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एटम बम से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है क्लाइमेट चेंज, ये रही वजह

दुनिया के दो जगहों की दो तस्वीरें ही पर्यावरण में बदलाव  की तस्वीर बयां करती हैं, कैसे हम संकट में हैं यहां जानिए 

अभय कुमार सिंह
भारत
Updated:
लगातार बदलता पर्यावरण एटम बम से खतरनाक हो सकता है
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लगातार बदलता पर्यावरण एटम बम से खतरनाक हो सकता है
(फोटो: Lijumol Joseph/TheQuint)

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"मुझे नहीं लगता कि हम अपने प्राकृतिक ग्रह (धरती) से बाहर निकले बिना 1,000 साल तक जीवित रहेंगे''

ये स्टेटमेंट मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने जलवायु के लगातार बदलते रवैये को देखते हुए कहा था. उन्होंने आगे कहा कि इसलिए मैं लोगों स्पेस साइंस के लिए सभी को प्रोत्साहित करना चाहता हूं.

(फोटो कोलाज: क्विंट हिंदी)अमेरिका में भारी बर्फबारी, तो ऑस्ट्रेलिया में गर्मी से बेहाल जनजीवन

ये 2 तस्वीरें बिलकुल जुदा तस्वीरें देखिए...

इस स्टेटमेंट को ध्यान में रखकर ये दो तस्वीरें देखिए. पहली है अमेरिका की, दूसरी तस्वीर है अमेरिका से करीब 15 हजार किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया की. जहां अमेरिका में 4 जनवरी को आए बॉम्ब साइक्लोन के बाद से तापमान लगातार गिरा है. एक वक्त ये -40 डिग्री तक पहुंच गए.

(फोटो: क्विंट हिंदी)पहली तस्वीर अमेरिका की वहीं दूसरी तस्वीर ऑस्ट्रेलिया की है

नदियां, तालाब, झरने जम गएं तो सड़कों ने बर्फ की चादर ओढ़ ली, ये कोई रोजाना होने वाली घटना नहीं है. दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया में भीषण गर्मी की मार है, 7 जनवरी को पारा 47.3 तक पहुंच गया था. करीब 80 साल के बाद ऑस्ट्रेलिया में इतनी भयानक गर्मी देखने को मिली है. इससे पहले अत्यधिक तापमान का रिकॉर्ड 47.8 डिग्री सेल्सियस रहा. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2016 से फरवरी 2017 के बीच सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही मौसम से जुड़े 200 रिकॉर्ड टूट चुके हैं.

एक तीसरी तस्वीर भी देख लीजिए.... ये लाल रेत पर बिछी बर्फ की चादर का नजारा सहारा रेगिस्तान का है, वो जिसे दुनिया के सबसे गर्म रेगिस्तानों में से एक माना जाता है. वहां 16 इंच तक की बर्फबारी हुई है.

इन 3 उदाहरणों से समझा जा सकता है कि भारत समेत दुनिया में पर्यावरण का क्या हाल है. आप कहीं भी रह रहे हों, इतना तो महसूस कर ही लिया होगा कि देश में धीरे-धीरे तापमान बढ़ता जा रहा है, साथ ही गर्मियों के सीजन में बढ़ोतरी हुई है, वहीं मॉनसून और सर्दियां थोड़ी कम हुई हैं.

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‘क्लच ऑफ इंडियन एंड ग्लोबल स्टडीज’ की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यम बारिश की स्थिति में कमी आई है. सेंट्रल इंडिया में या तो जबरदस्त बारिश ने बाढ़ का रूप लिया है या तो बारिश के लिए तड़पना पड़ा है. मतलब की क्लाइमेट का स्वभाव लगातार समझ के परे जाता दिख रहा है.

दाना-पानी पर संकट

‘कैलिफोर्निया-बर्कले यूनिवर्सिटी’ में हुई एक स्टडी में दावा किया गया है कि भारत के खेतों में, गर्मी के मौसम में 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि 67 आत्महत्याओं का कारण बनती है. इस रिपोर्ट का कहना है कि साल 1980 से 2017 के बीच तक जलवायु परिवर्तन के कारण 559,300 आत्महत्याएं हुई हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

सिर्फ फसलों पर ही नहीं उनकी गुणवत्ता पर भी प्रदूषण और पर्यावरण में बदलाव का व्यापक असर पड़ा है. आप जो धान, गेंहू या सब्जी खा रहे हैं उसकी गुणवत्ता भी शिकार हुई है.

अमेरिका की ‘हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’की एक रिपोर्ट बताती है कि वातावरण में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वास्तव में खाद्य पदार्थों से पोषक तत्वों का दोहन कर रहा है, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

बता दें कि साल 2015 में, भारत में कार्बन डाइऑक्साइड, सीमा रेखा से 14 फीसदी ज्यादा आंका गया था. इसी के साथ बड़े स्तर पर जलवायु परिवर्तन की भी आशंका जताई गई थी.

इन बातों का मतलब क्या है...

ऐसे में जब हर तरफ तीसरे विश्वयुद्ध, अमेरिका-उत्तर कोरिया, भारत-चीन की लड़ाईयों का आकलन जोर-शोर से बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. दुनियाभर में चल रही इस 'असली लड़ाई' की तरफ लोगों का ध्यान थोड़ा कम ही है. दुनिया के सबसे जिम्मेदार देश का दंभ भरने वाला अमेरिका 190 देशों के साथ किए गए पेरिस जलवायु समझौते से अलग हो चुका है, और इस बीच स्टीफन हॉकिंग्स का ये बयान भी याद आता है-

ट्रंप की कार्रवाई धरती को उस कगार तक धकेल सकती है, जहां धरती 250 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ शुक्र ग्रह की तरह हो जाएगी, और एसिड की बारिश भी संभव है.

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Published: 10 Jan 2018,09:26 PM IST

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