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फसल में कीट और रोग लगने से हर साल किसानों को करोड़ों रुपए का नुकसान होता है. कितना अच्छा हो कि अगर किसान को ये पहले ही पता चल जाए कि इस फसल में कीट या रोग लगने वाला है या फिर किसान की इस फसल में पोषक तत्वों की कमी हो गई है. इसके साथ उसे ये भी बताया जाए कि ये उपाय करने से उसकी समस्या हल हो जाएगी, तो किसान का काफी लाभ हो सकता है.
कुछ साल पहले तक भले ये काम असंभव जैसा लगता हो, लेकिन अब ये संभव है, तकनीकी ने किसानों की मुश्किलें काफी आसान कर दी हैं. ऐसी ही एक तकनीकी है, खेती में ड्रोन का इस्तेमाल. ड्रोन पर लगे कैमरे और सेंसर किसानों को फसल का पूरा आंकलन कर जो रिपोर्ट देते हैं, उससे किसान की फसल रोग, कीट और मौसम की मार से बच सकती है.
पिछले दिनों सीमैप में आयोजित किसान मेले में खेती में ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर लोगों ने एक स्टॉल पर खूब सवाल पूछे. महाराष्ट्र के कई गन्ना किसानों को अपनी हाईटेक सेवाएं देने वाली ये भारतरोहण एयरबोर्न इन्नोवेशन ने उत्तर प्रदेश में सीमैप के सहयोग से मेंथा किसानों के साथ काम शुरू किया है.
कंपनी के युवा मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमनदीप पंवार ‘गांव कनेक्शन’ को बताते हैं, “किसान को फसल में कीट या रोग से नुकसान के बारे में तब पता चलता है, जब खेती का बड़ा हिस्सा उसकी चपेट में आ जाता है, फिर उस रोग-कीट से निपटने के लिए कीटनाशक का छिड़काव करते हैं, फिर उत्पादन पर असर पड़ता है. लेकिन हम लोग किसान को रोग आने से पहले ही उसे सचेत कर देते हैं कि उसकी फसल में ये समस्या आने वाली है. इससे कम खर्च में उसकी फसल सुरक्षित हो जाती है.”
सेवाएं लेने वाले किसान के खेत पर हर 7-15 दिनों में ड्रोन कैमरे और कंपनी के कर्मचारी जाते हैं, जो खेत, मिट्टी और फसल का आकंलन करते हैं, जिसके बाद संबंधित लैब से किसान को 2-3 दिन में उसकी रिपोर्ट भेजी जाती है.
पंवार आगे बताते हैं, “ ड्रोन सेवा (Hyperspectral Imaging) पर आधारित है, डोन पर लगे कैमरे (Hyperspectral Camera) और संचेतक (Sensors) खेत-फसल की जानकारी लेते हैं, ये सिलसिला हर 7-15 दिन में होता है. एकत्रित जानकारी को हमारे वैज्ञानिक गहन विष्लेषण को नक्शों में बदलते हैं और देखते हैं कि खेत का कौन सा हिस्सा किसी तरह से प्रभावित है क्या.“
आगे बताया, “तीसरा चरण हैं उस फसल में बदलाव के कारण (कीट, रोग और पोषक तत्वों की कमी) आदि तलाशते हैं और चौथे चरण में उसके उपाय तलाशे जाते हैं और किसान तक पहुंचाया जाता है.“
अपनी बात को सरल करते हुए वो कहते हैं, “अगर किसी किसान को पता चल जाए कि उसकी फसल में ये रोग लगने वाला है और उसके सिर्फ 10-20 पौधे ही नजर आएं हैं तो उसे तोड़कर फेंक सकता है, या फिर हम उसे ये भी बता सकते हैं कि फसल के सिर्फ इस हिस्से में कीटनाशक का छिड़काव करें, इससे कई फायदे होते हैं, एक तो किसान को पूरी फसल पर कीटनाशक नहीं छिड़कने पड़ते, उसका पैसा, फसल और समय दोनों बचते हैं.“
अमनदीप पंवार के मुताबिक, उनकी कंपनी महाराष्ट्र स्थानीय गन्ना विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से 500 एकड़ में गन्ना किसानों को ये सेवाएं दे रही थीं. महाराष्ट्र के बाद वो उत्तर प्रदेश में केंद्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान (सीमैप, लखनऊ) के साथ मिलकर मेंथा किसानों के साथ काम कर रहे हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बाराबंकी में करीब 7000 एकड़ में हम काम शुरू करने वाले हैं. सेवाएं लेने वाले किसानों को एक निश्चित खर्च देना होगा, जिसके एवज में हम उन्हें सालभर सेवाएं देंगे.
एविएशन (उड्यन) से लेकर इंजीनियरिंग करने वाले अमनदीप ने खेती को क्यों चुना? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, “लखनऊ में जब मेरी पढ़ाई हो रही थी उस दौरान मुझे कई बार मलिहाबाद (देश की मैंगो बेल्ट) जाना हुआ था, वहां मैं अक्सर देखता था, किसान फसल में कीटों और रोगों से बहुत परेशान रहता था, उनका काफी नुकसान होता था और पैसे खर्च होते थे, इसलिए मुझे लगा अगर किसानों को पहले ही ऐसी जानकारियां मिल जाएं तो उनका कितना भला होगा.. जिसके बाद इसे शुरू किया.“
अमनदीप के पास अभी एक ड्रोन है, जबकि 3 और आने वाले हैं, उनकी टीम भी 5 से बढ़कर जल्द दर्जनभर होने वाली है. उनका इरादा यूपी में अपना एक मॉडल फार्म विकसित करने की भी है, जहां वो किसानों को नई तकनीकों का फायदा जमीन पर दिखा सकेंगे.
(अरविंद शुक्ला की ये रिपोर्ट गांव कनेक्शन वेबसाइट से ली गई है)
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