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पचास दिन हो चुके हैं और आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में फंसे 95 से ज्यादा छात्रों को बिहार लौटने के लिए टिकट मिलने के कोई संकेत नहीं हैं. 17 साल की उम्र के ये बच्चे मधुवारा जिले के बोयापलीम में श्री चैतन्य जूनियर कॉलेज में आईआईटी के लिए कोचिंग लेने आए थे.
हर दिन हम देशभर से प्रवासी मजूदरों की कहानियां सुनते हैं जो घर लौटने के लिए कई मील पैदल चलते हैं या सरकार तक पहुंचते हैं, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं होते कि अगले समय का भोजन कर सकें. और, यहां ये बच्चे हैं जो अपने-अपने घरों से दूर एक हॉस्टल में बैठे हैं, जिनसे हर दिन एक ही वादा किया जा रहा है.
मार्च में हुई बोर्ड की परीक्षा के बाद से 12वीं क्लास के बच्चे आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी में व्यस्त थे, जब उनसे कहा गया कि कोरोना वायरस की महामारी के कारण परीक्षा रद्द कर दी गयी है. कुछ बच्चे 16 साल के हैं, जिन्हें अगले साल 12वीं की बोर्ड परीक्षा देनी है और वे इंस्टीट्यूट में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे थे.
ज्यादातर छात्र यहां से निकल पाने में सफल रहे, लेकिन देशभर में लॉकडाउन की घोषणा के कारण 95 से ज्यादा वैसे छात्र फंस गये, जिन्होंने 24 मार्च और उसके बाद ट्रेन और फ्लाइट की टिकटें बुक करायी थीं. ये सभी छात्र बिहार के हैं 12वीं की छात्रा रीमा ने बताया, “दूसरे राज्यों के स्टूडेंट्स को पास मिल गया और वे चले गये. एक दिन पहले तक झारखंड के दो स्टूडेंट्स रह गये थे, हम हर संभव कोशिश कर रहे हैं.“
आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम के प्लांट में 7 मई को सुबह 3 बजे केमिकल गैस लीकेज के बाद आरआर वेंकटपुरम गांव में कम से कम 11 लोगों की मौत हुई है जिनमें 2 बच्चे भी शामिल हैं.
छात्र इंस्टीट्यूट की ओर से उपलब्ध कराए गये आवास में रह रहे हैं, हालांकि कर्मचारी कम हैं लेकिन प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि बच्चों को उचित भोजन और दूसरी सुविधाएं दी जा रही हैं.लेकिन छात्र कुछ और कहानी बता रहे हैं. एक अन्य छात्र निहाल (काल्पनिक नाम) ने बताया, “हम पर यह कहने के लिए प्रशासन दबाव डाल रहा है कि हमें अच्छा भोजन दिया जा रहा है। कई छात्रों को ऐसा कहते हुए वीडियो बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।”
सुयश ने बताया,-
प्रिंसिपल ने इन आरोपों ने इनकार किया और बताया कि वे इस बात को समझते हैं कि ये छात्र ‘निराश’ हैं क्योंकि इतने लंबे समय से एक जगह फंसे हुए हैं.
रोमानी ने बताया, “एक दिन हमें बताया गया कि (संस्थान के) प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट से बात की है और हमें दो दिन में घर भेजा जाएगा. अगले दिन वे कहते हैं कि अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि वे सीमा तक पहुंचाने की व्यवस्था तो कर सकते हैं, लेकिन उससे आगे कुछ नहीं कर सकते. हम अलग-अलग बातें सुन रहे हैं, लेकिन अभी तक जाने की आज्ञा नहीं मिली है.”
एक छात्र ने अपील की, “हमारे माता-पिता ने भी बिहार में अधिकारियों से संपर्क किया जो कह रहे हैं कि यह उनके हाथ में नहीं है, यह व्यवस्था यहां की सरकार को करनी होगी. लोग कोटा जा सकते हैं तो हम क्यों नहीं जा सकते. कम से कम कार से जाने की इजाजत तो दें.”
क्विंट से बात करते हुए संस्थान के प्रिंसिपल ने कहा कि,
उन्होंने कहा, “हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि हमें इजाजत मिल जाए ताकि बच्चों को उनके घर भेजने की हम कोई व्यवस्था कर सके”
कई छात्रों ने इस मुद्दे को उठाया कि उनकी ऑनलाइन क्लास चल रही है, लेकिन एक छात्र ने बताया, “हम मानसिक रूप से इस हालत में नहीं हैं कि पढ़ाई कर सकें. हम हमेशा डरे रहते हैं.”
एक अन्य छात्र ने ध्यान दिलाया, “वे शायद किसी ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उसकी व्यवस्था नहीं होगी क्योंकि यहां महज तकरीन 100 छात्र हैं.” हर छात्र ने इस संवाददाता से बातचीत में यही आग्रह किया, “हम बस घर जाना चाहते हैं। क्या आप ऐसा कर सकते हैं?”
क्विंट ने विशाखापत्तनम में कलेक्टर और ज्वाइंट कलेक्टर से संपर्क किया लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. कोई जवाब मिलने पर यह स्टोरी अपडेट की जाएगी.
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