Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-201992% महिलाएं जब खिलाफ, तो ट्रिपल तलाक अबतक क्यों मौजूद?

92% महिलाएं जब खिलाफ, तो ट्रिपल तलाक अबतक क्यों मौजूद?

केंद्र सरकार का कहना है कि दर्जन से अधिक इस्लामी देश कानून बनाकर इस चलन का विनियमन कर सकते है तो भारत में क्यों नहीं

द क्विंट
भारत
Updated:


(फोटो: iStock)
i
(फोटो: iStock)
null

advertisement

मुस्लिम पर्सनल लॉ में पुरुषों को यह सुविधा दी गई है कि वे तीन बार ‘तलाक’ बोलकर अपनी पत्नी से रिश्ते खत्म कर सकते हैं. लेकिन इस कानून में महिलाओं को यह सुविधा नहीं है.

मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, अगर महिला अपने पति से अलग होना चाहती है, तो उसे ‘दारुल क़ज़ा’ (शरियत कोर्ट) के सामने यह साबित करना होगा कि उसके पति ने उसपर अत्याचार किए हैं, जिसकी वजह से वह तलाक चाहती है.

जाहिर तौर पर तलाक की यह व्यवस्था महिलाओं के अधिकारों को कमतर मानती है. ऐसे में महिलाओं के साथ हुए कुछ अनुचित और अन्यायपूर्ण फैसले सुर्खियां बनते रहे और सवालों के घेरे में भी आए. भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार सात अक्तूबर को केंद्र ने मुस्लिमों में बहुविवाह, निकाह हलाला और एक साथ तीन तलाक के चलन का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया था.

(फोटो: द क्विंट)

‘ट्रिपल तलाक’ से कई पहलू जुड़े हैं, जिन्हें समझना बेहद जरूरी है. चाहे वो मुस्लिम लॉ बोर्ड का पक्ष हो, जो शरियत के तहत तलाक को पर्सनल लॉ का मामला बताकर सपोर्ट करता रहा है. चाहे वो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले संगठन हों, जो विदेशों में टूटकर गिर चुकी इस व्यवस्था का हवाला देते हैं और इसे बंद करने की मांग करते हैं.

इन सभी पक्षों को आप एक साथ यहां पढ़ें.

पहले, हैरत में डालते कुछ आंकड़े:

  • भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के ऑनलाइन सर्वे के मुताबिक, 92 परसेंट मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक पर बैन चाहती हैं.
  • ‘ट्रिपल तलाक’ के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें स्काइप कॉल, टेक्स्ट मैसेज और वॉट्सऐप मैसेज के जरिए तलाक दिया गया.
  • सउदी अरब, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे 21 देशों में, जहां मुस्लिम बाहुल्य है, ट्रिपल तलाक को बैन किया जा चुका है.
  • भारत में अभी तक मुस्लिम लॉ का कोडिफिकेशन नहीं किया गया है.

पक्ष, विपक्ष और कुछ सवाल...

‘शरियत में पुरुषों को तलाक का फैसला करने का अधिकार इसलिए दिया गया, क्योंकि पुरुष महिलाओं की तुलना में ज्यादा बेहतर फैसले करते हैं. साथ ही वो भावोत्तेजक होकर निर्णय नहीं लेते.’ पुरुषों की तरफदारी से लबरेज इस बयान के साथ एनजीओ ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ (AIMPLB) और ट्रिपल तलाक के पक्षधर शरियत को सही ठहराते हैं.

वहीं मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) के कार्यकर्ता इस अवधारणा को ही खारिज करते हैं, जो महिलाओं को पुरुषों के बराबर मानने को तैयार नहीं है.

पढ़िए इस पूरी बहस को, जो इस समय सोशल रिफॉर्म के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के लिए अहमियत बन गई है.

जानकार मानते हैं कि आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्कों ने भारत में इस्लाम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. (फोटो: द क्विंट)

ये कैसी गोपनीयता है?

AIMPLB: शरियत के हिसाब से तलाक लेने में पुरुषों और महिलाओं, दोनों का फायदा है. यह कानून दोनों की प्रतिष्ठा और गोपनीयता की हिफाजत करता है. यह कानून रंजिशजदा जोड़ों को अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का अवसर देता है.

BMMA: ट्रिपल तलाक अमानवीय है. यह संविधान के खिलाफ है. 15 साल से देश के करीब 10 राज्यों में हम काम कर रहे हैं. सभी जगह हमने देखा कि महिलाओं को इंसाफ नहीं मिला. और उन महिलाओं की शिकायतों की कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसी गोपनीयता का क्या करना?

