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केंद्र सरकार द्वारा पारित कराए गए एग्रीकल्चर बिलों का देशभर में विरोध हो रहा है. BJP की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल से एकमात्र केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया है. वहीं दूसरी ओर सरकार अपने इस फैसले पर अड़िग है. आइए जानते हैं कैसे हो रहा है विरोध और क्या कहते हैं जानकार…
किसानों पर लाठीचार्ज
देश में कृषि बिलों के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है. पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में किसानों द्वारा कृषि बिलों के खिलाफ जोर-शोर से प्रदर्शन किया जा रहा है. किसानों की सबसे बड़ी चिंता न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर है. किसानों को डर सता रहा है कि सरकार बिल की आड़ में उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य वापस लेना चाहती है. कुछ दिन पहले ही नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर इस बिल के खिलाफ विरोध कर रहे देश के प्रमुख गैर-राजनीतिक किसान नेताओं में मध्य प्रदेश से शिव कुमार कक्काजी, पंजाब से जगजीत सिंह दल्लेवाल, उत्तर प्रदेश से हरपाल चौधरी बिलारी, राजस्थान से इंदरजीत पन्नीवाला, हरियाणा से अभिमन्यु कोहाड़ समेत संतवीर सिंह, रंजीत राजू, समेत सैकड़ों किसानों ने गिरफ्तारी दी.
इस वर्ष मध्यप्रदेश पूरे देश में समर्थन मूल्य पर 129 लाख मी.टन गेंहू खरीद के साथ सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है जबकि पंजाब 127 एलएमटी का उपार्जन कर दूसरे स्थान पर पहुंच गया है.
• किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 (फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस),
• आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल-2020 (एसेंशियल एक्ट)
• मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल, 2020 (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग)
• केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने अपना इस्तीफा दे दिया. कौर ने ट्वीट कर कहा, "मैंने किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है. किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने पर मुझे गर्व है.’
• मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि किसान विरोधी बिल खेती और किसानों को समाप्त करने के लिए मोदी सरकार लेकर आई है... एक एक किसान चाहे किसी पार्टी से जुड़ा हुआ क्यों न हो सब को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए. उन्होंने कहा यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी इस फैसले के खिलाफ सरकार का जमकर विरोध करेगी.
• मध्यप्रदेश के विदिशा में सैकड़ों किसानों ने मोटर साइकिल हुंकार रैली निकाल कर इस अध्यादेश के खिलाफ विरोध जताया गया है.
• पंजाब के मुक्तसर स्थित बादल गांव में प्रदर्शन कर रहे एक किसान ने जहर खा लिया. यह पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का गांव है.
• उत्तरप्रदेश के मेरठ में तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में सैकड़ों किसानों ने जमकर हंगामा किया.
• कृषि मामलों के एक्सपर्ट देविंदर शर्मा का कहना है कि बिहार में 2006 से एपीएमसी नहीं है और इसके कारण यह होता है कि व्यापारी बिहार से सस्ते दाम पर खाद्यान्न खरीदते हैं और उसी चीज को पंजाब और हरियाणा में एमएसपी पर बेच देते हैं, क्योंकि यहां पर एपीएमसी मंडियों का जाल बिछा हुआ है. यदि सरकार इतना ही किसानों के हित को सोचती है तो उसे एक और अध्यादेश लाना चाहिए जो किसानों को एमएसपी का कानूनी अधिकार दे दे, जो ये सुनिश्चित करेगा कि एमएसपी के नीचे किसी से खरीद नहीं होगी. इससे किसानों का हौसला बुलंद होगा.
• भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने कहा कि यह तीनों कानून किसानों के हितों के खिलाफ हैं. सबसे पहले मंडियां बंद हो जाएंगी. दूसरे कानून से जमाखोरी बढ़ेगी और महंगाई बढ़ेगी.
• किसान हितों पर बात करने वाले स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का कहना है कि ये बात बिल्कुल सही है कि एपीएमसी मंडियों के साथ कई दिक्कते हैं, किसान इससे खुश भी नहीं हैं, लेकिन सरकार की नई व्यवस्था भी ठीक नहीं है. यह अध्यादेश कहता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन ये यह नहीं बताता कि जिन किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे?
• अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह भी विधेयक की नीतियों को लेकर सवाल उठाते हुये कहते हैं कि सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा? क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा.
• भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं कि समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे. अनुभव के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है. पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था.
• राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज के मुताबिक "सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी. इससे किसानों को नुकसान होगा, कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदा होगा. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है, लेकिन सरकार इसके जरिये कृषि उपज विपणन समितियों के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है. अब इसे खत्म किया जाता है तो व्यापारियों की मनमानी बढ़ेगी, किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलेगी.’
• भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि इससे सरकार के हाथ में खाद्यान नियंत्रण नहीं रहेगा, सबसे बड़ा खतरा यही है. इससे धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी. निजी व्यापारी सप्लाई चेन को अपने हिसाब से तय करते हैं और मार्केट को चलाते हैं, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा.
• बिल के विरोध में किसान मजदूर यूनियन सड़क पर प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहा है.
• हरियाणा में 20 सितंबर को सड़क रोको आंदोलन होगा.
• 24 सितंबर से 26 सितंबर के बीच पंजाब में रेल रोको आंदोलन चलाएंगे.
• 25 सितंबर को पंजाब बंद की अपील भी की गई है.
• आप सांसद भगवंत मान ने कृषि विधयेक पारित होने को काला दिन बताया
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