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असम के सोनितपुर जिले में बीजेपी के विधायक पर 3000 मुसलमानों को उनके घरों से बेघर करने और 450 से ज्यादा घरों को तोड़ने का आरोप लगा है. अरब समाचार के मुताबिक विधायक पर आरोप है कि 5 और 6 दिसंबर के बीच उन्होंने 10 गांव में बुलडोजर और अर्धसैनिक बल की मदद से लोगों के घरों को तोड़ डाला.
26 दिसंबर 2019 को जमात-ए-इस्लामी-हिंद ने एक प्रेस नोट जारी किया था. प्रेस नोट में दावा किया गया है कि 426 मुस्लिम परिवारों को इसलिए निकाल दिया गया, क्योंकि वे अल्पसंख्यक समुदाय से थे और उन्होंने बीजेपी विधायक पद्मा हजारिका को वोट नहीं दिया था.
प्रेस नोट में ये बताया गया है कि जमात के सचिव मोहम्मद अहमद के नेतृत्व में एक टीम ने स्थिति का जायजा लेने के लिए गांव का दौरा किया था.
जिला आयुक्त मनविंदर प्रताप सिंह ने द क्विंट को बताया कि 426 परिवारों को इसलिए बेदखल किया गया है, क्योंकि इन परिवारों ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रखा था.
उन्होंने आगे दावा किया कि जिन लोगों ने अतिक्रमण किया है, उन लोगों का दूसरे जिलों में घर है और वो सरकारी जमीन पर सिर्फ "खेती" के मकसद से आए थे.
अफरोज साहिल ने द क्विंट को बताया कि निकाले गए सभी लोग मुस्लिम परिवार के हैं और तीन अलग-अलग शिविरों में रह रहे हैं. हालांकि, मनविंदर सिंह ने इस बात से इनकार किया कि वे लोग किसी शिविर में रह रहे हैं.
अरब न्यूज के मुताबिक, शिविरों में रहने वाले लोगों ने बताया है कि किसी भी सरकारी अधिकारी ने उन लोगों से मुलाकात नहीं की है.
जिन लोगों को घरों से निकाला गया है उनका दावा है कि हजारिका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे उस क्षेत्र के वोटर नहीं हैं.
अरब न्यूज के मुताबिक, पास के एक मेकशिफ्ट कैंप में रहने वाले 65 साल के एक किसान अक्कास अली बताते हैं,
अली ने अरब न्यूज को आगे बताया, “सरकार कहती है कि हम अतिक्रमण करने वाले और बांग्लादेशी हैं, और उन्होंने सभी दस्तावेजों के होने के बावजूद हमें अपनी जमीन से बेदखल कर दिया. मुझे लगता है कि बड़ा लक्ष्य यह है कि बीजेपी इस क्षेत्र में हिंदू बंगालियों को बसाना चाहती है जो पार्टी के लिए एक स्थायी वोट के रूप में काम करेंगे."
अफरोज ने अपने असम ग्राउंड रिपोर्ट के बारे में द क्विंट को बताया, “वहां पर ब्रह्मपुत्र नदी है और यह अपना रास्ता बदलती रहती है. जिस वजह से उन लोगों को विस्थापित होना पड़ा. बाढ़ में, उनके घर और उनसे जुड़ी हर चीज डूब गई.
इसलिए उन्होंने 10-12 साल पहले इस जमीन को खरीदी थी, जिसके जरूरी दस्तावेज भी उनके पास हैं.''
स्थानीय लोगों के हवाले से अफरोज ने बताया कि, "एनआरसी की हालिया प्रक्रिया में, इन लोगों को अपना मतदाता पहचान पत्र सही कराने का समय नहीं मिला.
अफरोज ने कहा कि जिन लोगों को निकाला गया है उनके पास प्रासंगिक एनआरसी दस्तावेज हैं. "उनके नाम 1951 एनआरसी, 1971 एनआरसी, यहां तक कि नए एनआरसी में भी हैं."
जबकि जमात-ए-इस्लामी हिंद के प्रेस नोट में लिखा गया है गया है कि यह घटना गुवाहाटी हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर के बावजूद हुई. सिंह ने कहा कि हाई कोर्ट ने "स्थानीय लोगों की याचिकाओं को दो बार खारिज कर दिया है."
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