर दिये.

इस तानाशाही रवैये के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह शुरू हो गया. पंजाब में भी आंदोलन तेज होने लगा. अमृतसर में 6 अप्रैल को जोरदार प्रदर्शन हुआ. जवाब में अफसरों ने कांग्रेस के दो नेताओं को डॉ सत्यपाल और बैरिस्टर सैफुद्दीन किचलू को गोपनीय तरीके से गिरफ्तार कर लिया. इसी पृष्ठभूमि में सभा करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में लोग जमा हुए थे. बहुत से लोग ऐसे थे जो बैसाखी के दिन परिवार के साथ स्वर्ण मंदिर दर्शन करने पहुंचे और फिर वहां से सभा में चले आए.

अब भी सुनाई देती है गोलियों की गूंज

2019 में जलियांवाला बाग हत्याकांड को 100 बरस होंगे. भारत और ब्रिटेन का एक बड़ा तबका यह चाहता है कि ब्रिटेन उस बर्बर कार्रवाई के लिए माफी मांगे. ब्रिटेन के हुक्मरानों ने गाहे-बगाहे उसकी निंदा की है और उसे शर्मनाक घटना भी बताया है, लेकिन अभी तक माफी नहीं मांगी है. 2013 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत आए थे. तब वो अमृतसर पहुंचे. स्वर्ण मंदिर गए और वहां से जलियांवाला बाग भी गए.

वहां उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी और फिर विजिटर्स बुक में लिखा, “ब्रिटेन के इतिहास में यह बेहद शर्मनाक घटना रही है. इसे विंस्टन चर्चिल ने भी 'राक्षसी घटना' करार दिया था. ब्रिटेन दुनिया भर में शांतिपूर्ण विरोध प्रकट करने का समर्थन करता है."

बीते साल लंदन के मेयर सादिक खान ने ब्रिटेन की सरकार से मांफी मांगने की अपील की थी. लेकिन सरकार ने यह कहते हुए अपील ठुकरा दी कि इस शर्मनाक घटना की निंदा पहले ही की जा चुकी है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 13 Apr 2018,05:03 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT