Home News India आधार को संविधान से धोखाधड़ी बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ के 10 तर्क
आधार को संविधान से धोखाधड़ी बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ के 10 तर्क
पीठ में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना फैसला अलग लिखा है जिसमें उन्होंने बहुमत से अलग राय रखी है.
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Aadhaar को संविधान से धोखाधड़ी बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ के तर्क
(फोटो: द क्विंट)
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आधार पर फैसला देने वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ ने बहुमत से अलग अपना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि पूरा आधार प्रोजेक्ट गैर-संवैधानिक है. उनका कहना है कि आधार को मनी बिल के तौर पर पारित कराना संविधान के साथ धोखाधड़ी है. स्पीकर ने इसे मनी बिल माना. स्पीकर के इस फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है.
पीठ में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना फैसला अलग लिखा है जिसमें उन्होंने बहुमत से अलग राय रखी है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस ए. के. सीकरी के बहुमत वाले फैसले को जस्टिस सीकरी ने पढ़ा.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा-
आधार कानून को पारित कराने के लिए राज्यसभा को दरकिनार करना एक प्रकार का धोखा है.
इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन करने के लिये निरस्त कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 110 में मनी बिल के लिए विशेष आधार हैं. आधार कानून उससे आगे चला गया.
इस कानून को मौजूदा स्वरूप में संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता. महज कानून बना देने से केंद्र की आधार योजना नहीं बच सकती है.
मोबाइल फोन के जिंदगी का हिस्सा बन जाने से उसे आधार से जोड़ना निजता, स्वतंत्रता, स्वायत्तता के लिए गंभीर खतरा है. मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स को कस्टमर्स का आधार डेटा खत्म कर देना चाहिए.
UIDAI ने ये माना है कि वो अहम जानकारियों को इकट्ठा और जमा करता है. ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है. इन आंकड़ों का किसी की सहमति के बगैर कोई तीसरा पक्ष या निजी कंपनियां गलत इस्तेमाल कर सकती हैं.
आधार नहीं होने तक सामाजिक कल्याण योजनाओं का फायदा नहीं देना नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन है.
आधार योजना अपने अंदर की खामियों को दूर करने में नाकाम रही है.निजी कंपनियों को आधार का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से प्रोफाइलिंग हो सकती है जिसका इस्तेमाल नागरिकों की राजनीतिक राय को जानने में हो सकता है.
नागरिकों के डेटा कलेक्शन किये जाने से नागरिकों की प्रोफाइलिंग हो सकती है. लोगों के डाटा की रक्षा के लिये यूआईडीएआई की कोई सांस्थानिक जवाबदेही नहीं है.
भारत में आधार के बिना जीना अब मुश्किल है और ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
संसद को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन सुरक्षा की गैर मैजूदगी में ये कई अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकता है.
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