क्या पुरुष वाकई भावुक फैसले नहीं लेते?

AIMPLB: यह कहना गलत होगा कि ‘ट्रिपल तलाक’ का इस्तेमाल मुस्लिम पुरुष जल्दबाजी में करते हैं. और इसका गलत इस्तेमाल होता है. बल्कि वो महिलाओं, जो अपने परिवार की सहमति से अलग होना चाहती हैं, वो ‘ट्रिपल तलाक’ का चुनाव सबसे ज्यादा करती हैं.

BMMA: नवंबर, 2015 में हमने रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें तमाम केस स्टडीज हैं. महिलाओं को रातोंरात घर से निकाला गया और बच्चों संग उनकी मां को बेसहारा छोड़ दिया गया, वो भी ट्रिपल तलाक का हवाला देकर. कई मामले तो ऐसी भी थे, जिनमें महिला की गैर-मौजूदगी में पुरुष ने तलाक दिया और काज़ी ने उसे सही भी ठहराया.

रिपोर्ट में 4,710 महिलाओं पर सर्वे किया गया, जिनमें 525 तलाकशुदा थीं. इनमें 346 को जुबानी तलाक दिया गया था, 40 को पत्र भेजकर, 18 को फोन पर और 117 को किसी अन्य माध्यम से.
(फोटो: The News Minute)

ट्रिपल तलाक पर आवाज उठाना जरूरी

AIMPLB: शरियत के जरिए दोनों पक्षों को इंडियन न्याय-व्यवस्था की तुलना में जल्दी तलाक मिल सकता है. साथ ही पब्लिक के बीच खड़े होकर दोनों को एक-दूसरे की निंदा नहीं करनी पड़ती.

BMMA: कोर्ट में अपने अधिकारों की मांग रखना, निंदा करना नहीं हो सकता. ट्रिपल तलाक के मामले में चुप रहना, धर्म के नाम पर पितृसत्ता और पुरुष बल को जीत का अवसर देना है. ट्रिपल तलाक का धर्म से कोई वास्ता नहीं है.

ज्यादातर को नापसंद, फिर भी लागू?

AIMPLB: शरियत में पुरुषों के बहुविवाह की प्रथा मान्य है. इससे पुरुषों के नाजायज संबंधों में कमी आती है. जिन देशों ने इस प्रथा को रोका है, वहां नाजायज संबंधों के मामले बढ़े. और फिर जब कोर्ट महिलाओं का शादीशुदा पुरुषों के साथ लिव-इन में रहना नहीं रोक सकता, तो मुसलमानों में पुरुषों की बहुविवाह प्रथा से उसे क्या दिक्कत है.

BMMA: ‘ट्रिपल तलाक’ की दोषपूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ इसे सपोर्ट करना एक बड़ा कुतर्क है. मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका ट्रिपल तलाक और बहुविवाह की प्रथा को नापसंद करता है. फिर भी शरियत में इसी की अनुमति है.

बात संवैधानिक तरीके से हो...

AIMPLB: हमारी न्याय प्रणाली में मौजूद न्यायधीश अलग-अलग मानसिकता के होते हैं. वे हर मामले में अलग-अलग फैसले सुना सकते हैं. ऐसे में शरियत (कानून) सभी मामलों को एक समान ट्रीटमेंट देने की बात करता है. सोशल रिफॉर्म के नाम पर सुप्रीम कोर्ट हमारे पर्सनल लॉ को चेंज नहीं कर सकता.

BMMA: संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से बात करें, तो ट्रिपल तलाक साफ तौर पर महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है. यह पुरुषों को आजादी देकर, महिलाओं का शोषण करने का तरीका है. कुरान और धर्म के नाम पर इसे चलाया जा रहा है. कुछ कट्टरपंथी मुसलमान इन हालात को नहीं बदलने देना चाहते, जबकि पवित्र पुस्तक कुरान का इससे कोई लेना देना नहीं.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह जरूर समझ आता है कि जब ज्यादातर मुस्लिम बहुल देशों में ट्रिपल तलाक को अवैध करार दिया जा चुका है. साथ ही भारतीय मुस्लिम महिलाएं, जो इस कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उनका एक बड़ा तबका इसका विरोध कर रहा है, तो इस मुद्दे पर बहस की गुंजाइश कहां रह जाती है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 05 Sep 2016,04:25 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT