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हाईकोर्ट से खट्टर सरकार को झटका
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि हरियाणा सरकार का फैसला संविधान की मौलिक संरचना के विपरीत है. उन्होंने पिछले साल हाईकोर्ट की ओर से दिए गए उस फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि जाटों को पिछड़ा समुदाय नहीं माना जा सकता.
उनके अनुसार जब हाईकोर्ट कह चुकी है कि जाटों को पिछड़ा समुदाय नहीं माना जा सकता, फिर राज्य सरकार को इससे संबंधित कोई अधिनियम पारित करने का अधिकार नहीं है.
यह अधिनियम तृतीय अनुसूची के तहत जाटों, जाट सिखों, रोर, बिश्नोई, त्यागी, मुस्लिम जाटों को आरक्षण देने की वकालत करता है. इससे चतुर्थ वर्ग श्रेणी की नौकरियों में 10 फीसदी , प्रथम और द्वितीय वर्ग श्रेणी की नौकरियों में छह फीसदी आरक्षण मिल पाता.
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद हरियाणा की खट्टर सरकार बैकफुट पर आती दिख रही है. इसी साल 29 मार्च को हरियाणा विधानसभा ने जाटों को नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में आरक्षण देने के लिए सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित किया था.
जाट समुदाय के हिंसक आंदोलन के बाद प्रदेश की BJP सरकार ने जाटों को आरक्षण देने का वादा किया था. फरवरी में हुए इस आंदोलन से हरियाणा नौ दिनों तक ठप रहा था. इससे अरबों रुपये का नुकसान भी हुआ था.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आंदोलन के दौरान 30 लोग मारे गए थे और 320 लोग घायल हुए थे.
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