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16 Dec,1971: जब 90,000 पाक सैनिकों ने हमारे सामने टेके थे घुटने

अमेरिका ने युद्ध खत्म होने से कुछ समय पहले पाक की मदद के लिए भेजे थे जंगी जहाज

सुदीप्त शर्मा
भारत
Updated:
प्रतीकात्मक फोटो
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प्रतीकात्मक फोटो
(फोटो: Indian Army)

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16 दिसंबर 1971ये वो तारीक है , जब दुनिया में दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी संख्या में किसी देश के सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था. करीब 90,000 पाक सैनिकों ने ढाका स्टेडियम में भारतीय सेना के सामने घुटने टेके थे.

फोटो: ट्विटरपाकिस्तान आर्मी के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी सरेंडर करते हुए. साथ में बैठे हैं लेफ्टिनेंट जीएस अरोरा

क्या था विवाद

पाकिस्तान में 1947 के बाद से ही पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में भाषा आधारित जातीय तनाव जारी था. पश्चिम पाकिस्तान, हमेशा ही अपना प्रभाव बनाए रखने की कोशिश करता था.

लेकिन युद्ध की पृष्ठभूमि की शुरूआत 1969 के आम चुनावों से हुई. 313 सीटों वाली पाकिस्तान नेशनल असेंबली में पूर्वी पाकिस्तान के नेता मुजीब-उर-रहमान की पार्टी को 167 सीटें मिलीं. कायदे से उन्हें सरकार बनाने का मौका मिलना था.

लेकिन नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने इसका विरोध किया. साथ ही पश्चिमी पाकिस्तान की मुख्य पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी मुजीब के सरकार बनाने का विरोध किया. जवाब में मुजीब ने पूर्वी पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन के तौर पर बंद का आयोजन किया और कई जगह हड़तालें बुलाईं.

पाकिस्तानी आर्मी ने की जुल्म की इंतेहां

1971 की शुरूआत में इन विरोध प्रदर्शनों को कुचलने पश्चिमी पाकिस्तान से जनरल टिक्का खान को निर्देश दिया गया. जनरल ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ चलाया. इसमें बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गईं. लाखों लोगों का नरसंहार कर दिया गया.

अकेले चटगांव में एक लाख से ज्यादा लोगों को मारा गया. जनरल टिक्का खान को बंगाल के इस नरसंहार के लिए ‘बंगाल के कसाई’ का टाइटल मिला.

यहां तक कि पूर्वी पाकिस्तान के पुलिस ऑफिसर्स, सेना के जवानों को भी नहीं बख्शा गया. पाकिस्तानी आर्मी से बचने के लिए लोग बड़े पैमाने पर भारत के बंगाल, बिहार झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों की ओर जाने लगे.

भारत ने इन राज्यों की सीमा खोलकर वहां रिफ्यूजी कैंप बनाए. हमने पाकिस्तानी जुल्म को दुनिया भर के मंच पर उठाया. लेकिन कोई सहायता करने आगे नहीं आया. मुजीब-उर-रहमान को 25 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया.

जिया उर रहमान ने की स्वतंत्रता की घोषणा

26 मार्च को पाकिस्तान आर्मी के जनरल जिया-उर-रहमान, जो बंगाली थे, उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी.

पाकिस्तानी नरसंहार के खिलाफ भारत लगातार दुनिया से मदद की मांग कर रहा था. भारत ने बंगाली स्वतंत्रता को पूरा समर्थन देने की घोषणा कर दी.

पाकिस्तानी आर्मी में शामिल बंगाली फौजी भारतीय कैंपों में आने लगे. यहां उन्होंने ‘मुक्ति वाहिनी’ सेना बनाई. यहां उन्हें हथियार और ट्रेनिंग दी गई.

पाकिस्तान ने किया पहला हमला

नवंबर आते-आते पाकिस्तान भारत की पश्चिमी सीमा पर हमले की तैयारी कर चुका था. 23 नवंबर से भारत ने भी सीमा पर सेना तैनात कर दी. 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत पर हमला कर दिया.

यह हमला 1967 में इजरायल द्वारा अरब देशों पर किए गए हमले से प्रेरित था. इजरायल ने हमले में कई सौ किलोमीटर अरब जमीन पर हवाई हमले किए थे.

पाकिस्तानी हमले में भारतीय सीमा में 300 किलोमीटर अंदर आगरा को भी निशाना बनाया गया था. इस हमले का नाम ‘ऑपरेशन चंगेज खान’ था. लेकिन हमला सफल नहीं हो पाया. जवाब में भारत ने पश्चिमी सीमा के साथ-साथ पूर्वी पाकिस्तान में भी सेना को अंदर जाने का आदेश दे दिया.

भारतीय नेवी और एयरफोर्स ने भी आर्मी के साथ शानदार तालमेल दिखाया. नेवी ने ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ और ‘ऑपरेशन पायथन’ के जरिए पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान से काट दिया गया. पश्चिमी मोर्चे पर शंकरगढ़ और बसंतर में पाक आर्मी की निर्णायक हार हुई.

16 दिसंबर आते-आते भारत और मित्रो वाहिनी ने पूरे बांग्लादेश पर कब्जा कर लिया और ढाका पर कब्जा कर लिया. इस तरह दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी देश की सबसे बड़ी हार हुई और एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ. यहां देखें पाकिस्तानी आर्मी के सरेंडर का वीडियो:

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Published: 16 Dec 2017,11:15 AM IST

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