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वित्तमंत्री अरुण जेटली ने स्वस्थ होकर दोबारा वित्तमंत्रालय संभाल लिया है, लेकिन कुर्सी पर बैठते ही उन्हें 5 ऐसे चैलेंज से निपटना है जो इकनॉमी का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहे हैं.
सबसे पहले उन्हें रुपए को संभालना है लेकिन हाथो हाथ एक्सपोर्ट बढ़ाने का तरीका भी निकालना होगा. बैंक ने हालात में खास सुधार नहीं है. ऐसे में आइए बात करते हैं उन चुनौतियों की जिनसे निपटने के लिए अब वो एक दिन भी इंतजार नहीं कर सकते.
डॉलर के मुकाबले रुपया इसी साल 9 परसेंट कमजोर पड़ चुका है. वैसे तो दूसरे एशियाई देशों की करेंसी गिरी है पर उनके मुकाबले रुपया ज्यादा लुढ़का है. रुपये की इस कमजोरी से सबसे बड़ी दिक्कत है कि पेट्रोल-डीजल के दाम तेजी से बढ़ सकते हैं. क्योंकि इंपोर्ट महंगा होगा साथ ही क्रूड के दाम बढ़ने से डबल झटका लग रहा है.
कमजोर रुपया, महंगा कच्चा तेल और एक्सपोर्ट की सुस्त रफ्तार तीनों मिलकर बना खतरनाक कॉम्बिनेशन ट्रेड डेफिसिट को ऊंचा किए जा रहा है. इससे करेंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ेगा जो फिर रुपया को कमजोर करेगा.
जीएसटी से कमाई की रफ्तार बढ़ नहीं रही है. इंडस्ट्री की दबाव में हैं इसलिए टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी के आसार कम हैं. डिसइन्वेस्टमेंट से 80 हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है लेकिन एयर इंडिया में हिस्सेदारी का दांव फिलहाल फेल हो गया है. 2019 में चुनाव की वजह से खर्च कम होने की गुंजाइश नहीं है.
एनडीए के 4 साल के कार्यकाल के दौरान नोटबंदी और जीएसटी की वजह से पहले ही जीडीपी ग्रोथ का औसत 7.3 परसेंट रहा है. जबकि नए कैलकुलेशन के हिसाब से यूपीए के 10 सालों में जीडीपी ग्रोथ औसत 8 परसेंट रही है. चुनाव के साल में जीडीपी ग्रोथ कम होने का रिस्क वित्त मंत्री नहीं ले सकते.
साल दर साल निकलते जा रहे हैं लेकिन बैंकों का एनपीए अभी भी खतरनाक स्तर पर बना हुआ है. मोदी सरकार की कोशिशों के बावजूद स्थिति अभी तक सुधरी नहीं है. जेटली के लिए बैंक भी बड़ा सिरदर्द हैं.
इसके अलावा बैंकों को चूना लगाकर विदेश फरार हुए हीरा कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी और विजय माल्या को भारत लाना भी बड़ी जिम्मेदारी है. ये सभी वित्तीय घोटाले और बैंकों के लोन से जुड़े हैं इसलिए अगर इन तीनों को भारत लाने में सफलता नहीं मिलती तो वित्तमंत्रालय के लिए भी झटका ही माना जाएगा.
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